Home / Slider / “हम बस चलते चले गये”:2: बजरंगी सिंह

“हम बस चलते चले गये”:2: बजरंगी सिंह

*बजरंगी सिंह*
(अवकाश प्राप्त अध्यापक, पूर्व महामंत्री अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षक महासंघ)

वर्ष 2003 के जून माह में मैंने शिक्षा विभाग से अवकाश प्राप्त किया था, लगभग 17 वर्ष पूर्व! विश्वास ही नहीं होता कि एक लम्बी और सक्रिय पारी खेलने के बाद सेवा निवृत हुए भी लगभग दो दशक बीतने को हैं और मेरे मानस पटल पर अतीत की घटनाएं आज भी हिलोरें मारती रहती हैं। जीवन बहुत बदल गया है और आज की पीढ़ी को पुरानी बातों की कोई जानकारी नहीं है कि ये बदलाव कैसे आए, इनमें किसका योगदान है, कितनों ने अपना खून पसीना बहाया ताकि स्थितियां बेहतर हों। कई बरस पहले मेरे मन में अपने जीवन का वृतांत लिखने का भी विचार आया। मैं उसे लिपिबद्ध करने में जुट भी गया। अभी लिखना शुरू ही किया था कि जीवन में एक बड़ी अड़चन आ गई और यह कार्य आगे नहीं बढ़ पाया। सौभाग्य कहिए कि इसी बीच मेरे शुभ चिंतक वरिष्ठ पत्रकार स्नेह मधुर जी से वरिष्ठ पत्रकार के. एम. अग्रवाल के संबंध में वार्ता हुई तो उन्होंने मुझे भी लिखने की सलाह ही नहीं दिया बल्कि उत्साहित करने के साथ मार्गदर्शन भी किया। उसी प्रेरणा से मैंने अपनी जीवन यात्रा को एक बार पुनः लिपिबद्ध करने की शुरुआत कर भी दी है। सबसे अच्छी बात यह हुई है कि जब से मैंने यह संकल्प किया है, तब से मेरा जीवन उत्साह से भर गया है और मुझे एक नई ऊर्जा मिल गई है। मैंने अपने आप को युवा महसूस करने लगा हूं।

पिताजी के निधन के बाद मां के हस्तक्षेप पर आगे की पढ़ाई जारी रखने का जब बंदोबस्त हो गया तो मैं इलाहाबाद आ गया, जहां इलाहाबाद विश्विद्यालय के कला वर्ग के स्नातक में प्रवेश मिल गया। पढ़ाई के दौरान मैं काफी रिजर्व रहता था। पढ़ाई में मध्यम दर्जे का ही छात्र था।

स्नातक में प्रवेश लेने के बाद तो मेरा जीवन ही बदल गया। मेरे जीवन का अब एक नया अध्याय शुरू हो चुका था। विश्वविद्यालय में प्रवेश मिलने के बाद मेरे सामने गांव से रोज विश्वविद्यालय आ कर पढ़ाई करना पत्थर पर दूब जमाने जैसा ही था। मेरे जीवन की यह कठिन चुनौती मेरे सामने खड़ी थी। ऐसे में मुझे खुद ही निर्णय लेना था और फिर भी हमने गांव से प्रतिदिन शहर आ कर विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने का मन बना लिया। कक्षाएँ शुरू होने के बाद करीब 6 महीने तक सायकिल द्वारा आना जाना शुरू किया।

उस समय गंगा नदी पर पुल नहीं बना था। एक पीपे के पुल का ही सहारा था। फाफामऊ की ओर गंगा नदी पर एक पुल जरूर था, किन्तु उधर से आने में लम्बी दूरी तय करनी पड़ती थी। इसलिए झूंसी की ओर से आना-जाना शुरू हुआ। वर्षा शुरू होते ही पीपे का पुल तोड़ दिया जाता था। फिर नाव से ही नदी पार करना होता था। उस समय नदी की पार कराई दो आने (12पैसे) लगते थे।

