..किसी मुशायरे में चिरकिन साहब अपना कलाम पढ़ रहे थे तो लोगों ने बड़ा शोर मचाया कि चिरकिन चोरी करके दूसरे शायर का कलाम पढ़ रहे हैं । चिरकिन साहब की बड़ी बेइज़्ज़ती हुई और उन्होंने तय कर लिया कि वे आइन्दा ऐसा लिखेंगे कि लोग उनकी रचनाओं की चोरी करने से तौबा कर लें …
फिर क्या हुआ, आगे पढ़ें …..!
संस्मरण:
‘कबिरा खड़ा बाज़ार में’-15 :
लेखक: हरिकान्त त्रिपाठी सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं
शैख़ बाकर अली ‘चिरकिन’
चिरकिन साहब का जन्म सन 1797 में रुदौली क़स्बे में हुआ था । रुदौली लखनऊ-फ़ैज़ाबाद राजपथ पर लखनऊ से 50 किलोमीटर दूर है, पहले बाराबंकी ज़िले में था, पर अब अयोध्या ज़िले का तहसील मुख्यालय है । चिरकिन साहब पैदा ज़रूर रुदौली में हुए पर ज़्यादातर समय लखनऊ में गुजरा और वे ख़ुद को चिरकिन लखनवी भी लिखते थे । वे लखनऊ के नवाब आशूर अली खान के शागिर्द थे । चिरकिन साहब बेहद प्रतिभाशाली थे पर उनकी एक बड़ी कमज़ोरी थी कि वे जब भी कोई कलाम लिखते तो उसे तुरन्त दोस्तों को सुना दिया करते थे । दोस्तों ने इसका फ़ायदा उठाया और वे उनके कलाम को अपना बताकर पढ़ना शुरू कर दिया।
एक बार हैदराबाद के किसी मुशायरे में चिरकिन साहब अपना कलाम पढ़ रहे थे तो लोगों ने बड़ा शोर मचाया कि चिरकिन चोरी करके दूसरे शायर का कलाम पढ़ रहे हैं । चिरकिन साहब की बड़ी बेइज़्ज़ती हुई और उन्होंने तय कर लिया कि वे आइन्दा ऐसा लिखेंगे कि लोग उनकी रचनाओं की चोरी करने से तौबा कर लें । उन्होंने आगे से अपने हर शेर में गू , मूत , पाद आदि को शामिल करना शुरू कर दिया । यद्यपि लोग उनकी शायरी को “ परखाना शायरी “ और अश्लील कहकर नाक भौंह सिकोड़ने लगे पर उनकी प्रतिभा को कोई ख़ारिज न कर सका। ग़ुस्साए चिरकिन साहब ने ख़ूबसूरत शेर अश्लील शब्दों में कहना शुरू कर दिया । चिरकिन साहब कोई दुनिया में अकेले नहीं थे जिन्होंने हगने मूतने को अभिव्यक्ति का आधार बनाया । फ़्रेंच कवि Euslrog de Beaulieo , Gilles Corozal और Piron व अंग्रेज़ी व्यंग्यकार Jonathan Swift ने भी हगने मूतने पादने की आदतों और गू की नैसर्गिक ख़ासियतों को अपने लेखन में शामिल किया ।
चिरकिन साहब का सन 1832 में महज़ 36 साल की उम्र में इन्तकाल हो गया । उन्होंने अपनी रचनाएँ दीवान-ए-चिरकिन में उर्दू भाषा और नाश्तलिक लिपि में लिखा । देवनागरी लिपि में छुटपुट तो उनकी रचनाएँ बहुत मिल जायेंगी पर दीवान देवनागरी में नहीं मिल रहा है । उनकी प्रतिभा को प्रदर्शित करता उनका ये शेर देखें –
खाना खिलाया यार ने ख़ुद अपने दस्त से
पीने को पानी माँगा तो पेशाब कर दिया
इस शेर को पढ़कर लोग मरहूम चिरकिन साहब को घिन से गालियाँ देने लग जायेंगे पर शब्दों का इस्तेमाल देखिए, दस्त = हाँथ और पेशाब= पेश माने प्रस्तुत और आब मतलब पानी । जब मैं डी ए वी कॉलेज कानपुर से एम एससी कर रहा था तो मेरे सहपाठी ने चिरकिन साहब का ये शेर सुनाकर उनका परिचय दिया तो मैंने उसे और चिरकिन दोनों को गालियाँ दी –
चिरकिन चने के खेत में चिरको सरक सरक
हर इक जगह की रंगत ख़ुशबू अलग अलग
लीजिए चिरकिन साहब की एक ग़ज़ल आपकी ख़िदमत में पेश करते हुए यह आलेख पूरा कर रहा हूँ । मज़ाक़िया शायरी का मज़ा लीजिए –
मुझ से जो ‘चिरकीन ’ वो खफा हो गया
रोब से पेशाब खता हो गया
तू ने न इस हाल में पूछी खबर
दस्तों से मेरा यह हाल हो गया
हग दिया दहशत से शब् -ए-हिज्र की
दम मेरा जीने से खफा हो गया
शैखजी अब इस को बदल डालिए
आप का अम्मामा सड़ा हो गया
मलता हूँ कपड़ों में मैं ऐ रश्क -ए -गुल
इतर मुझे मूत तेरा हो गया
‘चिरकीन ’