
दिनेश कुमार गर्ग , उप निदेशक ( सेनि), स्वतंत्र लेखक

चीन पर शह या मात ?
मई-जून महीने से लद्दाख के गलवान और पेंगोन्ग त्सो (झील ) पर चीन की फौजों के रणनीतिक जमाव और 15 जून की झड़प अब 29-30 अगस्त तक शह मात के खेल में बदल गयी है ।
विगत 30 अगस्त को सुशांत राजपूत के हत्या-आत्महत्या के घनघोर घटनाक्रम के बीच अचानक जब न्यूज चैनलों पर फ्लैश आने लगे कि पैन्गोन्ग त्सो के दक्षिणी तट पर फिंगर 8 पर फिर से झड़प हुई है, चीनियों को भारतीय सैनिकों ने पीट-पीटकर भगा दिया है और भारतीय सेना का कोई जवान हताहत नहीं हुआ, तो एक महाशक्ति के साथ युद्ध के भय, रोमांच और कौतूहल का देश व्यापी माहौल बन गया। बहरहाल शाम तक आते आते यह स्पष्ट हो गया कि दोनों देशों की घोर सैनिक पेशबन्दी के बावजूद चीन या भारत युद्ध करने नहीं जा रहे हैं। यह इस कारण क्योंकि भारत सरकार की तरफ से आये बयानों में कोई उत्तेजना नहीं थी, केवल अपनी सीमा सुरक्षा के प्रति संकल्प था और उधर चीन सरकार के बयानों में भी युद्ध की भाषा नदारद थी। इससे यह स्पष्ट हो रहा था कि चीन भारत की जमीन पर कब्जा बढा़ना चाहता तो है, मगर केवल सैनिक धमकी और भभकी दिखाकर । यह उसकी एक पुरानी नीति है जो उसने दक्षिणी चीन सागर में अपनाई और आंशिक सफलता भी प्राप्त की। वियतनाम, फिलीपीन्स, जापान और ताइवान को धमकाने, वार्निंग शाॅट्स दागने, वियतनाम की नौका डुबाने के काम कर उसने एक अन्तर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र को लगभग निजी अधिकार वाले क्षेत्र में बदल दिया है। वहां एक कृत्रिम टापू भी बनाकर उसे सैन्य अड्डे में बदलने का काम कर रहा है।
अब उसी सफलता से प्रेरित होकर उसने सबसे पहले बेल्ट रोड इनीशियेटिव में बंगलादेश को कनेक्ट करने के लिए डोकलाम पर प्रयास किया पर वहां भी भारतीय सरकार ने चीन की महत्वाकांक्षा को चेकमेट किया। 76 दिनों तक आंखों मेंआंखे डालकर सेनाएं जमी रहीं और जब कुछ करते न बना तो दबंगई छोड़ चीन अपने विदेशमंत्री के साथ वार्ता की मेज पर आया और सम्मानजनक वापसी की राह बनाई।

पर वह वापसी चीन की स्थाई नीति नहीं , एक अल्पविराम था नये ढंग की दबंगई के लिए समय पाने के लिए । माना यह जा रहा है कि चीन एक साथ कई मोर्चे पर युद्ध करने की तैयारी कर चुका है और उसी कडी़ में उसने अपने आर्थिक साम्राज्यवाद को कडी़ टक्कर दे रहे यूनाइटेड स्टेट्स, यूरोप, जापान, आस्ट्रेलिया की आर्थिक कमर तोड़ने के लिए पहले विश्व में कोविड 19 का बायोलाॅजिकल आक्रमण किया। चाइनीज आक्रमण इतना प्रबल रहा कि इटली से लेकर भारत तक की आर्थिक हालत खस्ता हो गयी। भारत जो एसिया में जापान रूस के बाद तीसरी सबसे बडी़ आर्थिक व सैनिक शक्ति है और चीन को दक्षिण चीन सागर से लेकर हिन्द महासागर , बंगाल की खाडी़ व अरब सागर तक कडी़ सैनिक टक्कर दे रहा है , को कोविड 19 के वार से भारी आर्थिक क्षति हुई है, कोविड के चलते लाॅकडाउन ने भारत की जीडीपी माइनस 23.9 प्रतिशत तक गिरा दिया है । एक तरह से भारत अब चीन से लंबा युद्ध लड़ने लायक प्रतिद्वन्द्वी नहीं रहा ।
ऐसे माहौल में भी जब चीन की अर्थव्यवस्था 3.2 की दर से एक सकारात्मक दर पर बढ़ रही है यद्यपि कोविड 19 का उद्भव, प्रसार चीन ही रहा । चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को नोवेल कोरोना यानी कोविड 19 के बारे में जनवरी तक कोई जानकारी न देकर इसे वुहान से पूरी दुनिया में फैलने दिया , जबकि चीन ने अपने शहरों में इसे रहस्यमयी ढंग से नियंत्रित कर रखा । उसके कारण वुहान शहर के अलावा पूरे चीन को लाॅकडाउन नहीं करना पडा़ और उसके उद्योग धंधे बाकायदा चलते रहे । यही वजह है जब सारी दुनिया औंधे मुंह गिरी पडी़ है तो चीन मुस्करा रहा है ।

