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“चिकित्सक शिथिल हो गए तो हमारी आपकी रक्षा करने के लिए कोई नहीं बचेगा”

आचार्य अमिताभ जी महाराज

प्रयागराज।

आचार्य अमिताभ जी महाराज कोरोना संक्रमण के संदर्भ में कहते हैं कि  हम सभी आधुनिक संदर्भ में एक ग्लोबल विलेज की संकल्पना के अनुसार अपना जीवन यापन कर रहे हैं। अर्थात कहीं पर कुछ घटित हो तो उसका प्रभाव विश्व के अन्य अन्य भागों पर अवश्य पड़ता है।

“कोरोना की व्याधि वास्तव में भारत से गए हुए प्रोफेशनल सामर्थ्यवान लोग या जो विदेश यात्राएं मनोरंजन के उद्देश्य से भी कर सकते हैं, उनके माध्यम से दुर्भाग्यपूर्ण प्रक्रिया से भारतवर्ष में प्रविष्ट हुई है। यद्यपि वह इसके लिए दोषी नहीं है।

“समस्या यह है कि अपने साधनों के आश्रय से वह तो इस व्याधि से मुक्त होने में यथासंभव सफल हो रहे हैं, जैसा कि परिलक्षित होता है। किंतु यदि निम्न वर्ग या मध्य वर्ग में इसका सामुदायिक संक्रमण संपन्न हो गया तो उनके लिए इसके प्रभाव को सहन कर पाना तथा अपने अस्तित्व की रक्षा कर पाना कठिन होगा। क्योंकि समस्त प्रयासों के किए जाने के बावजूद भी शासन के साधन इतनी बड़ी महामारी को बहुत बड़े स्तर पर संभाल पाने में इतने सक्षम नहीं है जितना की अपेक्षित होता है। किंतु अब यह एक कठोर वास्तविकता है तथा हमको कुछ विशेष बातों पर ध्यान अवश्य देना चाहिए।
“जो कोरोना से संक्रमित हो गए हैं तो यह कोई स्टिग्मा या कोई सामाजिक कलंक नहीं है। यह एक व्याधि मात्र है, अतः व्याधि ग्रस्तों के प्रति दुर्भावना नहीं होना चाहिए तथा इसके साथ-साथ जो व्याधि से निवृत हो गए हैं, उनको समाज में पुनः सहज रूप से स्वीकार करने की भी बड़ी आवश्यकता है अन्यथा वह बहुत बड़े स्तर पर मनोवैज्ञानिक सामाजिक असंतुलनओं का सामना करते हुए अपने इस बचे हुए जीवन को यथा रीति चला पाने में सक्षम नहीं हो पाएंगे।

“बाकी जो दुष्टता से, अपने असंतुलन से व्याधि के प्रसार और प्रचार में योगदान दे रहे हैं, उनके विषय में मुझे कुछ नहीं कहना है। क्योंकि वह तो शासन का दायित्व है तथा वह इन सभी को नियंत्रित करने में अपने सामर्थ्य का भली प्रकार से प्रयोग कर ही रहा है।

“मेरा यह भी कहना है सभी भारतीयों से इस समय इस व्याधि को नियंत्रित करने के लिए तथा उपचार करने के लिए चिकित्सक प्राण प्रण से लगे हुए हैं, अपने प्राणों को संकट में डाल कर साधनहीनता के अभाव के साथ में वह मानव सेवा माधव सेवा की संकल्पना को चरितार्थ कर रहे हैं, अतः हम को भी उनके प्रति सम्मान और सहिष्णुता का परिचय देना चाहिए। आजकल समाचार आ रहे हैं कि जहां पर वह रहते हैं, वहां से उनको निकालने के प्रयास हो रहे हैं, जनता उन्हें अपमानित कर रही है, प्रताड़ित कर रही है। यह कौन आचरण है जो तुम्हारे लिए अपने प्राणों की आहुति अर्पित कर देने के लिए तत्पर हैं, तैयार हैं, उनके साथ प्रकार का जो अनाचरण है यह राक्षसीय ही हो सकता है, मानवीय तो नहीं हो सकता।

“याद रखें, यदि चिकित्सक शिथिल हो गए तो हमारी आपकी रक्षा करने के लिए कोई नहीं बचेगा। अतः उनके इस योगदान को स्वीकार करिए, उनका सम्मान करिए और मुख्यधारा में उनकी स्थिति को स्वीकार करते हुए उनके कार्य को सहज बनाने में निरंतर निरंतर सहयोग प्रदान करें।  

“तथा अंत में मैं यही कहूंगा कि अपने आप को सुरक्षित रखिए। आप यदि अपने आप को सुरक्षित रख पाए तो आपके द्वारा की जाने वाली यह सबसे श्रेष्ठ राष्ट्र सेवा होगी। यही कार्य इस समय सर्वाधिक प्रासंगिक है, संदर्भ तो बहुत सारे हैं किंतु तात्कालिक संदर्भ में बस इतना ही।
शुभम भवतु कल्याणम!!!

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