पंकज श्रीवास्तव
केरल में एक गर्भवती हथिनी की दर्दनाक मौत कुछ शरारती तत्वों की वजह से हो गई। भूखी हथिनी को लोगों ने अनन्नास के साथ पटाखे खिला दिए जो उसके मुंह के अंदर फट गए। घायल हथिनी दर्द से छुटकारा पाने के लिए गहरे पानी में चली गई जहां उसकी जल समाधि हो गई।
“मानव” के प्रति अपनी घृणा व्यक्त करने के लिए जिसने एक बेजुबान जानवर के प्रति वह व्यवहार किया जिसे “पशुवत” भी नही कह सकते क्योंकि पशु तो अक्सर मानव के प्रति “मानवीयता” का भाव प्रदर्शित करते देखे गए हैं। ऐसे व्यवहार को तो राक्षसी या दानवीय ही कहा जाना समीचीन होगा।
घटना देश के सर्वाधिक साक्षर राज्य केरल की है। एक गर्भवती हथिनी अपनी क्षुधा को शांत करने की गरज से जंगल छोड़कर गाँव मे आ जाती है। उसे क्या मालूम था मानव कहे जाने वाले लोगों की बस्ती में उसकी क्षुधा शांत करने के लिए उसे कोई ग्रास नहीं देगा बल्कि उसे ही काल का ग्रास बनने पर विवश कर दिया जाएगा।
गाँव में भूखी हथिनी के साथ किसी ने दानवीय कृत्य किया और उसे वह पाइनापल (अनानास ) खाने को दिया जिसमें जलते पटाखे भरे थे। पटाखे हथिनी के मुँह में फटे और उसका मुँह बुरी तरह जख्मी हो गया। दर्द से कराहती हथिनी अपने मुँह के जख्म व जलन लिए यहाँ-वहाँ भटकती रही लेकिन उसने पशुता नही दिखाई, किसी को भी रत्ती भर नुकसान नही पहुँचाया। भटकते हुए वह एक नदी के समीप पहुँची। शायद वह मुँह की जलन मिटाने के लिए पानी ही तलाश रही थी। वह नदी में उतर कर अपना मुँह पानी मे डुबोकर तीन दिन लगातार भूखी खड़ी रही। वन विभाग के कर्मचारियों को खबर लगी तो उन्होंने हथिनी को नदी से निकालने के भरसक प्रयास किए लेकिन वह बाहर नही आई और अंततः अपने प्राण त्याग दिए।
घटना बीते माह के अंतिम सप्ताह की है लेकिन हमारे सामने तब आई जब हथिनी को बाहर निकालने के प्रयास करने वाले वन विभाग के एक अधिकारी ने अपनी फेसबुक पोस्ट में इसका विवरण दिया।
बताते हैं कि केरल में खेत को जंगली सुअरों से बचाने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। किसानों के रक्षात्मक तरीकों से अनेकों प्रजाति के हजारों जानवर मारे जाते हैं। तीन सौ के करीब हाथी भी मारे जाते हैं। संभवतः इसी का शिकार हथिनी हो गई। तीन दिन तक हथिनी तड़पती रही लेकिन वन विभाग ने उसे बचाने की कोई कोशिश नहीं की।
पंकज श्रीवास्तव अधिवक्ता उच्च न्यायालय प्रयागराज
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