उस जमाने के हिसाब से 12 पैसे भी आम आदमी के लिए दे पाना कठिन था। अधिकतर दूधिया लोगों का आना-जाना होता था। कई बार तो देर से पहुचने पर नाव छूट भी जाती थी। फिर दूसरी नाव के आने का इंतजार लम्बा हो जाता था। इससे अक्सर कक्षाएं छूट जाती थीं। घर से चूँकि पैसे खर्च लिए बहुत कम मिलते थे, इसलिए शहर में रह कर पढ़ाई करने की बात सोचना तक असंभव था।

उस समय गरीबों और दलितों को ब्याज पर पैसे और अनाज जमींदार लोग दिया करते थे। समय पर चूँकि वह वापस नहीं कर पाते थे, उसके कारण रकम इतनी अधिक हो जाती थी कि वे जीवन भर उनके गुलाम बने रहते थे।
उस समय गाँव में भाईचारा काफी मजबूत था। 10 किलोमीटर की परिधि के लोग एक दूसरे से परचित होते थे। शादी-ब्याह में पूरा गाँव उमड़ पड़ता था और कार्य में पूरी मुस्तैदी से हाथ बटाता था। इसके बावजूद भी क्षत्रियों में एक दूसरे के प्रति काफी प्रतिस्पर्धा थीं जो ईर्ष्या में बदल जाती थी। उस समय गॉवों मे आने-जाने के लिए कच्चा मार्ग ही था। आने-जाने के लिये को्ई साधन नहीं था। पैदल ही चल कर लोग हाट बाजार करते थे। कुछ समय के बाद साईकिल का प्रचलन शुरू हो गया। लेकिन तब तक जमींदारों के यहां मोटर साईकिल आ गई थी ।

क्रमशः 2

Bajrangi Singh

बजरंगी सिंह विद्यार्थी जीवन से संघर्षशील रहे हैं। शिक्षक बनने के बाद भी उस समय के निजी स्कूलों में शिक्षकों के साथ हो रहे अन्याय और शोषण के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई जिसके कारण स्कूल से चार वर्ष तक बाहर रहना पड़ा। शिक्षक के रूप मे जब दूसरी पारी शुरू किया तो उस समय शिक्षकों का प्रदेशव्यापी आन्दोलन शुरू हो गया था। उस समय तक बजरंगी सिंह प्रदेश में शिक्षक संघ के संगठन मंत्री बन चुके थे। उन्होंने हमेशा अग्रिम पंक्ति में रह कर आन्दोलन की अगुवाई की। शिक्षकों की मॉगो को लेकर आन्दोलन करते हुए कई बार लखनऊ की जेल भी गए। 1976 में तो विधानसभा के सामने प्रर्दशन करते हुए कई शिक्षकों के साथ लखनऊ के जिला जेल भी भेजा गया। वहाँ उन्हें सभी लोगो के साथ 10 दिनों तक बंद रखा गया। बंदी शिक्षकों से जेल मे मिलने उस समय के जाने-माने समाजवादी नेता राजनारायण सिंह जब आए तो पूरे जेल में हलचल मच गई। उसके दूसरे दिन ही बंदी शिक्षकों को रिहा कर दिया गया। बजरंगी सिंह दो बार इलाहाबाद और झांसी शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से एमएलसी का चुनाव भी लड़ चुके हैं। उन्हें पढ़ने का भी शौक रहा है। जब वह दसवीं के छात्र थे तभी उन्होंने रामायण, महाभारत और सुखसागर का अध्ययन कर लिया था। 

Check Also

NSS का सात दिवसीय विशेष शिविर का शुभारंभ विज्ञान संकाय के गणित विभाग में

प्रयागराज,  18 मार्च 2025. इलाहाबाद विश्वविद्यालय परिसर, राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई संख्या 5 एवं 10 का ...