डीएम से बात करने में हिचकिचाहट भी थी और समय भी नहीं था कि मैं कन्फर्म कर पाता कि क्या इसी बस से पूरी कमेटी के साथ कमेटी के अध्यक्ष भी यात्रा करेंगे या उनके लिए अलग वाहन होगा । इसी ऊहापोह में पड़ा था कि ट्रेन आ गयी ।
संस्मरण: अध्यक्ष की दहाड़ !
***************
लेखक: हरिकान्त त्रिपाठी सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं
——::———::——–::–
* एक दिन नैनीताल से रेडियोग्राम संदेश मिला कि अगले दिन प्रातः विधान परिषद की एक कमेटी अपने अध्यक्ष के नेतृत्व में काठगोदाम रेलवे स्टेशन पर पहुँच रही है जिसका एसडीएम हल्द्वानी स्टेशन पर स्वागत कर नैनीताल प्रस्थान करा दें ।
यथासमय मैं स्टेशन पर पहुँच गया । वहाँ उस समय कमेटी के आगे की यात्रा के लिए एक बस खड़ी मिली । उस समय तक मोबाइल टेलीफोन प्रचलन में नहीं आया था और केवल पीसीओ बूथ से लोग लैंडलाइन टेलीफोन पर बातचीत कर पाते थे । सबेरे सबेरे दफ्तर भी नहीं खुले थे कि प्रभारी अधिकारी वीआईपी, एडीएम या डीएम से सम्पर्क हो पाता ।
डीएम से बात करने में हिचकिचाहट भी थी और समय भी नहीं था कि मैं कन्फर्म कर पाता कि क्या इसी बस से पूरी कमेटी के साथ कमेटी के अध्यक्ष भी यात्रा करेंगे या उनके लिए अलग वाहन होगा । इसी ऊहापोह में पड़ा था कि ट्रेन आ गयी ।
मैंने कमेटी के लोगों को अभिवादन कर अपना परिचय दिया और सामने लगी बस में बैठने का अनुरोध किया । विधायकगण तो खुशी-खुशी उस बस पर सवार हो गये, पर अध्यक्ष साहब खड़े रहे । जब सब विधायकगण बैठ गये तो अध्यक्ष साहब ने मुझसे पूछा कि उनके लिए वाहन कहाँ है ?
मैंने विनम्रता से जवाब दिया कि उनके लिए कोई अलग से वाहन तो नहीं है, आप भी अपने साथियों के साथ इसी बस से नैनीताल चले जाइये । मेरे जवाब से अध्यक्ष जी आगबबूला हो गये । उन्होंने मुझसे कहा – मेरे लिए अलग से एम्बेसेडर कार होनी चाहिए, ये बस मेरे स्तर के अनुकूल नहीं है । मैंने उनसे निवेदन किया- महोदय ! वाहनों की व्यवस्था जिला मुख्यालय से होती है और वहाँ से यही बस उपलब्ध करायी गयी है, आप नैनीताल पहुँच कर अपनी मांग रख दीजियेगा ।
अध्यक्ष जी दहाड़ उठे – आपको कमेटी के अध्यक्ष का स्टेटस पता है ? मैंने कहा-जी हाँ ! कमेटी के अध्यक्ष राज्यमंत्री के समतुल्य स्टेटस के होते हैं । ( उस समय उनका राज्यमंत्री स्तर होता था, अब सभी कमेटियों के अध्यक्ष कैबिनेट मंत्री स्तर के होते हैं ) । अध्यक्ष जी गुर्राते हुए मुझसे बोले- राज्यमंत्री बस से चलता है ? मुझे अभी आपके डीएम से बात करनी है । मैंने कहा- डीएम भी आपको नैनीताल में ही मिलेंगे…अभी तो आप बात न कर पायेंगे ? आप चाहें तो मेरी जीप से जा सकते हैं ।
वे मुझे आग्नेय नेत्रों से घूरते रहे । उधर, बस पर सवार विधायकगण हंस रहे थे और अध्यक्ष जी को बस पर बुला रहे थे । वे बोल रहे थे कि बस में आ जाइये, यहाँ खड़े रहने से कोई फायदा नहीं है …वहीं पर कमेटी में डीएम को तलब करते हैं । अध्यक्ष जी मुझे घूरते हुए और बुदबुदाते हुए बस में जा बैठे और मैं राहत की सांस लेते हुए जीप में बैठ हल्द्वानी लौट आया ।
एसडीएम प्रदीप भटनागर साहब को मैंने पूरी घटना सुना दी । उन्होंने कहा ठीक है यार ! यह तो प्रभारी अधिकारी वी आई पी को देखना चाहिए था कि कौन सा वाहन उपलब्ध कराना है, हम लोग क्या कर सकते हैं ?
नैनीताल क्लब पहुँचते ही कमेटी ने एक नोटिस काट कर डीएम को तलब कर लिया । रास्ते भर विधायक गण अध्यक्ष जी को चढ़ाते हुए लेकर गये होंगे, सो उनका क्रोध चरम पर था । नियत समय पर डीएम आर के शर्मा साहब अपने विश्वस्त सहयोगी एडीएम आर के पाण्डेय साहब के साथ सजधज कर डंडा हिलाते कमेटी के सामने उपस्थित हुए । कमेटी ने डीएम साहब को बहुत झाड़ा और अपने इस अपमान और दुर्व्यवस्था के लिए प्रकरण को सदन की विशेषाधिकार कमेटी को सौंप देने की धमकी दी ।
दोनों उच्चाधिकारियों को बार-बार माफी मांगनी पड़ी और आगे उन्होंने न केवल अध्यक्ष अपितु पूरी कमेटी के परिवहन के लिए कारों की व्यवस्था का आश्वासन देकर जान छुटायी । कदाचित् कमेटी ने मेरे व्यवहार की भी डी एम से शिकायत की ।
कमेटी से मुक्ति पाकर क्रोधित जिलाधिकारी ने एसडीएम भटनागर साहब को फोन मिलवाया । मेरे पास तो फोन भी नहीं था, सो मैं बच गया । डीएम शर्मा साहब ने भटनागर साहब को बहुत डाँटा । कहा कि जब तुम जानते हो कि तुम्हारा एडीशनल एसडीएम उद्धत और झगड़ालू स्वभाव का है तो तुमने कमेटी को रिसीव करने के लिए उसे क्यों कहा ? कमेटियों के लोग बहुत संवेदनशील होते हैं तो तुम खुद क्यों नहीं गये रिसीव करने ? अब आगे ऐसे मामलों में एडीशनल एसडीएम को कभी मत भेजना ।
भटनागर साहब ने कुछ गुस्से और कुछ क्षोभ से मुझे डीएम साहब से हुई वार्ता बतायी और इस बात पर अफसोस व्यक्त किया कि जिलाधिकारी ने प्रभारी अधिकारी वीआईपी की गलती होने के बावजूद उन्हें कुछ न कह बुरा भला हमीं लोगों को सुना दिया ।
मुझे तो खैर डीएम साहब ने इस घटना के बाद से ही अव्यवहारिक और लड़ाकू मान महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों के लिए अपात्र घोषित कर दिया ।
(क्रमशः)