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“मैं तालिबान को तबसे जानता हूं जब तालीबान नामक संगठन पैदा भी नहीं हुआ था”

 “अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का कब्जा”

सन् 1960 से 1964 तक मैं आलमा शिवली नोमानी काॅलेज आजमगढ़ का छात्र रहा।‌ उस समय हमारे प्रिंसिपल श्री शौकत सुलतान साहब थे। वे बड़े ही प्रभावशाली और अनुशासन पसंद व्यक्ति थे। उनके पिता ICS सेवा से अवकाश प्राप्त थे। जब प्रिंसिपल साहब का बाहर काॅलेज का राउंड लेने का समय होता तो उनका चपरासी बाहर निकल कर बड़ी तेज आवाज़ से हिदायत देते हुए कहता था कि सारे तालबिल्म अपनी अपनी किलास में चले जाएं , कोई बाहर‌ नज़र न आए तथा खातून अपने ख़ातूनखा़ने में पहुंच जाएंं। ऐसा कहता हुआ वह उर्दू एकेडमी, साइंस काॅलेज, आर्ट्स काॅलेज सबके सामने घूमता था।

कहने का मेरा मतलब यह है कि मैं तालिबान को तबसे जानता हूं जब तालीबान नामक संगठन पैदा भी नहीं हुआ था। तालिबान दो शब्दों से मिलकर बना है।‌ तालिब और इल्म । तालिब का अर्थ है इच्छुक और इल्म का अर्थ है ज्ञान। यह कुरान शरीफ़ के फंडामेंटलिस्ट हैं। ये सैद्धांतिक रूप से कुरान शरीफ़ के अनुसार शासन व्यवस्था के हिमायती हैं। जिसमें अनेक तरह के सामाजिक एवं आर्थिक प्रतिबंध हैं।‌ ये एकात्म सत्तावादी हैं। जिसकी सत्ता कुरान के जानकार ख़लीफ़ा के हाथ होनी चाहिए। अफ़ग़ानिस्तान उनका soft target था जहां पर बहुसंख्य मुसलमान आबादी होते हुए भी प्रजातंत्रात्मक व्यवस्था है/थी।‌‌

पाकिस्तान घोषित मुसलमीन देश‌ है। इस सिद्धांत की आड़ लेकर वह तालिबान का भरण पोषण, शक्ति समर्थन, अस्त्र शस्त्र सब उपलब्ध कराता है। कहने को तो तालिबान मुस्लिम फंडामेंटलिस्ट है लेकिन शहरों पर कब्जा होने के पश्चात शहर को लूटने , हत्या करने , हजारों सैकड़ों औरतों को पकड़ कर अपने सेना कैंप में ले आने में इनका कोई परहेज़ नहीं है।

खै़बर गोलन दर्रा़ अब इनके कब्जे में आ गया है जो सातवीं शताब्दी से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक भारत वर्ष पर मुसलमानों के आक्रमण का एक मात्र मार्ग था/ है।‌ सातवीं शताब्दी में इसी मार्ग से मोहम्मद बिन कासिम का आक्रमण तत्कालीन सिंध के ब्राह्मण राजा दाहिर पर हुआ था। यह आक्रमण आकस्मिक आक्रमण था जो मुसलमानों से दुरभि संधि का परिणाम था। राजा दाहिर धोखे से मारे गए और सिंध पर अफ़गानों का राज हो गया। इसी ख़ैबर दर्रे से मोहम्मद ग़जनी, मोहम्मद गोरी सभी सुलतान और सबसे पश्चात अफ़ग़ान के राजा इब्राहिम लोदी का भी आक्रमण हिंदुस्तान पर हुआ था और भारत वर्ष मुसलमान राज के आधीन बहुत दीर्घ काल तक रहा था। इसी दर्रे़ से 1526 में बाबर द्वारा इब्राहिम लोदी पर आक्रमण हुआ । पानीपत की प्रथम लड़ाई के नाम से यह युद्ध जाना जाता है। कहते हैं कि बाबर जब ख़ैबर दर्रे को पार किया और पंचनदु के विशाल सुविस्तारित क्षेत्र को देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। वो जंगलों पहाड़ियों के बीच जीवन बिताने वाला एक बर्बर जाति का नेता था। उसने ख़ैबर के पास रहकर अनेक तरह की तलवारें बनवाईं। लंबी, चौड़ी, लचकदार, भारी ,छोटी जिसके बनाने वाले लोग वहां सनातन से रह रहे थे और अब भी रहते हैं। यह भारत का उत्तरापथ कहा जाता था। बाबर वहां रहकर अपना संगठन खड़ा किया और‌ दिल्ली पर आक्रमण कर पानीपत से इब्राहिम लोदी को कत्ल कर दिल्ली का बादशाह बन गया। आगे की कथा कहानी वर्तमान पीढ़ी में भी सुविख्यात है।

