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क्या भाजपा एक नए क्षेत्रीय हिंदुत्व आइकॉन की तलाश में?

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क्या भाजपा एक नए क्षेत्रीय हिंदुत्व आइकॉन की तलाश में है ?
रंजन श्रीवास्तव / भोपाल
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क्या भाजपा वर्ष 2029 में होने वाले लोक सभा चुनावों से पहले किसी बड़े क्षेत्रीय हिंदुत्व आइकॉन की तलाश में है जो खासकर उत्तर प्रदेश में भाजपा के खोये हुए जनाधार को फिर से वापस ले आए और मध्य प्रदेश में पार्टी के जनाधार को मजबूती से बनाये रख सके।

देखना यह भी है कि 2029 के चुनावों में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के पीएम फेस बने रहते हैं या नहीं? पर दोनों ही परिस्थितियों में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के मन में 2024 के परिणाम पीछा करते रहेंगे। जबकि भाजपा उत्तर प्रदेश में 63 सीट से नीचे आकर 33 सीट पर सिमट गयी और पूरे देश में 400 पार के नारे के बावजूद 240 सीट पर सिमट गयी।

पार्टी का उत्तर प्रदेश में अंकगणित खराब हुआ, इस बात के बावजूद कि भाजपा यहाँ डबल इंजन के सरकार की बात लगातार करती रही और योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व ब्रांड के एक प्रमुख चेहरा बने रहे। यह सोचना कि भाजपा 2029 के चुनावों में हिंदुत्व के नैरेटिव पर चुनाव नहीं लड़ेगी महज एक अकादमिक चर्चा के लिए तो ठीक है, पर वास्तविकता में ऐसा होगा नहीं। इसके बावजूद भी पार्टी नहीं चाहेगी कि उत्तर प्रदेश में वही परिणाम दुहराए जाएँ जो परिणाम 2024 में आए थे। 2029 के पहले उत्तर प्रदेश में 2027 में और मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में 2028 में विधान सभा चुनाव होंगे। मगर विधान सभा के परिणाम का इंतज़ार करने के बजाय भाजपा अभी से अपना चुनावी गणित विशेषकर उत्तर प्रदेश में ठीक करने में लगी है।

प्रयागराज में महाकुम्भ 144 साल बाद आयोजित हो रहा है यह बात केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों के द्वारा प्रचारित किया गया। परिणामस्वरूप पूरे देश से हिन्दुओं की आस्था का सैलाब प्रयागराज की तरफ उमड़ पड़ा। महाकुम्भ में भगदड़ और मौतें और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुए भगदड़ और मौतों ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों की व्यवस्थाओं पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा दिया। पर फिर भी जनता इसको लेकर सरकारों के खिलाफ आंदोलित हो गयी हो ऐसा दिखा नहीं। पर आस्था का सैलाब 2029 में वोटों के अंकगणित में बदल जाए और 400 पार का नारा चरितार्थ हो जाए, इस बात पर विश्वास करके पार्टी अपनी चुनावी रणनीति नहीं बना सकती।

पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व किसी किन्तु परन्तु की बजाय ऐसे ठोस रणनीति पर काम करना चाहेगा या काम कर रहा है जिससे उसे 2029 में पूर्ण बहुमत मिले और चौथी बार लगातार सरकार बनाने के लिए जदयू या टीडीपी जैसे किसी बैसाखी की जरूरत ना पड़े। इसलिए भाजपा अपने हिंदुत्व की धार को और तेज करना चाहेगी और उसके लिए एक ऐसे चेहरे की जरूरत पड़ सकती है जो पहले से आजमाया हुआ ना हो और हिन्दुओं के बड़े वर्ग में उसकी स्वीकारोक्ति हो। तो क्या अब बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र शास्त्री भाजपा के नए हिंदुत्व आइकॉन या अस्त्र हो सकते हैं? जिस तरह से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बागेश्वर धाम में जाने का प्रोग्राम बनाया और धीरेन्द्र शास्त्री को अपना छोटा भाई बताते हुए उनपर अपना स्नेह उड़ेला उससे तो यही लगता है कि भाजपा नेतृत्व उनकी बढ़ती हुयी लोकप्रियता को देखते हुए उनसे चमत्कृत है।

प्रधान मंत्री ने बागेश्वर धाम में बालाजी सरकार कैंसर इंस्टीट्यूट का शिलान्यास ही नहीं किया बल्कि वहां एक जनसभा को भी सम्बोधित किया। अप्रत्यक्ष रूप से प्रधान मंत्री ने धीरेन्द्र शास्त्री के पर्ची निकालने विधा की प्रशंसा तक की । उन्होंने धीरेन्द्र शास्त्री की माताजी से यह कहा कि उनके मन में चल रही बात की पर्ची उनके पास है और वह यह कि वे अपने बेटे की शादी देखना चाहती हैं।

इन पक्तियों को लिखे जाने तक भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी बागेश्वर धाम पहुँच चुकी हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल भी वहां जा चुके हैं और धीरेन्द्र शास्त्री की प्रशंसा कर चुके हैं। धीरेन्द्र शास्त्री अपने मंचों से हिन्दू राष्ट्र की वकालत करते रहे हैं। भाजपा इसपर अपनी मुहर तो नहीं लगाती पर उसकी चुनावी राजनीति में ऐसे नारे या भाषण उसको सम्बल ही प्रदान करते हैं।

तर्कवादियों की नज़र में धीरेन्द्र शास्त्री की विधा सिर्फ एक ढोंग है। 2023 में उनके महाराष्ट्र दौरे के दौरान तर्कवादियों ने उन्हें उनकी सिद्धि को साबित करने की चुनौती दी थी। पर धीरेन्द्र शास्त्री वहां से वापस चले आए और दावा किया कि वो मैदान छोड़कर नहीं भागे बल्कि उनकी वहां से वापस आने का प्लान पूर्व निर्धारित था। पिछले वर्ष गुरुशरण महाराज (पंडोखर सरकार ) के विरुद्ध उनके द्वारा कथित रूप से धीरेन्द्र शास्त्री के विरुद्ध आपत्तिजनक बयान देने पर कोर्ट में एक आवेदन दाखिल किया गया था।

जाहिर है धीरेन्द्र शास्त्री के बारे में जनता में दो मत है, पर फिर भी बहुत से लोग उन्हें सिद्ध पुरुष मानकर उनके दरबार में जाते हैं और अपनी समस्याओं के निराकरण की अपेक्षा रखते हैं। धीरेन्द्र शास्त्री बुंदेलखंड से आते हैं जो उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ है। देखना यह है कि आने वाले समय में शास्त्री भाजपा के किसी प्लान का हिस्सा बनते हैं या अपनी भूमिका को गैर राजनीतिक बनाये रखते हैं।

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