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नवग्रह और उनके पेड़-1 : प्रबोध चंदोल

वनस्पतियों में 9 वृक्ष अलग अलग प्रत्येक ग्रह के प्रतीक हैं और किसी भी ग्रह के दुष्प्रभाव को समाप्त करने या उसका शुभ फल प्राप्त करने के लिए उस ग्रह के प्रतीक वृक्ष का रोपण, सेवा-संरक्षण, दर्शन, आदि करने से उक्त ग्रह का दुष्प्रभाव समाप्त होकर वह व्यक्ति के लिए शुभ फलदायी हो जाता है।

प्रबोध चंदोल

भारतीय संस्कृति में पेड़ के मायने

 नवग्रह और उनके पेड़

पृथ्वी के निकट आकाश में सबसे अधिक ऊर्जा और चमकने वाला पिंड सूर्य है। आकाश में जो ग्रह, धूमकेतु, उल्काएं और अन्य आकाशीय पिंड सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं, उन सब के समूह को सौरमंडल कहते हैं। भारतीय मान्यता के अनुसार सौरमंडल में 9 ग्रह हैं। इनमें सात मुख्य ग्रह हैं जिनमें सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुद्ध, वृहस्पति, शुक्र और शनि तथा राहू और केतू दो छाया ग्रह हैं जो किसी पिंड के रूप में नहीं हैं बल्कि ये चन्द्रमा के  उत्तरी व दक्षिणी गणीतीय बिंदु हैं जहां चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए सूर्य के पथ को काटता है। इस प्रकार से इन दो ग्रहों को मिलाकर 9 ग्रह हो जाते हैं।

धरती पर जब किसी का भी जन्म होता है तो स्थान, समय, दिन व महीने के अनुसार इन ग्रहों की स्थिति धरती पर हमारे जीवन की दशा व दिशा निर्धारित करती है। हिन्दू ज्योतिष के अनुसार ये ग्रह पृथ्वी को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। अतः पृथ्वी पर रहने वाले जीव भी इन ग्रहों के प्रभाव से अछूते नहीं हैं। संपूर्ण जीव जगत में मनुष्य ही ऐसा जीव है जो प्रकृति में होने वाली घटनाओं का अध्य्यन करने की क्षमता रखता है।

प्राचीन भारत के ऋषियों ने अपने तप के बल पर ब्रह्मांड के अनेक रहस्यों की खोज की थी जो आज भी हमारे पौराणिक ग्रंथों में लिपिबद्ध हैं। ऐसी धारणा है कि कुछ ग्रह हमारे जीवन में अच्छे योग लेकर आते हैं जबकि कुछ अनिष्ट लेकर आते हैं।

बुरे ग्रहों का प्रभाव जीवन में अस्थिरता, बाधा, घाटा, तनाव, असफलता, शारीरिक व मानसिक बीमारियां आदि के रूप में आता है जबकि अच्छे ग्रहों का प्रभाव जीवन में स्थिरता, लाभ, सफलता व प्रगति, स्वास्थ्य और आनंद आदि लेकर आता है। ऐसा माना जाता है कि ये 9 ग्रह कभी न कभी प्रत्येक मनुष्य के जीवन को प्रभावित करते हैं। इन ग्रहों का हमारे जीवन पर कैसे अच्छा और बुरा प्रभाव पड़ता है और इनके अनिष्टकारी प्रभाव से हम कैसे बच सकते हैं इसका विस्तृत अध्य्यन तो ज्योतिषशास्त्र में किया जाता है, परंतु यहाॅं तो हम उन वृक्षों अथवा घास की चर्चा करेंगे जिनका संबन्ध इन ग्रहों से है।

वनस्पतियों मेे ये 9 वृक्ष अलग अलग प्रत्येक ग्रह के प्रतीक हैं और किसी भी ग्रह के दुष्प्रभाव को समाप्त करने या उसका शुभ फल प्राप्त करने के लिए उस ग्रह के प्रतीक वृक्ष का रोपण, सेवा-संरक्षण, दर्शन, आदि करने से उक्त ग्रह का दुष्प्रभाव समाप्त होकर वह व्यक्ति के लिए शुभ फलदायी हो जाता है।

नवग्रह वाटिका में इन वृक्षों को लगाने की एक विशेष व्यवस्था है जिसमें दिशा का ध्यान रखते हुए ग्रहों के चिन्हों की आकृति के बीच में वृक्षों का रोपण किया जाता है। इनमें वृहस्पति के लिए पीपल/अश्वत्थ, बुद्ध के लिए अपामार्ग/लटजीरा, शनि के लिए शमि, सूर्य के लिए आक/मदार, शुक्र के लिए गूलर या अंजीर, मंगल के लिए खैर या खदिर, चंद्रमा के लिए टेशू/प्लाश, राहु के लिए दूर्वा/दूब तथा केतू के लिए कुशा/दर्भा का रोपण किया जाता है। इस आलेख के साथ संलग्न रेखाचित्र से आप नवग्रह में इन वृक्षों की स्थिति को और अधिक अच्छी तरह से समझ सकते हैं। आगे के लेखों में हम प्रत्येक ग्रह के वृक्ष के अलग अलग औषधीय गुणों का वर्णन करेंगे।

क्रमशः

लेखक का परिचय

प्रबोध चंदोल, प्रकृति एवं पर्यावरण के लिए पिछले अनेक वर्षों से समाज में कार्यरत एक प्रकृति प्रेमी, जो अब तक अनेक संस्थाओं के साथ मिलकर विभिन्न क्षेत्रों में लाखों वृक्षों का रोपण कर चुका है। आपने ’पेड़ पंचायत’ नामक संस्था की स्थापना की है ताकि इस धरती पर विलुप्त होती वृक्ष प्रजातियों को बचाकर धरती के अस्तित्व की रक्षा की जा सके। इस प्रयास में उन औषधीय पौधों को बचाने का भी संकल्प है जो लगभग विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी हैं। भारतीय संस्कृति में किस प्रकार पेड़ों के संरक्षण व संवर्द्धन की परंपरा है इसी पर उनके श्रंखलाबद्ध आलेख प्रस्तुत हैं।

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