Home / Slider / ‘ * चौबेजी की जवाँमर्दी !!!’: हरिकान्त त्रिपाठी IAS

‘ * चौबेजी की जवाँमर्दी !!!’: हरिकान्त त्रिपाठी IAS

 ‘कबिरा खड़ा बाज़ार में’-9 : हरिकान्त त्रिपाठी

लेखक: हरिकान्त त्रिपाठी सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं
संस्मरण:

* चौबेजी की जवाँमर्दी !!!

**************

गाँवों की सामाजिक व्यवस्था हमेशा भाईचारे वाली ही थी, पर विसंगतियाँ भी कम नहीं थीं । हर गाँव में कुछ लंठ टाइप के लोग हुआ करते थे जो राजनीति में लालू जी और राजनारायण जी जैसे बिंदास होते थे और गाँव वालों के लिए मुफ़्त मनोरंजन का सृजन करते रहते थे । अकसर गाँव के नौजवानों को वे स्वयं पकड लेते थे या नौजवानों की टीम मनोरंजन के लिए उन्हें ही ढूँढ निकालती थी ।

मेरे बचपन के दौरान गाँवों में बडे बडे ताल हुआ करते थे । अब तो लोगों ने उन तालों को पाट पाट कर खेत बना डाला । इन बडे तालों की कैचमेंट एरिया बहुत बड़ी होती थी । जब तक ताल भरते नहीं थे गाँव में जल जमाव नहीं होता था । गाँव वाले केवल सन 1955 की बहिया याद करते थे जब जलजमाव से बहुत सारे घरों में पानी घुस गया था , वरना तो पानी बरस कर निकला नहीं कि सारा पानी गाँव का ताल खींच लेता था ।

ताल भरने पर पानी सरकारी नाले से नदी में बह जाया करता था । बरसात के बाद इन तालों में बढ़िया घास जमती थी और गाँव भर के मवेशी इन तालों में चराये जाते थे । मवेशियों को चराने का ज़िम्मा आम तौर पर खेतों में कड़ी मेहनत का काम करने में अक्षम बुजुर्ग और स्कूल न जाने वाले बच्चे किया करते थे । बच्चे आपस में गुल्ली-डंडा कंचे वग़ैरह खेलते थे तो बूढे गाँव की पुरानी मनोरंजक कहानियाँ सुना सुनाकर भावी पीढ़ी को अपने ज्ञान की गंगा में नहलाते रहते थे ।

कभी कभी बड़े बूढ़े और बच्चे मिलकर ताश खेलते तो बच्चों को चालाकी और स्मार्टनेस बूढ़ों से सीखने को मिलती । इन्हीं बुज़ुर्गों में एक रसिक शिरोमणि चौबे बाबा भी हुआ करते थे ।

चौबे बाबा बड़े ही रंगीन मिज़ाज के हुआ करते थे । वे जहाँ बैठते थे हमेशा लोगों को रति कथायें सुनाते रहते थे। गाँव की तमाम महिलाओं का रस ले ले कर नखशिख वर्णन करना उनका प्रिय शग़ल था । अकसर गाँव के नौजवानों और बच्चों को क़िस्सा तोता मैना और वयस्क साहित्य सुनाते रहते थे ।

नौजवान लड़के चौबे बाबा की ताक में रहते थे और चौबे बाबा को भी जैसे उनकी ही प्रतीक्षा रहती थी । चौबे बाबा प्राच्य काव्य-विधा और इतिहास की एथॉरिटी थे। वे हमेशा रसीली पंक्तियाँ गुनगुनाते रहते थे और लोकगीतों के तो वे भंडार थे । सामान्यतः उनके लोकगीतों में भोजपुरी भावभूमि वाला रस लालित्य भरा रहता था जिसे सुनते ही गांव की महिलाएँ शरमा कर मुँह पर आँचल लगाकर हँसती और तेज क़दमों से भाग लिया करती थीं ।

किसी होली में चौबे बाबा की सरस दृष्टि एक दिन अपनी युवा पड़ोसन पर पड़ गयी । बाबा जब तब उसे तरह तरह के इशारे करके फुसलाने लगे । जब कभी उसके बग़ल से गुज़रते तो धीमी आवाज में गुनगुनाते – गोरी तोरे अँगन कंचन पेड़वा , झूले भौजी झुलाये देवरा…. ।

पड़ोसन का आदमी कलकत्ता के मटियाबुर्ज में केसोराम कॉटन मिल में नौकरी करता था और बेचारा साल में एकाध बार ही घर आ पाता था । पड़ोसन चौबे बाबा की इस हरकत पर कट कर रह जाती थी पर शर्मीले स्वभाव और चौबे बाबा के सामाजिक रुतबे के आगे चुप रह जाने के सिवा उसके पास कोई चारा न था । जब चौबे बाबा की हिम्मत बढी तो अकसर वे उसके घर के सामने वाले अरहर के खेत में घुस कर तरह तरह की आवाज़ें निकाल कर उसका ध्यान आकृष्ट करने लगे । कभी लगता कि कोई बच्चा कराह रहा है तो कभी किसी के हाँफने जैसी आवाज़ आने लगती ।

