“पर्यटकों के स्वर्ग स्विट्जरलैंड में“
जयशंकर गुप्त
सेंट पीटर्सबर्ग से 25 मई को ही हमारी सीधी उड़ान स्विट्जरलैंड के जिनेवा शहर के लिए थी. हमने स्विस घड़ियों, स्विस बैंकों और चाकलेट के लिए मशहूर पर्यटकों के लिए स्वर्ग कहे जानेवाले स्विट्जरलैंड के बारे में पहले से बहुत सुन रखा था. यह भी कि वहां पिछले दो सौ वर्षों में कोई युद्ध नहीं हुआ. यहां तक कि पहले और दूसरे विश्वयुद्ध में भी स्विट्जरलैंड तटस्थ बना रहा. अब यह सब प्रत्यक्ष रूप से देखने-समझने का अवसर मिल रहा था.
पश्चिमी, मध्य और दक्षिणी यूरोप के संगम पर स्थित स्विट्जरलैंड, 26 कैंटनों (राज्यों) को मिलाकर बना संघीय गणराज्य है. इन सभी कैंटनों के अपने संविधान, अदालतें, विधायिका और सरकारें होती हैं. सब मिलकर स्विस परिसंघ बनाते हैं जिनकी राष्ट्रीय राजधानी बर्न में है. चारों तरफ से जमीन से घिरे (लैंड लाक्ड) देश (जहां समुद्र नहीं है), स्विटजरलैंड की सीमाएं दक्षिण में इटली, पश्चिम में फ्रांस, उत्तर में जर्मनी और पूर्व में ऑस्ट्रिया और लिकटेंस्टीन से लगती हैं. यह भौगोलिक रूप से स्विस पठार, आल्प्स और जुरा (पहाड़ियों) के बीच विभाजित है. पुराने स्विस कॉन्फेडेरसी की स्थापना मध्ययुगीन काल के अंत में ऑस्ट्रिया और बरगुंडी के खिलाफ सैन्य सफलताओं के बाद की गई थी. रोमन साम्राज्य से स्विट्जरलैंड की स्वतंत्रता की औपचारिक मान्यता 1648 में दी गई थी. 16 वीं शताब्दी के सुधारों के बाद से, स्विट्जरलैंड ने सशस्त्र तटस्थता की एक मजबूत नीति बनाए रखी है. इसने 1815 से लेकर अब तक एक भी अंतर्राष्ट्रीय युद्ध नहीं लड़ा. यह 2002 तक संयुक्त राष्ट्र में शामिल भी नहीं हुआ था. फिर भी, यह अक्सर दुनिया भर में शांति प्रक्रियाओं में मध्यस्थ के रूप में शामिल होता रहा. दुनिया के सबसे पुराने और सबसे प्रसिद्ध मानवीय संगठनों में से एक रेड क्रॉस का जन्म यहीं हुआ. संयुक्त राष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा मुख्यालय भी यहीं जिनेवा में है.
बहरहाल, डा. कलाम के साथ हम लोग 25 मई की शाम स्विट्जरलैंड के खूबसूरत जिनेवा लेक (झील) पर स्थित जिनेवा शहर पहुंचे. डा. कलाम के आगमन को यादगार बनाने के लिए स्विट्जरलैंड की सरकार ने 26 मई को ‘विज्ञान दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी. जिनेवा में डा. कलाम के साथ हम दुनिया की सबसे बड़ी कण (पार्टिकल्स) भौतिकी प्रयोगशाला कही जानेवाली सर्न (यूरोपीयन काउंसिल फार न्यूक्लीयर रिसर्च) लेबोरेटरी में भी गए.
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विश्व प्रसिद्ध सर्न लेबोरेटरी में |
स्विट्जरलैंड और फ्रांस की सीमाओं से लगी इस प्रयोगशाला में दुनिया भर के चुनिंदा वैज्ञानिक शोध कार्यों में लगे हैं. वहां वैज्ञानिकों को डा. कलाम के सम्मान में सिर झुकाते देख मन में अजीब तरह के गर्व का एहसास हुआ था. उनके साथ भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष अनिल काकोदकर भी थे. उन्होंने वहां डा. कलाम की मौजूदगी में ‘लेटर ऑफ इंटेंट’ पर हस्ताक्षर किया. काकोदकर ने बताया कि सर्न में भारत को पर्यवेक्षक देश का दर्जा मिलने का मतलब हमारी परमाणु क्षमताओं को मान्यता मिलने जैसा है. उस समय तक सर्न में पर्यवेक्षक का दर्जा केवल अमेरिका, रूस और जापान को ही मिला था.