कहते हैं न कि क्रिमिनल कितना ही शातिर हो, एक न एक कोना उसकी गलतियों का उसके लिए काल बन जाता है। चीन के साथ भी ऐसा हुआ । ताइवान, जापान, आस्ट्रेलिया, फिलीपीन्स, वियेतनाम उसके ताकतवर निकट पडो़सी हैं और चीन अपनी रणनीति में इन्हें साधने के बजाय इनसे गहरी शत्रुता ठान बैठा जिसका लाभ भारत और अमेरिका ने जापान और आस्ट्रेलिया के साथ नौसैनिक गठबन्धन क्वाड्रीलेटरल डिफेन्स ” क्वाड ” का गठबन्धन बनाकर कर लिया । अब समुद्र में चीन इस मजबूत गठबन्धन की फांस में फंस चुका है। एयरक्राफ्ट कैरियर रोनाल्ड रीगन व निमिट्ज के साथ अमेरिका व भारत के कई नौसेनिक पोत, पनडुब्बियां वहां चीन को घेरे बैठे हैं यानी चीन किसी भी तरह की आक्रामक हरकत करे, तो उस पर हर फ्रंट से प्रहार हो।
इस बैकड्राॅप में भारत के चीफ आफ डिफेन्स स्टाफ जनरल विपिन रावत ने 24 अगस्त को चीन को एक वार्निंग दी, ” अगर बातचीत से सफलता नहीं मिली तो सैनिक विकल्प खुला है।” इसके पूर्व जुलाई में लद्दाख जाकर प्रधानमंत्री मोदी और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी चीन को साफ दिल से बात करने, समझौते का पालनकरते भारतीय सीमा से लगे बफर जोन से पीछे लौटने व विस्तारवाद का युग खत्म होने का संदेश या कहिये कि चेतावनी दी। फिर विदेशमंत्री एस जयशंकर की चेतावनी को भी अनदेखा किया।
चीन के मन में खोट था, तो उसने प्रधानमंत्री, प्रतिरक्षामंत्री, विदेशमंत्री, जनरल विपिन रावत सबकी अनसुनी कर आगे और आगे कब्जा करने व कब्जा बनाए रखने की नीति जारी रखी तो 29 अगस्त को भारत ने भी सैनिक विकल्प के अन्तर्गत पैन्गोन्ग त्सो के दक्षिणी किनारे जहां इस बार चीन भारत को डाॅमिनेट करने के प्रयास में था, वहां चार ऊंची चोटियों पर सैनिक बैठा कर चीनी सेना को डाॅमिनेट कर दिया । अब जब चीनियों ने उन चोटियों पर खोटी नीयत से चढा़ई शुरू की टैन्कों के साथ तो पता चला कि भारत वहां पहले से ही बैठा है, सभी युद्धक साजो सामान के साथ स्थापित हो गया है। सबको चौंकाने वाला चीन अब भौंचक है और उसे अब कुछ सूझ नहीं रहा है। उस पर शह पड़ चुकी है।
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