सरकार ने पहली बार माना है कि देश मंदी की गिरफ्त में है और इसे रोकने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं।सरकार ने अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए कुछ कदम भी उठाये हैं।सरकार ने एफडीआई को लेकर जो ऐलान किये हैं, उससे डिमांड पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की कलम से विश्लेष्णात्मक खबर
आर्थिक विकास दर में गिरावट के बाद भारत से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का तमगा छिन गया है। अर्थव्यवस्था की हालत और बदतर हुई, जून तिमाही में जीडीपी विकास दर घटकर 5 फीसद रह गयी है।
यह साढ़े छह वर्षों का निचला स्तर है। साल 2013 के बाद जीडीपी ग्रोथ का यह सबसे बुरा दौर है।यह तब है जब जीडीपी की गणना 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद बदली प्रणाली से की गयी है जबकि यूपीए सरकार के मानदंडों से यदि गणना की जयकछुआ चाल से इसका समाधान सम्भव नहीं है बल्कि इसके लिए तीव्र गति से प्रयास करना पड़ेगा। तो यह मात्र 2 से 2. 5 फीसद के बीच ही बैठेगी।जीडीपी के वर्तमान हालात आर्थिक आपातकाल सरीखे हो गए है। कछुआ चाल से इसका समाधान सम्भव नहीं है बल्कि इसके लिए तीव्र गति से प्रयास करना पड़ेगा। सरकार को समझना होगा कि अब शेखी बघारने से काम नहीं चलेगा क्योंकि जीडीपी का गिरकर 5 फीसदी पर पहुंचना, उसके अब तक के दावों पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में देश की आर्थिक विकास दर घटकर महज पांच फीसदी रह गई है, जो साढ़े छह वर्षों का निचला स्तर है। पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में आर्थिक विकास दर 5.8 फीसदी रही थी। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों से यह जानकारी मिली है।
पहली तिमाही में देश की वृद्धि दर चीन से भी नीचे रही है। अप्रैल-जून तिमाही में चीन की आर्थिक वृद्धि दर 6.2 प्रतिशत रही जो उसके 27 साल के इतिहास में सबसे कम रही है। देश में घरेलू मांग में गिरावट तथा निवेश की स्थिति अच्छी नहीं रहने से पहले से ही उम्मीद जताई जा रही थी कि जून तिमाही में विकास दर का आंकड़ा पहले से ज्यादा बदतर रहेगा।वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था साल दर साल आधार पर महज पांच फीसदी की दर से आगे बढ़ी है। विकास दर का यह आंकड़ा बाजार की 5.7 फीसदी की उम्मीद से काफी कम है। साल 2013 के बाद जीडीपी ग्रोथ का यह सबसे बुरा दौर है।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पिछले वित्त वर्ष (2018-19) के 12.1 फीसदी की तुलना में महज 0.6 फीसदी की दर से आगे बढ़ा।एग्रीकल्चर, फॉरेस्ट्री तथा फिशिंग सेक्टर पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 5.1 फीसदी की तुलना में दो फीसदी की दर से आगे बढ़ा।माइनिंग सेक्टर पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 0.4 फीसदी की तुलना में 2.7 फीसदी की दर से आगे बढ़ा।इलेक्ट्रिसिटी, गैस, वाटर सप्लाई तथा अन्य यूटिलिटी सेक्टर पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 6.7 फीसदी की तुलना में 8.6 फीसदी की दर से आगे बढ़ा।कंस्ट्रक्शन सेक्टर पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 9.6 फीसदी की तुलना में 5.7 फीसदी की दर से आगे बढ़ा।ट्रेड, होटेल्स, ट्रांसपोर्ट, कम्युनिकेशन तथा सर्विसेज पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 7.8 फीसदी की तुलना में 7.1 फीसदी की तुलना में आगे बढ़ा।फाइनैंशल, रियल एस्टेट तथा प्रफेशनल सर्विसेज पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 6.5 फीसदी की तुलना में 5.9 फीसदी की दर से आगे बढ़ा।पब्लिक ऐडमिनिस्ट्रेशन, डिफेंस तथा अन्य सेवाएं पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के7.5 फीसदी की तुलना में 8.5 फीसदी की दर से आगे बढ़ा।