इस लेबोरेटरी में डा. कलाम के साथ घूमने के क्रम में हमें सिर पर हैल्मेट लगाए जमीन के अंदर कई मंजिल नीचे लिफ्ट से जाना पड़ा था.
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सर्न में डा. कलाम. पीछे हैं अनिल काकोदकर |
डा. कलाम ने वहां मैग्नेट असेंबली और परीक्षण हालों का भी अवलोकन किया. ‘ग्लास बाक्स’ में उन्होंने कुछ चुनिंदा वैज्ञानिकों से बातें की. प्रयोगशाला में हम लोग घुसे तो थे स्विट्जरलैंड से लेकिन जब बाहर निकले तो पता चला कि हम फ्रांस में हैं. दरअसल, इस लेबोरेटरी का आधा हिस्सा स्विट्जरलैंड में तथा आधा फ्रांस की सीमा में पड़ता है. वापस मोटर गाड़ियों के काफिले में हम जिनेवा लौटे. सर्न जाने से पहले डा. कलाम ने जिनेवा में रहनेवाले भारतीय उद्योगपतियों और छात्रों को भी संबोधित किया था. जिनेवा की एक खासियत और है. यह है तो स्विट्जरलैंड में लेकिन यहां की अधिकतर आबादी फ्रेंच भाषी है.
जिनेवा लेक पर ‘मूर्तिवत भिखारी’ !
शाम को जिनेवा लेक के पास किनारे पर घूमते समय अजीब नजारा देखने को मिला. एक व्यक्ति प्रस्तर प्रतिमा की तरह खड़ा था. कोई स्पंदन नहीं. पता चला कि वह भिखारी था. जैसे ही कोई उसके पास रखे कटोरे में भीख के रूप में कुछ सिक्के अथवा नोट डालता, अपने खास अंदाज में झुक कर वह शुक्रिया अदा करता और फिर पहले की तरह ही मूर्तिवत हो जाता. जिनेवा लेक में हमने एक ऐसे फौव्वारे का दीदार किया जिससे निकलनेवाले पानी की धार 150 मीटर (हमारे कुतुबमीनार की ऊंचाई के डेढ़-दो गुना ऊंचा) की ऊंचाई तक ऊपर जाती थी. शाम के समय इस फौव्वारे में रंगों का मिश्रण इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था.
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जिनेवा लेक के किनारे, पीछे है फव्वारा |
जिनेवा लेक में नौकायन करते हुए रास्ते में गगन चुंबी अट्टालिकाओं पर नजर पड़ी. पता चला कि वही तथाकथित ‘स्विस बैंक’ हैं जहां कथित तौर पर न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया भर के दौलतमंदों की काली कमाई, काले धन के रूप में जमा है. बताया गया कि अधिकतर मामलों में खातेदार अपने स्विस एकाउंट्स के कोड नंबर आदि डिटेल्स अपने परिवार के निकटस्थ लोगों, यहां तक कि अपनी पत्नी को भी नहीं बताते और असामयिक निधन होने या कहें दुर्घटना का शिकार होकर मरनेवाले खातेदारों के बैंक खातों के बारे में जानकारी के अभाव में वहां जमा रकम बैंक के पास ही जमा रह जाती है. इन बैंकों की समृद्धि का एक बड़ा कारण यह भी बताया गया.
तकरीबन 75 किमी. लंबी खूबसूरत जिनेवा लेक विलनेवा तक जाती है. इसका कुछ हिस्सा फ्रांस में भी पड़ता है. झील के साथ चल रही चार लेन की सड़क पर सरपट भागती गाड़ियां हवा से बातें करती हैं. सड़क के किनारे पाईन फार्म, अंगूर के बाग, खेत और शहरी गांव हैं. गांव सड़क से गुजरनेवालों के लिए ढके से रहते हैं. वाईन यहां चाकलेट और स्विस घड़ियों की तरह ही मुख्य कमाऊ व्यवसाय है. लुसाने के पास हम कुवी (कुल्ली) गांव गए वहां वाईन फार्म के साथ ही जमीन के अंदर बहुत पुराने लंबे सेलर भी देखे, जहां वाईन का भंडारण और संरक्षण भी किया जाता था.
