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होली: महालंठ सम्मेलन : के एम अग्रवाल

के.एम. अग्रवाल

सालों से मन में यह बात आती थी कि कभी आत्मकथा लिखूँ। फिर सोचा कि आत्मकथा तो बड़े-बड़े लेखक, साहित्यकार, राजनेता, फिल्मकार, अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी, वैज्ञानिक, बड़े-बड़े युद्ध जीतने वाले सेनापति आदि लिखते हैं और वह अपने आप में अच्छी-खासी मोटी किताब होती है। मैं तो एक साधारण, लेकिन समाज और देश के प्रति एक सजग नागरिक हूँ। मैंने ऐसा कुछ देश को नहीं दिया, जिसे लोग याद करें। पत्रकारिता का भी मेरा जीवन महज 24 वर्षों का रहा। हाँ, इस 24 वर्ष में जीवन के कुछ अनुभव तथा मान-सम्मान के साथ जीने तथा सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस विकसित हुआ। लेकिन कभी लिखना शुरू नहीं हो सका।

एक बार पत्रकारिता के जीवन के इलाहाबाद के अनुज साथी स्नेह मधुर से बात हो रही थी। बात-बात में जीवन में उतार-चढ़ाव की बहुत सी बातें हो गयीं। मधुर जी कहने लगे कि पुस्तक के रूप में नहीं, बल्कि टुकड़ों-टुकड़ों में पत्रकारिता के अनुभव को जैसा बता रहे हैं, लिख डालिये। उसका भी महत्व होगा। बात कुछ ठीक लगी और फिर आज लिखने बैठ ही गया।

गतांक से आगे…

‘मेरा जीवन’: के.एम. अग्रवाल: 78: 

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होली: महालंठ सम्मेलन

सामान्यतयः होली मिलन समारोहों में लोग एक दूसरे से गले मिलने का कार्यक्रम रखते हैं। इस दौरान कुछ लोग होलिकाना अंदाज में अथवा प्रेम में पगे हुए गीत आदि सुना देते हैं। कभी कभी कुछ विशेष पेशे से जुड़े अथवा जातियों से जुड़े होली मिलन समारोहों में लोगों के खास भाषण भी हो जाते हैं। लोग अकेले अथवा परिवार के साथ अपने मित्रों, परिचितों के यहां मिलने भी जाते हैं। यह सब सप्ताह भर तक चलता रहता है।

महराजगंज आने के बाद यहां के पी.जी. कालेज के समाज से, जमीन से जुड़े कुछ प्रोफेसरों से निकट का संपर्क हुआ। प्राइवेट चिकित्सकों, राजनीतिक लोगों, अधिवक्ताओं तथा समझदार व्यापारियों से भी निकटता हुई, तो सोचा कि परंपरा से हटकर होली मिलन समारोह होना चाहिए। वैसे महराजगंज में होली मिलन के नाम पर पचासों साल से एक बहुत पुरानी परम्परा है कि शाम होते ही लोग यहां के मुख्य चौराहे पर, जिसे अब सक्सेना चौक कहते हैं, इकट्ठा होने लगते हैं और खड़े खड़े एक दूसरे से मुस्कुरा कर गले मिलते रहते हैं। इस प्रकार एक ही जगह पर पचासों लोगों से मुलाकात हो जाती है।

मैंने होली मिलन समारोह के नाम पर ‘ महालंठ सम्मेलन ‘ की कल्पना की। समाज के हर वर्ग, पेशे जैसे शिक्षा, वकालत, चिकित्सा, व्यापार, इंजीनियरिंग, किसानी आदि से एक एक या दो दो ऐसे व्यक्तियों को चुना जो बहिर्मुखी हों, व्यंग्य को समझते, बोलते और सह लेते हों। इन सभी को एक मंच पर बैठाकर, सब्जियों आदि से बने माले तथा मसखरों जैसी टोपियां पहनायी जाती और फिर व्यंग्यात्मक अभिनंदन पत्थर हर एक के लिए पढ़ा जाता। मंचासीन महानुभावों के लिए अलग अलग उपाधियां भी होती थीं। मुख्य आयोजनकर्ता मैं ही होता। मंच और पंडाल को भी होलिकाना अंदाज में सजाया जाता। इस बात का हमेशा ध्यान रखा गया कि कोई यह न जानने पाते कि किसका अभिनंदन पत्थर किसने लिखा है। और आज तक भी कोई इस बात को जान नहीं सका है।