जीडीपी ग्रोथ में गिरावट पहली तिमाही में औद्योगिक उत्पादन वृद्धि के अनुकूल है, जो महज 3.6 फीसदी रही थी, जबकि पिछले साल की समान तिमाही में यह आंकड़ा 5.1 फीसदी था। बार-बार आने वाले आर्थिक सूचकों, जैसे वाहनों की बिक्री, रेल फ्रेट, डॉमेस्टिक एयर ट्रैफिक ऐंड इंपोर्ट्स (नॉन ऑइल, नॉन गोल्ड, नॉन सिल्वर, नॉन प्रेसियस और सेमी प्रेसियस स्टोन्स) ने उपभोग खासकर निजी उपभोग में गिरावट का संकेत दिया था, जबकि महंगाई दर कम रही थी।
आरबीआई ने लगातार चौथी बार रीपो रेट में कटौती की, लेकिन अर्थशास्त्री इसका असर तत्काल दिखने को लेकर आशंकित थे। लगातार चार बार में रिजर्व बैंक कुल एक फीसदी की कटौती कर चुका है। भारतीय रिजर्व बैंक ने जून की मौद्रिक समीक्षा में चालू वित्त वर्ष की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान सात प्रतिशत से घटाकर 6.9 प्रतिशत कर दिया था।
जीडीपी के आए नये आंकड़े के बाद सरकार की चूलें हिल गयी हैं। इसलिए आनन-फानन में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन नेमैदान में उतर आयीं और उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के 10 बैंकों को मिलाकर चार बैंक बनाए जाने का ऐलान कर दिया। यही नहीं इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 5 ट्रिलियन इकोनामी के सपने से जोड़ दिया।लेकिन सरकारी बैंकों के सुधार को लेकर सरकार ने जो कदम उठाए हैं,वे मंदी को रोकने की कोशिश कत्तई नहीं हैं। मोदी सरकार ने जो ताजा फैसला लिया है, वो भी पहले से ही तय था। बैंकों के विलय को लेकर जनवरी महीने से ही बात चल रही थी, लेकिन मई महीने में चुनाव होने की वजह से उस वक्त ये ऐलान नहीं किया गया।
सरकार ने पहली बार माना है कि देश मंदी की गिरफ्त में है और इसे रोकने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।सरकार ने अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए कुछ कदम भी उठाए हैं।सरकार ने एफडीआई को लेकर जो ऐलान किए हैं, उससे डिमांड पर कोई असर नहीं पड़ेगा। एफडीआई नियमों में दी गई ढील कुछ सहूलियतें जरूर हैं, लेकिन इससे फौरी तौर पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। सरकार को ऐसा लग रहा था कि एफपीआई के कैपिटल गेंस के ऊपर से सरचार्ज हटा लेने से शेयर बाजार का मूड ठीक हो जाएगा। लेकिन सरकार के इस फैसले के बाद के एफपीआई इस पूरे हफ्ते में नेट सेलर रहे हैं। यानी अगर नेट सेल हो रहा है तो स्पष्ट है कि सरकार के उपायों पर इन्वेस्टर का भरोसा अभी नहीं बना है।
विशेषज्ञों की मानें तो जब तक टैक्स की दरों में बड़ी कटौती नहीं की जाती, तब तक डिमांड नहीं आ सकती, प्रोडक्शन नहीं बढ़ सकता और इन्वेस्टमेंट को जो छलांग चाहिए वो नहीं मिल सकती। सरकार को टैक्स की दरों में बड़े पैमाने पर कटौती करनी चाहिए। उससे ही बड़ा बदलाव सम्भव है। सरकार यदि उन कामों में पैसा नहीं लगाएगी ,जो प्रोडक्टिविटी बढ़ाकर और जॉब क्रिएट कर सकते हैं तो अर्थव्यवस्था के रामजी ही मालिक हैं।