महाराष्ट्र में जनादेश का सम्मान
डॉ दिलीप अग्निहोत्री
संसदीय व्यवस्था के अंतर्गत सदन में संख्या का संवैधानिक महत्व होता है। महाराष्ट्र में भाजपा अन्य पार्टियों से बहुत आगे थी, लेकिन बहुमत से दूर थी। इसका दूसरा पक्ष यह कि उस गठबन्धन के साथ सरकार बनाने का जनादेश मिला था।
शिवसेना ने पलटी न मारी होती तो वही गठबन्धन सत्ता में होता। उसने पैंतरा बदला तो परिस्थिति बदल गई। इस परिस्थिति में अजित पवार आगे बढ़े। शिवसेना ने जगह खाली की थी, उसे अजित ने भरा। इस तरह भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनी। इस तरह जनादेश का ही सम्मान हुआ है।
महाराष्ट्र का जनादेश भाजपा नेतृत्व में शिवसेना गठबन्धन सरकार के लिए था। लेकिन यह तभी संभव था जब शिवसेना इस जनादेश को स्वीकार करती। लेकिन वह पारिवारिक स्वार्थ में जनादेश को अपमानित कर रही थी। उसके संस्थापक बाल ठाकरे ने कांग्रेस के विरोध में शिवसेना की स्थापना की थी। लेकिन उद्धव ठाकरे कुर्सी के लिए कांग्रेस की शरण में चले गए थे।
जबकि शिवसेना के नेतृत्व में सरकार गठित करने के लिए जनादेश ही नहीं थी। उसे भाजपा से करीब आधी सीटें ही मिली थी। यदि शिवसेना उपमुख्यमंत्री के लिए मचलती तो बहुत संभव था कि भाजपा इसके लिए तैयार हो जाती। क्योंकि भाजपा यथासंभव जनादेश के सम्मान हेतु तैयार थी। उसकी प्राथमिकता या वरीयता शिवसेना ही थी।
लेकिन शिवसेना इसके लिए तैयार ही नहीं थी। स्वार्थ में वह हकीकत को समझने के लिए भी तैयार नहीं थी। उसे समझना चाहिए था कि कांग्रेस उसे घोषित रूप से साम्प्रदायिक पार्टी मानती है। वह आसानी से उसके नेतृत्व में बनने वाली सरकार को समर्थन नहीं करेगी।
यही सब सामने आया। कांग्रेस और एनसीपी की कई चरण की मीटिंग होती रही। इनमें कोई निर्णय ही नहीं किया जा सका। एक बार तो बैठक से बाहर निकल कर शरद पवार ने कहा था कि इसमें सरकार के संबन्ध में चर्चा ही नहीं हुई। इसका मतलब था कि जिस मुख्य एजेंडे पर बैठक हो रही थी, उस पर विचार ही नहीं किया गया।
यह स्थिति शिवसेना के लिए अपमानजनक थी। लेकिन फिर वही अंधा स्वार्थ। ऐसा लगा जैसे शिवसेना कुछ सोचने समझने की ताकत ही खो चुकी है। उसे सपने में भी मुख्यमंत्री की कुर्सी नजर आ रही थी।
गौरतलब यह है कि इस पूरी अवधि में भाजपा मौन थी। वह अन्य पार्टियों की गतिविधियां देख रही थी। शिवसेना,कांग्रेस और शिवसेना को पूरा अवसर मिला। वह मीटिंग ही करते रहे। इसका मतलब था कि उनके बीच कुछ भी साझा नहीं था। जबकि इस दौरान कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के भीतर ही नाराजगी बढ़ रही थी। एनसीपी के अनेक विधायक सोच रहे थे कि शिवसेना की सरकार बनवाना गलत है। शिवसेना में भी ऐसा सोचने वाले विधायक है जो कांग्रेस के साथ जाने को गलत मानते है।
भाजपा शिवसेना गठबन्धन ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री के रूप में पेश करके चुनाव लड़ा था। महाराष्ट्र के मतदाताओं ने उनके नेतृत्व में सरकार के लिए जनादेश दिया। अब इस जनादेश का सम्मान हुआ है। देवेंद्र फडणवीस पुनः मुख्यमंत्री बने। शिवसेना ने जनादेश को स्वीकार नहीं किया। इस कमी को अजीत पवार ने पूरा किया। वह उपमुख्यमंत्री बने है।
शरद पवार अब सिद्धांत की बात कर रहे है। वह शिवसेना से तालमेल बना रहे थे, तब ठीक था। अब अजित पवार भाजपा से मिल गए, तो सिद्धांतो की दुहाई देने लगे। जबकि अजित पवार ने महाराष्ट्र की स्थिरिता के लिए ही निर्णय लिया है। शरद पवार ने कहा कहा कि महाराष्ट्र सरकार बनाने के लिए भाजपा को समर्थन देने का अजीत पवार का निर्णय उनका व्यक्तिगत निर्णय है। यह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का निर्णय नहीं है।
शरद पवार ने कहा कि हम अजीत पवार के इस फैसले का समर्थन नहीं करते हैं। अजित पवार पर वरिष्ठ राकांपा नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि यह राकांपा का निर्णय नहीं है और इसमें शरद पवार का भी कोई साथ नहीं है। जबकि चर्चा थी कि शरद पवार भी देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में सरकार बनाने के निर्णय के विरोध में नहीं थे।
वह स्वयं उपमुख्यमंत्री के लिए अपने भतीजे अजीत पवार के नाम पर सहमत थे।
भोर में करीब पौने छह बजे राष्ट्रपति शासन को हटा दिया गया था। इसके बाद भाजपा के देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और अजीत पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
इस प्रकरण में कांग्रेस एनसीपी शिवसेना को अवश्य नुकसान हुआ है। तीनों सरकार बनाने की तैयारी कर रहे थे। अभी तक कांग्रेस साम्प्रदायिक शक्तियों को रोकने के लिए कुछ भी करने को तैयार दिखती थी। अब शिवसेना से उंसकी दोस्ती के बातों के साथ कांग्रेस का कथित सेक्युलर दावा समाप्त हो गया। यही बात एनसीपी पर लागू है।
शिवसेना हिंदुत्व व राममंदिर की बात करती थी, लेकिन बिना न्यूनतम साझा कार्यक्रम के कांग्रेस की शरण मे चली गई। वह भी बेनकाब हुई है। ये कथित साम्प्रदायिक व सेक्युलर पार्टियां महाविकास आघाड़ी के नाम से जुगलबंदी कर रही थी। तब शरद पवार कह रहे थे कि सरकार का नेतृत्व शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के हाथ में रहने पर सहमति बन गई है। अन्य सभी मुद्दों पर भी तीनों दलों के बीच चर्चा जारी है।
महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत के लिए एक सौ पैंतालीस की संख्या आवश्यक है। भाजपा शिवसेना गठबन्धन बहुमत में था। लेकिन शिवसेना के पैंतरे के बाद बारह नवंबर को राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी थी।