के.एम.अग्रवाल
महराजगंज।
एक फ्रांसीसी पर्यटक परिवार अपने घरेलू सामानों को अपनी लंबी कार और उससे जुड़े ट्रेलर पर लादकर पिछले लगभग तीन महीने से उत्तर प्रदेश के महराजगंज जनपद के नेपाल सीमा से लगे कोल्हुई थाना क्षेत्र के ग्राम पंचायत कोल्हुआ में एक मंदिर परिसर में पड़ा हुआ, इस बात का इंतजार कर रहा है कि कोरोना के कारण बंद नेपाल सीमा खुले और वह अपने परिवार के साथ आगे की यात्रा जारी रख सके।
इस फ्रांसीसी परिवार की पर्यटन अर्थात विभिन्न देशों को देखने, उन्हें समझने, वहां के लोगों से मिलकर दुनिया को देखने के प्रति जो ललक और साहस है, मैं तो उसे देखकर दंग हूं। सोचता हूं, क्या सामान्य तौर पर कोई भारतीय पर्यटक अपने पूरे परिवार के साथ इस प्रकार विश्व
भ्रमण कर सकता है ? यदि कोई परिवार निकलता भी है तो वह इस प्रकार महीनों एक जगह फंस जाने के बाद वापस अपने देश भारत ही लौट जाना बेहतर समझेगा। पर्यटन के ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर चलते हुए अनुभव को इकट्ठा करना तो एक सामान्य भारतीय का गुण ही नहीं है। हां, राहुल सांकृत्यायन जैसा तो कोई बिरला ही होगा।
इस फ्रांसीसी परिवार के मुखिया पैट्रिस पैलेरस, अपनी पत्नी वार्गिनी पैलेस, दो बेटियों ओफिली और लोला तथा छोटे बेटे टाम और पालतू कुत्ते के साथ अपनी गाड़ी से जुलाई, 2019 को 24 देशों की यात्रा पर निकले। अभी तक ये लोग यूरोप, तुर्की, जार्जिया, जमानिया, ईराक, दुबई, अमीरात, यू ए ई, ओमान और पाकिस्तान होते हुए 20 मार्च, 2020 को बाधा बार्डर पारकर भारत पहुंचे। इन्हें भारत में विभिन्न स्थानों पर घूमते हुए नेपाल जाना था, लेकिन जब तक नेपाल की सीमा पर पहुंचे, कोरोना के कारण नेपाल में भी लाकडाउन हो चुका था और सीमा को बंद किया जा चुका था। इन्हें नेपाल होते हुए थाईलैण्ड, लाओस और कम्बोडिया आदि देशों में जाना है।
पैट्रिस और उनके परिवार में पर्यटन का एक खास गुण है कि वे यहां मंदिर परिसर में गांव वालों से न सिर्फ घुल-मिल कर रहते हैं, बल्कि धीरे-धीरे इधर की भोजपुरी बोली भी थोड़ा बहुत सीख लिए हैं। वे किसी के भी आने-जाने पर जोर से ‘नमस्ते‘ बोलना नहीं भूलते। इनकी 18–20 साल की लड़कियों और 12–13 साल का लड़का, सभी स्थानीय लोगों के साथ मौज मस्ती करते हैं। बच्चे, स्थानीय बच्चों के साथ कभी-कभी साइकिल चलाकर इधर-उधर घूम भी आते हैं।
मंदिर के पुजारी बाबा हरिदास बताते हैं कि पूरा परिवार बहुत प्रेम से जमीन पर बैठकर प्रसाद और शाकाहारी भोजन ग्रहण करता है। गांव के लोगों, खासकर महिलाओं को इन्हें देखकर बड़ा सुखद आश्चर्य होता है।
कुछ दिन बाद ही परिवार को लगने लगा कि सिर्फ शाकाहारी भोजन करने से उन्हें कुछ कमजोरी महसूस हो रही है, तो अब वे बाजार से चिकन आदि मांसाहारी का सामान ले आते हैं और पास के ही सरकारी प्राइमरी स्कूल परिसर में, जो आजकल खाली ही पड़ा है, अपना अलग भोजन बनाते हैं। पैट्रिस पैलेस तो मेकैनिकल इंजीनियर हैं, जबकि उनकी पत्नी फ्रांस में स्वास्थ्य विभाग में काम करती हैं। वह कभी-कभी टेबिल के इर्द-गिर्द बच्चों को बैठाकर उन्हें पढ़ाती भी हैं। पति-पत्नी लगभग रोजाना ही लैपटॉप पर कुछ काम भी करते हैं। इन लोगों ने फ्रांस में अपने मकान को किराए पर उठा दिया है, जिससे कि वह साफ-सुथरा भी बना रहेगा और कुछ किराया भी मिलता रहेगा।
अभी कुछ दिन पहले इनके वीजा की अवधि समाप्त होने लगी थी तो पूरे परिवार के साथ अपनी गाड़ी से ही दिल्ली चले गये और तारीख बढ़वाकर चले भी आये। रास्ते में लखनऊ और ताजमहल भी घूमते आये।
एक-दो दिन पर कोई न कोई पुलिस अधिकारी इनसे आकर जरूर मिलता है और पूछता है, कोई कठिनाई तो नहीं ? शुरू में प्रशासन ने इन्हें गेस्ट हाउस में ठहराने की कोशिश की लेकिन इन लोगों ने गांव में ही खुले में लोगों के बीच रहना ही पसंद किया।
अब इन्हें 17 अगस्त का इंतजार है। शायद इस दिन नेपाल की सीमा खुल जायेगी और फिर ये अपनी आगे कुछ यात्रा जारी रख सकेंगे।