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के.एम. अग्रवाल
सालों से मन में यह बात आती थी कि कभी आत्मकथा लिखूँ। फिर सोचा कि आत्मकथा तो बड़े-बड़े लेखक, साहित्यकार, राजनेता, फिल्मकार, अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी, वैज्ञानिक, बड़े-बड़े युद्ध जीतने वाले सेनापति आदि लिखते हैं और वह अपने आप में अच्छी-खासी मोटी किताब होती है। मैं तो एक साधारण, लेकिन समाज और देश के प्रति एक सजग नागरिक हूँ। मैंने ऐसा कुछ देश को नहीं दिया, जिसे लोग याद करें। पत्रकारिता का भी मेरा जीवन महज 24 वर्षों का रहा। हाँ, इस 24 वर्ष में जीवन के कुछ अनुभव तथा मान-सम्मान के साथ जीने तथा सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस विकसित हुआ। लेकिन कभी लिखना शुरू नहीं हो सका। एक बार पत्रकारिता के जीवन के इलाहाबाद के अनुज साथी स्नेह मधुर से बात हो रही थी। बात-बात में जीवन में उतार-चढ़ाव की बहुत सी बातें हो गयीं। मधुर जी कहने लगे कि पुस्तक के रूप में नहीं, बल्कि टुकड़ों-टुकड़ों में पत्रकारिता के अनुभव को जैसा बता रहे हैं, लिख डालिये। उसका भी महत्व होगा। बात कुछ ठीक लगी और फिर आज लिखने बैठ ही गया। गतांक से आगे…
‘मेरा जीवन’: के.एम. अग्रवाल: 81:
नीड़ का निर्माण फिर: 10
“महराजगंज में पुष्प प्रदर्शनी”
जब तक मैं लखनऊ और इलाहाबाद में रहा, हमेशा एक बात मन में आती थी कि काश, मेरे पास थोड़ी सी जमीन होती तो फूल पौधे लगाते। इलाहाबाद वाले मकान में दोमंजिले पर बरामदा काफी लंबा चौड़ा था, तो वहां गमलों आदि में कुछ फूल पौधे लगाए। और फिर जब महराजगंज आ गया तो यहां मेरे पास पिता जी की खरीदी काफी जमीन थी। फलस्वरूप, फूल पौधे लगाने को कौन कहे, मैंने पूरी एक नर्सरी ही शुरू कर दी। चहारदीवारी से घिरी नर्सरी में कोई रहता नहीं था, इसलिए गमलों सहित पौधों की चोरी होने लगी। तंग आकर तीन साल बाद नर्सरी बंद कर दी।
फिर धीरे धीरे यहां के एक सर्जन डा.भरत लाल से संपर्क हुआ। लखनऊ के मूल निवासी डा.भरत लाल यहां पर एक ऐसे प्राइवेट प्रैक्टिशनर थे, जो गोरखपुर मेडिकल कालेज से एम.एस. करने के बाद एक दिन यहां के किसी गांव में घूमने आये थे और फिर यहां की खराब स्थति को देखकर यहीं के होकर रह गये। उनके हाथ में इतना यश था कि उनके बारे में किसी ने कहा कि ये चलती बस में किसी का आपरेशन कर दें तो वह ठीक हो जायेगा।
डा.भरत लाल को फूलों का बहुत शौक था। उनकी छत पर सैकड़ों गमले थे, जिनमें तरह तरह के फूल और दूसरे पौधे थे। वह कम्प्यूटर पर नेट के सहारे फूलों पर तरह तरह की जानकारियां इकट्ठी करते। गुलदावदी में एक नये रंग की किस्म पैदा करने की कोशिश में लगे थे।