वहां कई-कई दशक पुरानी वाईन भी देखने को मिली. बाहर निकल कर ‘वाइन टेस्टिंग’ में शामिल होकर हमने ‘स्विस वाइन’ के विभिन्न प्रकारों का लुत्फ उठाया.
26 मई को हम लोग स्विट्जरलैंड के तकरीबन तीन लाख की आबादीवाले फ्रेंच भाषी लुसाने शहर में थे. इस दिन को स्विट्जरलैंड की सरकार ने डा. कलाम की यात्रा को यादगार मनाने के लिए ‘विज्ञान दिवस’ घोषित किया था तो डा. कलाम ने भी इस पूरे दिन को विज्ञान और वैज्ञानिकों के नाम ही समर्पित किया.
विश्व प्रसिद्ध ओलंपिक म्युजियम
लुसाने के बारे में बताया गया कि वहीं से उस खास स्याही (रोशनाई) की आपूर्ति भारत में होती है जिससे हमारे करेंसी नोटों (रुपयों) की छपाई होती है. इसी शहर में विश्व प्रसिद्ध ओलंपिक म्युजियम में घूमना हमारे लिए किसी बड़े आश्चर्य से कम नहीं था.
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ओलंपिक म्युजियम के सामने |
ओलंपिक खेलों के इतिहास और इसकी विरासत को सहेजने के लिए इस तरह के म्युजियम के निर्माण की परिकल्पना 1915 में यहां बेरन पियरे दि कबर्टिन के द्वारा इंटरनेशनल ओलंपिक समिति का मुख्यालय लाने के साथ ही तैयार हुई थी. 1982 में अस्थाई ओलंपिक म्युजियम को आम लोगों के लिए खोला गया था. लेकिन यह नाकाफी लगा तो 9 दिसंबर, 1988 को मौजूदा ओलंपिक म्युजियम के निर्माण की शुरुआत हुई. तकरीबन पांच साल में तैयार हुए इस भव्य और आकर्षक म्युजियम को 23 जून 1991 में आम लोगों के लिए खोला गया. म्युजियम के अधिकारियों ने बताया कि अब तक तकरीबन 22 लाख पर्यटक-दर्शक म्युजियम में आकर इसमें पहले ओलंपिक से लेकर उस समय तक के ग्रीष्म एवं शीत ओलंपिक खेलों से जुड़े सभी तरह के विवरण, विजेता खिलाड़ियों की जीवंत तस्वीरें, खेलों में इस्तेमाल हुए उपकरण, ड्रेसेज, पदक, सिक्के, डाक टिकट, खेल-प्रतिस्पर्धाओं की जीवंत तस्वीरें, वीडियो, आडियो-वीडियो कमेंट्री आदि का अवलोकन कर चुके हैं. दुनिया भर से औसतन दो लाख दर्शक इस म्युजियम में हर साल आते हैं. इनमें से एक तिहाई स्कूली बच्चे होते हैं.