भगवान श्रीकृष्ण ने अपरिमेय पराक्रम कर के भारत की सीमा ईरान तक बढ़ाई थी। कौरव राजा धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी अफ़ग़ानिस्तान के राजा गांधार की पुत्री थीं। पूरब में भारत का विस्तार ब्रम्हपुत्र तक था। भीम की एक पत्नी हिडिंबा मणिपुर की थीं। भगवान श्रीकृष्ण की भी एक पत्नी त्रिपुरा की थीं। भगवान श्रीकृष्ण के विषय में महाभारत तथा श्रीमद्भागवत पुराण में उतनी जानकारी नहीं है जितनी की तत्कालीन अनुसांगिक ग्रंथों में है।‌
अक्षोहिणी: नाम पतिभि: असुरै: नृप लांक्षनै: ।
भुई आक्रम्यमाणानां अभरायै कृतोद्यम: ।।

अर्थात् भगवान श्रीकृष्ण के समय पूरे भारत वर्ष को आक्रमित कर असुरों ने अपने अधिकार में कर लिया था जो राजा के दस लक्षणों ( सिंहासन, छत्र, कोष, आमात्य, सेना, भूमि आदि) से युक्त थे। अर्थात् पूर्णरूप से स्थाई हो गए थे। जिसको भगवान श्रीकृष्ण और उनके बड़े भाई बलदेव ने नष्ट भ्रष्ट कर पूरे भारत भूमि का भार उतार दिया था। शेष जो बचे थे वो महाभारत के युद्ध रूपी यज्ञ की आग में काम आ गए। ऐसा कर के इस भारत को इसके पूर्ण अस्तित्व में विस्तारित कर भारत भूमि का नाम महाभारत कर इसकी रक्षा सुरक्षा के लिए पांडवों के सुपुर्द कर दिया था।

अफ़गान में ही महात्मा बुद्ध की बहुत विशाल प्रतिमा थी। जिसे इन्हीं आतंकवादियों द्वारा कुछ साल पहले तोप से उड़ा दिया गया। इसी अफ़ग़ानिस्तान में तक्षशिला नामक सुप्रसिद्ध विशाल विश्वविद्यालय था। जिसमें संस्कृत व्याकरणाचार्य पाणिनि , चाणक्य , आर्यभट्ट जिन्होंने अक्षांशों और देशांतरों का गणितीय आधार दिया तथा वे खगोल‌ विद्या के प्रकांड पंडित थे। ईरान में स्थित काकेशस क्षेत्र के महाराजा की पुत्री कैकेई महाराजा दशरथ की पत्नी थीं। महाराजा दशरथ के देहावसान के समय उनके पुत्र भरत सुदूर ईरान में ही थे। वह क्षेत्र उस वक्त आर्यान के नाम से जाना जाता था। यह आर्य परंपरा के लोग अग्नि के उपासक थे। जिनको कालांतर में पारसी कहा जाने लगा और क्षेत्र को पारस के नाम से जाना जाने लगा। यहां तक कि बारहवीं शताब्दी तक हमारे क्षत्रियों में यहां के लोगों से रोटी बेटी का संबंध था। बारहवीं शताब्दी में तुर्की के ख़लीफा के आक्रामक विस्तारवाद का यह क्षेत्र शिकार हो गया। यहां के कुछ लोग पारसी के रूप में आज भी हर क्षेत्र में उद्यमशील हैं। शेष मुसलमान हो गये।

वर्तमान तालिबान परिस्थिति अत्यंत ही विषम है। चाहे वह नियति द्वारा प्रेरित की गई हो अथवा परिस्थिति जन्य हो, पूरे भारत के जनगण को इससे निबटना ही पड़ेगा।‌ भारत इससे भाग नहीं सकता।

जैसा मुझे स्पष्ट हो रहा है तालिबान पहले पाकिस्तान की राज्य व्यवस्था को नष्ट कर वहां के आतंकवादियों के समर्थन से वहां की सैन्य शक्ति तथा कोष को अपने अधीन करेगा। कशमीर के लोग इसके सहायक होंगे जो अंत में इसी के द्वारा ही मारे जायेंगे तथा महिलाएं आत्मघात को मजबूर होंगी। आज माननीय प्रधानमंत्री जी का चौदह अगस्त को भारत की त्रासदी दिवस मनाने संबंधी घोषणा इस बात का संदेश है कि विभाजन में हजारों लोग मारे गए थे। धन जन एवं कुटुंब की हानि हुई थी इसलिए भारत के लोग एक मंत्र होकर आगामी महा विध्वंस के प्रति सावधान हो जाएं।‌‌

लेखक

©यू बी तिवारी
अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता सिंचाई विभाग

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