डा. भरत लाल से बातचीत के बाद यहां हर वर्ष पुष्प प्रदर्शनी लगाने की बात मन में आयी। फिर कुछ पुष्प प्रेमियों की एक मीटिंग हुई और पहली बार 2011 में यहां लिटिल फ्लावर स्कूल परिसर में दिसंबर महीने में पुष्प प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। लगभग दस लोगों ने इसमें हिस्सा लिया। गोरखपुर से भी किसी पुष्प विशेषज्ञ को बुलाया जाता और फिर प्रथम, द्वितीय, तृतीय और सांत्वना पुरस्कार वितरित होते। दूसरे साल ‘ बगिया ‘ नाम से एक संस्था का पंजीकरण भी कराया गया। डा.भरत लाल अध्यक्ष और मैं महासचिव बना।
तीसरे वर्ष भी यहां के महिला डिग्री कालेज परिसर में प्रदर्शनी लगी। धीरे धीरे 14-15 लोग अपने उगाये फूलों के साथ प्रतिभाग करने लगे।
वर्ष 2014 बहुत ही दु:खद रहा, जब अचानक 8 अगस्त, 2014 को डा.भरत लाल की असामयिक मृत्यु हो गयी। और फिर पुष्प प्रदर्शनी का यह सिलसिला भी आगे नहीं बढ़ सका।
केरलवासियों का स्वागत
महराजगंज जिले के विभिन्न क्षेत्रों में अच्छी संख्या में केरल के लोग सपरिवार रहते हैं, जिनमें से अधिकतर शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हैं। महराजगंज नगर में 1992 के आसपास केरलवासी सी. जे. थामस अपने एक मित्र ओ. ए. जोसेफ के साथ आते। उनका उद्देश्य इस क्षेत्र में स्कूल खोलकर क्षेत्र में शिक्षा का प्रचार प्रसार करना था। उन दिनों महराजगंज नगर में अंग्रेजी माध्यम का कोई स्कूल था भी नहीं। थामस ने महराजगंज के अमरुतिया बाजार मैं और जोसेफ ने यहां से 25 किमी दूर सिसवा बाजार में स्कूल की शुरुआत की। हम सभी जानते हैं कि देश में केरल एकमात्र ऐसा प्रदेश है, जहां शिक्षा शत प्रतिशत है। वहां के लोग बड़ी संख्या में विदेशों में भी रहकर (विशेषकर नर्सिंग सेवा) देश के आर्थिक पक्ष को मजबूत करते हैं।
थामस के व्यवहार और उनके विचारों से प्रेरित होकर एक दिन मन में आया कि क्यों न महराजगंज जिले में रहने वाले केरलवासियों को एक समारोह में सम्मानित किया जाय। मैंने थामस से अपनी योजना बताई। उन्हें अच्छा लगा और फिर एक दिन उनके साथ जिले के फरेंदा, नौतनवा, निचलौल आदि जगहों पर जाकर केरलवासियों से संपर्क करके योजना बताई गयी।
फिर तो 1999 में स्थानीय पी. जी. कालेज के हाल में तत्कालीन जिलाधिकारी (मुख्य अतिथि) की उपस्थिति में चालिस पचास केरलवासी सपरिवार इकट्ठा हुए। रंगारंग कार्यक्रम हुआ। एक दो महिलाओं ने नृत्य और गीत भी प्रस्तुत किये। जिलाधिकारी ने जहां इस प्रकार के कार्यक्रम से दो प्रदेशों के नागरिकों के बीच निकटता बढ़ने की बात कही, वहीं सी.जे.थामस तथा अन्य केरलवासियों ने अपने संबोधन में इस प्रकार सम्मानित किये जाने पर बहुत ही खुशी व्यक्त की।
सन् 1999 को बीते धीरे धीर 20 वर्ष हो रहे हैं। इस अवधि में थामस और जोसेफ ने अपनी मेहनत और लगन से ऐसे कालेजों की स्थापना कर ली है, जिनकी गणना जिले के माने जाने अच्छे कालेजों में की जाती है।
कुछ समय बाद मैंने सोचा कि इस जिले में रहने वाले बंगालियों को भी इसी प्रकार यहां बुलाकर एक सम्मान समारोह आयोजित किया जाय, जिसमें वे लोग बंगला में गीत आदि प्रस्तुत करें। मैंने दो तीन बंगालियों से यहां सम्पर्क किया लेकिन उन लोगों ने स्वयं कोई रुचि नहीं दिखाई। मेरी सोच अपनी जगह पड़ी रह गयी।