‘कबिरा खड़ा बाज़ार में’-5 : हरिकान्त त्रिपाठी
संस्मरण: बाबा बनाम बाबा !
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लेखक: हरिकान्त त्रिपाठी सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं
* उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक सेवाओं में बाबाओं का भी अपना जलवा रहा है । जब मैं मिर्ज़ापुर में प्रोबेशनर डिप्टी कलेक्टर था तो मेरे अपर ज़िला मैजिस्ट्रेट साहब भी बाबागिरी की राह पर अग्रसर थे । महादेव बाबा का बड़ा दबदबा था । सड़क पर रखी पत्थर की गिट्टी भी यदि हम सीज कर दें तो क्या मजाल कि कोई तोला भर गिट्टी भी वहाँ से उठा ले ! वे बड़े सबेरे सबेरे हमें घरों से गाड़ी भेजकर अपने घर पर ही बुलवा लेते और वहीं पुलिस फ़ोर्स भी उपलब्ध रहती । बाबा के निर्देश पर हम लोग बाज़ार में जमाख़ोरी और कालाबाज़ारी की जाँच करने निकलते तो बाज़ार में शटर गिरा गिरा कर दुकानदार भागने लगते । जहाँ भी स्टॉक वग़ैरह की जाँच करते तो कुछ न कुछ कमी तो निकल ही आती । थोड़ी देर बाद बाबा भी लगभग अपनी ही ऊँचाई की लाठी लिए बाज़ार में जायज़ा लेने निकलते कि उनके फ़रमान पर अमल हम ठीक से कर तो रहे हैं या नहीं ।
बाबा की ख्याति मिर्ज़ापुर से पहले बनारस की ए डी एम आपूर्ति की तैनाती के दौरान ईमानदार और दबंग अधिकारी के रूप में किये गये कामों को लेकर किंवदंतियों के रूप में फैल रही थी । दूर दूर से लोग बाबा को देखने कलेक्ट्रेट मिर्ज़ापुर आते । बाबा के बारे में उनकी धारणा लम्बे चौड़े भारी भरकम पहलवान टाइप के अधिकारी की होती थी । उन्हें यह देखकर बड़ी निराशा होती थी कि बाबा तो एक नितान्त दुबले पतले छोटे क़द के गोरे चिट्ठे , घुँघराली लटों वाले हँसमुख नवयुवक जैसे साधारण इन्सान थे । आवाज़ ज़रूर दहाड़ती हुई होती थी, जिसके सामने लोग भहरा पड़ते थे । एक बार एक बाबू आकस्मिक तौर पर स्वर्ग सिधार गये तो लोगों में यह सुगबुगाहट ज़ोरों से फैल गई कि कहीं बाबा के डाँटने से हार्ट अटैक का दौरा पड़ने से तो नहीं बाबू जी गुज़र गये । बहरहाल बाबा से बाबू की मुलाक़ात की पुष्टि नहीं हो पाई और सुगबुगाहट धीरे धीरे कमजोर पड़ कर ख़त्म हो गई ।
एक बार एक श्वेत वस्त्रधारी सफ़ेद दाढ़ी में एक बाबाजी ए डी एम साहब के चैम्बर में पधारे । उन बाबा जी के बारे में पता चला कि वे एक योगी थे और उन्होंने योग के माध्यम से चमत्कारी शक्तियाँ पा ली थीं । एवरेस्ट फ़तह कर लेने के बाद एडमंड हिलेरी ने गंगासागर से सुरसरि की धारा के प्रवाह के विरुद्ध भारी अश्वशक्ति के इंजन वाली मोटरबोट पर गंगोत्री पहुँचने का दुर्गम अभियान शुरू किया । ताक़तवर मोटरबोट जब मिर्ज़ापुर पहुँची तो हज़ारों की भीड़ गंगा तट पर एडमंड हिलेरी के अभियान को देखने पहुँची । योगीजी ने एडमंड हिलेरी से पूछा कि वै कैसे इस मामूली सी नाव से माँ गंगा पर विजय पा लेंगे । हिलेरी ने कहा कि बाबाजी ! ये बोट बहुत बड़े हार्सपावर की है और उनका अभियान ज़रूर सफल होगा । योगीजी ने कहा कि ये मोटरबोट उनको तो पहले खींच कर दिखाये तो वे मान लेंगे कि अभियान पूरा हो पायेगा ।