धीरे धीरे गाँव के लोग भी चौबे जी और उनकी पड़ोसन को लेकर भाँति भाँति की चर्चा करने लगे । चौबे बाबा के सामने कोई इस बारे में चर्चा करता तो वे हमेशा रहस्यमयी मुस्कराहट ओढ़कर मामले को और पेचीदा बना देते थे तथा अपनी जवाँमर्दी के एहसास से उनका सीना चकला जाता था ।

पड़ोसन जब बहुत परेशान हो गयी तो गाँव के ही प्रभावशाली ठाकुर साहब की दबंग और बिंदास बेटी से अपना दुखड़ा रोने लगी । ठाकुर साहब की बेटी से सारे मनमौजी डरते थे कि पता नहीं कब वह किसकी पगड़ी उछाल कर उसे औक़ात में ला दे । ठाकुर की बेटी तिलोत्तमा ने पड़ोसन को समझाया कि अब जब चौबे बाबा अरहर के खेत में घुसें तो वह उसे तुरन्त ख़बर कर दे । तिलोत्तमा को ज्यादा इन्तज़ार नहीं करना पडा और पड़ोसन के बच्चे ने अगले ही दिन गोधूलि के सनय तिलोत्तमा को ख़बर कर दी कि दीदी माँ ने तुम्हें फ़ौरन बुलाया है । तिलोत्तमा को माजरा समझते देर न लगी । वह चौबे बाबा की पड़ोसन के घर जब पहुँची तो उसने सामने के अरहर के खेत की ओर इशारा करके सब क़िस्सा कह सुनाया ।

तिलोत्तमा बहुत सारे ईंटों के टुकड़े लेकर अरहर के खेत के पास अकेले ही चली गई । अरहर के खेत के अन्दर से तरह तरह की विचित्र और घुंटी घुंटी सी आवाज़ें आ रही थीं । लम्बी स्वस्थ तिलोत्तमा ने आवाज को लक्ष्य करके ईंट के टुकड़ों की बरसात कर दी । अब अन्दर से चौबे बाबा की दर्द भरी आवाज़ें आने लगीं – दौरा लोगन मुअलीं …. दौरा लोगन मुअलीं … । अब वहाँ कोई और होता तो न चौबे बाबा की मदद को आता !

जब कोई मदद नहीं मिली और बाहर से ईंटों गुम्मों की रह रह कर बारिश जारी रही तो चौबे बाबा कराहते , रोते हुए अरहर के खेत से बाहर निकल आये । सामने तिलोत्तमा को देखकर उनकी घिग्घी बँध गई और वे उसके पाँवों पर गिर पड़े – बिटिया अब तो इज़्ज़त तुम्हारे हाथ में है , कहो तो ख़ुदकुशी कर लूँ । तिलोत्तमा बोली – बाबा ! आप बुजुर्ग हैं , लोग आप का कितना सम्मान करते हैं और आप ने ग़रीब का जीना दुश्वार कर दिया , आप को तो सजा मिलनी ही चाहिए । आपकी पड़ोसन आपके विरुद्ध पंचायत इकट्ठा करेगी और आपका फ़ैसला गाँव वाले करेंगे ।

चौबे बाबा रोते गिड़गिड़ाते हुए बोल पड़े – बिटिया मैं जान दे दूँगा , तुम्हें ब्रह्महत्या का पाप लगेगा , मुझे माफ कर दे ! मैं तेरा एहसान जिन्दगी भर न भूलूँगा । तिलोत्तमा ने बाबा से सुधरने का वायदा लेकर उन्हें आश्वस्त कर दिया कि वे मामले को यहीं खत्म समझें ।

चौबे बाबा रोते, कराहते अपने घर पहुँचे । उनका सिर तिलोत्तमा के इंटकोहे से फट गया था । पत्नी बच्चों से बोले कि खेतों में फराकत को गए थे वहीं एक साँड़ ने उन्हें उठा कर दै मारा और उसकी सींग से जगह जगह चोटें आई हैं । घर वालों ने चौबे बाबा का इलाज करवाया और चौबे बाबा कुछ ही दिनों में ठीक तो हो गये, पर अब वे किसी से बात न करते थे और केवल घर से गाँव के बाहर शिव मन्दिर तक नहा धोकर जल चढ़ाने जाते थे तथा बाक़ी समय पर घर में ही पूजा पाठ करने में मन लगाने लगे ।

पता नहीं कैसे बात धीरे धीरे पूरे गांव में फैल गई और जो भी चौबे बाबा की बग़ल से गुज़रता वो उन्हें देखकर कहता तो कुछ नहीं पर मुस्कराता जरूर था। चौबे बाबा को शक था कि यह बात जरूर पड़ोसन ने नमक मिर्च लगाकर फैलाया है और जब पड़ोसन पर उनकी निगाह पड़ती तो वे मन ही मन कुछ बुदबुदाते और दाँत पीस कर रह जाते ।

हाँ ! इस घटना के बाद से चौबे बाबा अरहर के खेत के पास से गुज़रने में भी परहेज़ करने लगे ।

Check Also

“आर्य समाज से विधिवत किया गया हिंदू विवाह वैध”

“आर्य समाज मंदिर में किया गया विवाह हिंदू विवाह अधिनियम के तहत वैध है, बशर्ते ...