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सीबीसीआईडी की जांच पर ट्रायल कोर्ट ने उठाए सवाल

जवाहर पंडित हत्याकांड
मुकदमा वापसी का दांव पड़ गया उल्टा

विधि विशेषज्ञ जे.पी. सिंह की कलम से

प्रयाग़राज

पूर्व सपा विधयक जवाहर पंडित हत्याकांड में उसी दिन चारों आरोपियों का दोषसिद्धि होना तय हो गया था जिस दिन ट्रायल कोर्ट ने यूपी सरकार के मुकदमा वापसी की दलील ठुकरा दी थी और कहा था कि पत्रावली पर दोषसिद्धि लायक साक्ष्य मौजूद हैं ।

रही सही कसर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूरी कर दी जब मुकदमा वापसी की अपील खारिज करके ट्रायल कोर्ट के आदेश पर मुहर लगा दी।

जवाहर हत्याकांड के विवेचक रहे पीके वर्मा की भूमिका पर ट्रायल कोर्ट के फैसले में गंभीर टिप्पणी की गयी है। साथ ही उनके खिलाफ कार्रवाई करने का भी एसएसपी प्रयागराज को निर्देश दिया है। कोर्ट का कहना था कि अदालत विवेचक के हाथ की कठपुतली नहीं बन सकती है।
हत्याकांड पर दिए फैसले में विवेचक की भूमिका की विस्तार से चर्चा की गयी है। सीबीसीआईडी वाराणसी और इलाहाबाद शाखा द्वारा की गई विवेचना पर भी सवाल उठाए गए हैं। कहा है कि इस मामले में विवेचक किस प्रकार से प्रभावित थे। न सिर्फ उन्होंने गढ़ी हुई कहानी को आगे बढ़ाया बल्कि बचाव पक्ष की ओर से साक्ष्य भी दिए।

कोर्ट ने अभियुक्तों कपिल मुनि करवरिया (पूर्व सांसद, बसपा), उदयभान करवरिया (पूर्व विधायक, भाजपा), सूरजभान करवरिया (पूर्व एमएलसी,बसपा) और रामचंद्र त्रिपाठी की घटना स्थल पर मौजूदगी नहीं होने, घटना को शूटरों द्वारा अंजाम देने जैसे मुख्य आधार को खारिज करते हुए चारों अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा सुनाई है।

कोर्ट ने कहा कि न्यायालय ऐसे विवेचकों की निंदा करता है, जो अभियुक्तों को बचाने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। शायद विवेचक को इतना भी ज्ञान नहीं है कि ऐसे साक्ष्य का कोई महत्व नहीं है जो सिर्फ केस डायरी तक सीमित होते हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस ऐसे मामलों में, जिसमें तीन तीन लोगों की हत्या हुई हो और दो लोग घायल हुए हों, संवेदनहीन रहती है। विवेचकों का ऐसा कृत्य न सिर्फ न्यायालय को सत्य का निष्कर्ष निकालने में बाधा पहुंचाता है बल्कि दुरुह भी बनाता है। इसी प्रकार से कोर्ट ने विवेचक पीएन निगम की भूमिका की भी निंदा करते हुए कहा है कि कपोल कल्पित साक्ष्य पर आधारित बयान पर विश्वास नहीं किया जा सकता है।
जवाहर हत्याकांड में बचाव पक्ष की ओर से यह दलील दी गई थी कि जवाहर पंडित की हत्या पूर्वांचल के चर्चित शूटरों मायाशंकर, हरिहर सिंह, पांचू सिंह और बंशी सिंह ने की थी।

कोर्ट ने इस थ्योरी को कपोल कल्पित करार दिया है। कोर्ट का कहना है कि विवेचक के अलावा इस बारे और कोई दूसरा साक्ष्य नहीं है, जिससे साबित होता हो कि हत्या उपरोक्त लोगों ने की थी।

विवेचक ने यह बयान अभियुक्तों को लाभ पहुंचाने के लिए उनके प्रभाव में कहानी गढ़ी है।

अदालत ने घटना के समय कपिल मुनि करवरिया के लखनऊ में होने संबंधी गवाहों के बयानों को विश्वसनीय नहीं माना है।

गवाह मैथलीशरण शुक्ल, जमुना प्रसाद, पूर्व मंत्री कलराज मिश्र आदि द्वारा दिए गए बयानों में कपिल और कलराज मिश्र के बीच हुई मुलाकात के समय में भिन्नता पाई गई।

कोर्ट ने कहा कि कपिल के 13 अगस्त 1996 को लखनऊ में होने का कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं है।

बड़ी संख्या में गवाहों ने अपने बयान में उनके लखनऊ में होने की बात कही है, इसलिए बचाव पक्ष यह बात साबित करने में असफल रहा।

सूरजभान के घटना के समय रसूलाबाद घाट पर होने संबंधी फोटोग्राफ और उदयभान करवरिया के दिल्ली में होने की बात का भी कोई दस्तावेजी साक्ष्य न होने के कारण अदालत ने बचाव पक्ष की दलीलों को खारिज कर दिया।

कोर्ट ने घटना की एफआईआर सही समय पर दर्ज कराया जाना माना है। घटना शाम साढ़े छह से सात बजे के बीच की है, जबकि एफआईआर पौने आठ बजे दर्ज कराई जाती है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने में कोताही नहीं की थी।

हत्याकांड की विवेचना बार-बार बदलने को अदालत ने अभियुक्तों के राजनीतिक प्रभाव का कारण माना है। सीबीसीआईडी वाराणसी शाखा की जांच को अभियुक्तों के प्रभाव में होना पाया गया।

कोर्ट ने कहा कि जहां विवेचक की शरारत स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही हो, वहां अदालत मूक दर्शक बनकर नहीं रह सकती है।

बचाव पक्ष द्वारा आरोपपत्र दाखिल होने के बाद अग्रिम विवेचना का आदेश कराए जाने को कोर्ट ने उनका राजनीतिक प्रभाव माना है। कहा है कि कपिलमुनि करवरिया भाजपा छोड़कर बसपा में शामिल होकर आरोप पत्र दाखिल होने के बाद पुन: अग्रिम विवेचना का आदेश करा लेता है और सीबीसीआईडी इलाहाबाद शाखा द्वारा घटना के समय कपिल मुनि और रामचंद्र त्रिपाठी को घटना के समय लखनऊ में होना दर्शाया गया है।

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