यह नई पीढ़ी में खेल कूद और खासतौर से ओलंपिक स्पर्धाओं के प्रति बढ़ रहे आकर्षण और लगाव का द्योतक है. म्युजियम में एक बड़े ओलंपिक पार्क के साथ ही इसके बीच में ओलंपिक अध्ययन केंद्र, आडियो-वीडियो लाइब्रेरी, पांच बैठक कक्ष, एक ऑडिटोरियम, रेस्तरां, और एक दुकान भी है जहां से आप ओलंपिक खेलों से जुड़े प्रतीकों, प्रतिकृतियों, आडियो और वीडियो तथा स्मृति चिह्न आदि खरीद सकते हैं. म्युजियम में पसंदीदा ओलंपिक खेलों और प्रतिस्पर्धाओं को आप भुगतान पर लाइव देख सकते हैं. फ्रेंच, अंग्रेजी, जर्मन, स्पेनिश, इटैलियन, रूसी, जापानी एवं चाइनीज भाषा में रेकार्डेड कमेंट्री की व्यवस्था भी है. बताया गया कि इस म्युजियम में पहले ओलंपिक की टार्च के साथ ही अब तक की ओलंपिक प्रतिस्पर्धाओं में प्रयुक्त ओलंपिक टार्च, मशहूर महिला ओलंपियन जीन-क्लॉड किल्ली के स्की और बूट्स तथा कार्ल लुइस के जूते भी सहेज कर रखे गए हैं. बताया गया कि म्युजियम की फोटो लाइब्रेरी में 517000 डाक्युमेंट रखे गए हैं जबकि इसकी वीडियो लाइब्रेरी और फिल्म अभिलेखागार में 21 हजार 500 घंटों की फुटेज मौजूद है. कुल मिलाकर ओलंपिक स्पर्धाओं के बारे में शोध करनेवालों के लिए यहां सब कुछ मौजूद है.
वैज्ञानिकों के बीच डा. कलाम
लुसाने में डा. कलाम फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी (एफआईटी) में गये जहां एक सौ से अधिक भारतीय छात्र अध्ययन-अनुसंधान कार्यों में लगे थे. वहां भी वैज्ञानिकों ने उनका जबरदस्त स्वागत किया.
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लुसाने स्थित एफआइटी में डा. कलाम. पीछे खड़े राबर्ट ऐमर |
एफआईटी के निदेशक राबर्ट ऐमर ने उनका स्वागत करते हुए कहा कि एक वैज्ञानिक के रूप में डा. कलाम का योगदान विलक्षण है. पूरी दुनिया की विज्ञान बिरादरी के लिए यह गौरव की बात है कि डा. कलाम के रूप में एक वैज्ञानिक राष्ट्राध्यक्ष हमारे बीच हैं. उनके मुंह से यह बातें सुनकर गर्व से हमारा सीना चौड़ा और सिर ऊंचा हो गया. हमें एहसास हुआ कि राष्ट्रपति के रूप में डा. कलाम के होने के मायने क्या हैं. डा. कलाम ने महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन की स्मृति को सलाम किया और महात्मा गांधी तथा विश्व कवि रवींद्रनाथ टैगोर के बारे में उनके द्वारा कही गई बातों को उद्धृत करते हुए कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के रचनात्मक इस्तेमाल के क्षेत्र में दोनों देशों को साझा प्रयास करने चाहिए.
डा. कलाम ने कहा, ‘परमाणु ऊर्जा से हम बिजली और बम दोनों बना सकते हैं. एक से प्रकाश मिलेगा और दूसरे से विनाश होगा’. उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी हानिकारक नहीं है, बशर्ते उसका इस्तेमाल करनेवाले ओर उनके इरादे गलत न हों. उन्होंने कहा, ‘परमाणु प्रौद्योगिकी से हम ऊर्जा तैयार कर सकते हैं, उन्नत किस्म के बीज पैदा कर सकते हैं. रेडिएशन से घातक बीमारियों का इलाज भी संभव है. लेकिन यह भी सच है कि इससे विनाशकारी बम भी बनाए जा सकते हैं.’ उन्होंने विश्व वैज्ञानिक समुदाय से परमाणु प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल विनाश के लिए नहीं बल्कि रचनात्मक कार्यों के लिए करने का आह्वान किया.
लुसाने स्थित फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी में अध्ययन, अनुसंधान और विभिन्न प्रयोगशालाओं, खासतौर से विकलांग बच्चों की बीमारी (ऑटिज्म) से निजात पाने तथा कनवर्जेंस ऑफ टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अनुसंधान कर रही प्रयोगशालाओं को देखने के बाद डा. कलाम के मुंह से बरबस ही निकल पड़ा, ‘जल्दी ही कुछ अच्छा होने वाला है.’ उनका आशय शायद मानसिक रूप से विकलांग बच्चों की विकलांगता दूर करने तथा कनवर्जेंस आफ टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में किसी नई खोज के सामने आने को लेकर था. लुसाने में अध्ययन और अनुसंधान में लगे दुनिया भर के छात्रों और फैकल्टी मेंबरों के बीच डा. कलाम ने कंप्यूटर के क्षेत्र में हो रहे नित नए अनुसंधानों का जिक्र करते हुए कहा, ‘वर्ष 2021 तक दुनिया में ऐसे सुपर कंप्यूटर आ जाएंगे जिनकी क्षमता मानव मस्तिष्क से हजार गुना ज्यादा होगी.’ लेकिन, इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘मानव मस्तिष्क की तरह कंप्यूटर कभी रचनात्मक नहीं हो सकता.’ उन्होंने मानव क्लोनिंग बनाए जाने के विचार से असहमति जताते हुए कहा कि यह प्रकृति के विरुद्ध है.