महालंठ सम्मेलन के देवता ‘ गर्दभ राज ‘ हुआ करते थे। पहले वर्ष तत्तकालीन सदर विधायक चन्द्र किशोर ने गर्दभ राज के चित्र से पर्दा हटाकर सम्मेलन का उद्घाटन किया तो सभी लोग ठहाका लगाने लगे। वह दृश्य देखने लायक था। इस अवसर पर शंख और घंटे की ध्वनि के बीच
‘ ओम जै लंठेश हरे….’ के साथ गर्दभ राज की आरती होती थी।

एक वर्ष तो इस अवसर पर तत्कालीन जिलाधिकारी अरुण आर्या को मुख्य अतिथि के रूप में आना था, लेकिन कमिश्नर ने उन्हें गोरखपुर बुला लिया था। हम लोगों का कार्यक्रम शुरू हो चुका था। इस बीच वह महराजगंज लौटे तो सीधे मंच पर आ गये। इस कार्यक्रम को देखकर वह बहुत खुश नजर आ रहे थे। उन दिनों जिले में साक्षरता अभियान भी चल रहा था, जिसमें आर्या जी विशेष रुचि लेते थे। मंच पर हमने उन्हें एक तलवार भेंट की और कहा गया कि इससे आप अशिक्षा के अंधकार को काटिये।

आर्या जी तलवार को लेकर मंच पर खड़े हो गये और एक आकर्षक पोज में फोटो खिंचवाई। जब उन्हें बोलने का अवसर मिला, तो सबसे पहले उन्होंने ‘ लंठ ‘ शब्द (LANTH) का अर्थ इस प्रकार बताया, Let All Noble Things Be Here. और फिर दर्शक दीर्घा तालियों से गूंजने लगा।

इस प्रकार के तीन बार आयोजित महालंठ सम्मेलनों में मंच पर सम्मानित होने वालों में कुछ नाम याद आ रहे हैं। गांधी सिंह, प्रो.विजय रंजन वर्मा, डा.घनश्याम पाण्डेय, डा.आर.के.मिश्रा, डा.परशुराम गुप्त, डा.कैलाश सिंह, प्रो.इनामुल्ला सिद्दीकी, डा.घनश्याम शर्मा, डा.श्रीनिवास गुप्त, सांसद कुंवर अखिलेश प्रताप सिंह, विधायक जनार्दन प्रसाद ओझा, डा.ठाकुर भरत श्रीवास्तव, डा.रश्मि श्रीवास्तव, डा.भरतलाल, डा.एस.के.वर्मा, श्रीमती विद्यावती त्रिपाठी, चारु चन्द्र श्रीवास्तव एडवोकेट, नर्वदेश्वर पाण्डेय एडवोकेट, बनवारी लाल गोयनका, हरी सिंहानिया, फूलचंद अग्रवाल  आदि कुछ ऐसे ही महारथी थे, जो मंच की शोभा बढ़ा चुके हैं।

पहली बार का आयोजन यहां के दुर्गा मंदिर प्रांगण में हुआ। उस समय खाने-पीने की चीजों में ठंडी की भी व्यवस्था की गयी। मैंने एक पुराने दुकानदार से पता किया कि अच्छी ठंडई में क्या क्या पड़ता है। सामान लाकर घर पर दे दिया। घर पर दूध देने वाले ग्वाले माऊ से बात की तो वह सिल-लोढे पर ठंडई पीसने को तैयार हो गया। लेकिन क्या बताऊं, ऐन वक्त पर वह बीमार पड़ गया। मैं परेशान। पत्नी की ओर देखा, वह मेरी परेशानी समझ गयीं। और फिर उन्होंने दो-तीन घंटे मेहनत करके तीन सौ गिलास ठंडई का मसाला पीस ही दिया। पीने वालों ने ठंडई की तारीफ की।

हर बार इस प्रकार के आयोजन में अच्छे खासे श्रम के साथ धन का भी खर्च था। तीन बार तो इस प्रकार महालंठ सम्मेलन कराये गए। फिर तो यह बंद हो गया। प्रश्न था, कौन अगुवाई करे ?

के एम अग्रवाल:

 +919453098922

क्रमशः 79

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