26 मई की शाम हम लोग स्विट्जरलैंड में आबादी के हिसाब से सबसे बड़े शहर ज्यूरिख में स्थित फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलोजी भी गये. वहां भी डा. कलाम का अभूतपूर्व स्वागत हुआ. इन दोनों विश्व प्रसिद्ध प्रौद्योगिकी संस्थानों का महत्व इस बात से भी समझ सकते हैं कि अब तक विज्ञान के क्षेत्र में सर्वाधिक नोबल पुरस्कार इन्हीं दोनों संस्थानों के वैज्ञानिकों को मिले हैं.
राजधानी शहर बर्न में डा. कलाम का स्वागत
ज्यूरिख से 27 मई को हम लोग राजधानी शहर बर्न गये. डा. कलाम के स्वागत के लिए पूरी दुनिया में शांति और व्यवस्था के प्रतीक स्विट्जरलैंड के राष्ट्रपति सैम्युएल श्मिड तथा उनकी पत्नी ऐरेना श्मिड भी वहां मौजूद थे. दोनों देशों की राष्ट्रीय धुनें बजने के बाद कलाम का स्वागत 26 फौव्वारों के साथ किया गया. ये फौव्वारे स्विट्जरलैंड परिसंघ में शामिल 26 कैंटनों (राज्यों) की तरफ से थे. डा. कलाम ने वहां स्विट्जरलैंड परिसंघ की संघीय परिषद को संबोधित किया. राष्ट्रपति भवन में डा. कलाम के सम्मान में राष्ट्रपति श्मिड द्वारा आयोजित राजकीय रात्रिभोज (बैंक्वेट डिनर) के अवसर पर डा. कलाम ने दोनों देशों के बीच मित्रतापूर्ण संबंधों की तुलना विशाल हिमालय और आल्प्स पर्वतमालाओं से करते हुए कहा कि दोनों देश जब एक-दूसरे से दोस्ती का हाथ मिलाते हैं तो लगता है कि दोनों विशाल और प्राचीन पर्वत श्रृंखलाएं एक दूसरे से मिल रही हैं. उन्होंने कहा कि आजाद होने के बाद भारत के साथ दोस्ती के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करनेवाला पहला देश स्विट्जरलैंड ही था. डा. कलाम ने सापेक्षता (रिलेटिविटी) के सिद्धांत का प्रतिपादन करनेवाले महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के शताब्दी वर्ष का जिक्र करते हुए कहा कि ‘अन्नालेन डेर फिजिक्स’ में उनके युगांतरकारी लेख ने भौतिकी का रूप ही बदल दिया था.
उन्होंने कहा, ‘’जब मैं आइंस्टीन के बारे में सोचता हूं तो मुझे महात्मा गाधी के बारे में उनकी वह टिप्पणी याद आती है, जिसमें उन्होंने कहा था कि आनेवाली पीढ़ियां शायद ही यकीन कर पाएं कि इस धरती पर महात्मा गांधी जैसा हाड़-मांस का कोई पुतला भी रहता था.”
क्रमशः
और भी बहुत कुछ रोचक आपको मेरे ब्लॉग jaishankargupt.blogspotcom पर देखने-पढ़ने को मिलेगा. मित्रों, परिचितों और मुझे फॉलो करनेवालों की बेबाक प्रतिक्रिया और सुझाव-संशोधनों का बेसब्री से इंतजार रहेगा. मेरे ब्लॉग को फॉलो रने और प्रतिक्रियाएं ब्लॉग पर भी दर्ज होने पर मुझे व्यक्तिगत प्रसन्नता होगी.
जयशंकर गुप्त
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