हिलेरी ने योगीजी की शर्त स्वीकार कर ली । दो मोटे और मज़बूत रस्से मोटरबोट से बाँध कर उसके सिरे योगीजी की कमर पर लपेट दिये गये और योगीजी ने दोनों हाथों से मज़बूती से रस्सों को पकड़ लिया । पूरे ज़ोर से मोटरबोट खींचती रही पर योगीजी टस से मस न हुए । मोटरबोट घरघराती रही पर योगीजी को डिगा न पाई और हिलेरी को हार स्वीकार करनी पड़ी । एडमंड हिलेरी ने जब इस सफल अभियान पर अपनी पुस्तक लिखी तो इस घटना का भी अपनी पुस्तक में ज़िक्र किया ।
* ए डी एम बाबा ने योगी बाबा से उनके शुभागमन का अभिप्राय पूछा । योगी बाबा को ए डी एम बाबा की अध्यात्म , दर्शन और योग में गहरी रुचि की जानकारी हो चुकी थी । योगी बाबा ने ए डी एम बाबा को बड़े उत्साह से अपनी महत्वाकांक्षी योग संस्थान की स्थापना की जानकारी दी और उनसे इसके लिए नि:शुल्क ज़मीन उपलब्ध कराने का अनुरोध किया । ए डी एम बाबा ने उनसे पूछा कि क्या योगी बाबा के केवल नज़रों से घूर कर खिड़की के लोहे के रॉड को टेढ़ा कर सकते हैं । योगी बाबा विचारमग्न हो गये और कुछ पलों बाद बोले कि वे नज़रों के बल से खिड़की का रॉड टेढ़ा न कर पायेंगे । ए डी एम बाबा ने फिर योगी बाबा से पूछा कि क्या आप टेबल पर पड़े काँच के पेपर वेट को केवल घूर कर चटका सकते हैं । योगी बाबा ने निराशा में सिर हिलाया और बिना कुछ बोले उठे और लड़खड़ाते क़दमों से बाहर चले गये ।
* मिर्ज़ापुर में 1985 के विधान सभा चुनावों की ज़िम्मेदारी उप ज़िला निर्वाचन अधिकारी के बतौर ए डी एम बाबा पर थी । बाबा ने अपने मिज़ाज के हिसाब से सख़्ती का आलम बना दिया था । उस समय की कांग्रेसी राजनीति के वटवृक्ष पं.कमलापति त्रिपाठी के सुपुत्र पं. लोकपति त्रिपाठी की मिर्ज़ापुर में तूती बोलती थी । लोकपति जी उ० प्र० सरकार में सिंचाई मंत्री थे और ज़िले में किसी की भी हिम्मत न थी जो लोकपति जी के सामने खड़ा हो सके । वे ज़िले के मझवा विधान सभा क्षेत्र से चुने जाते थे और उनका वहाँ से हारना असम्भव माना जाता था ।
जिस दिन मतदान हो रहा था, राबर्ट्सगंज के एस डी एम रोहित नन्दन आई ए एस मतदान केन्द्रों का भ्रमण कर रहे थे । मझवा के एक केन्द्र पर उनको लोकपति जी के साथ के लोगों द्वारा बूथ कैप्चरिंग की सूचना प्राप्त हुई । जब वे बग़ल के मतदान केन्द्र पर गये तो वहाँ भी वही शिकायत मिली । जब उस मतदान केन्द्र के अगले मतदान केन्द्र पर रोहित नन्दन पहुँचे तो लोकपति जी अपने साथ भारी हथियारबंद अमले के साथ केन्द्र से निकल रहे थे और वहाँ भी वही हरकत उनके समर्थक कर रहे थे । रोहित नन्दन उनके साथ के पुलिस क्षेत्राधिकारी की हिम्मत न पड़ी कि उन लोगों के विरुद्ध वे कोई कार्रवाई कर पाते ।
रोहित नन्दन ने उन्हें वहाँ से निकल तो जाने दिया पर पूरी घटना का विवरण ज़िला निर्वाचन कार्यालय को भेज दिया । ए डी एम बाबा ने अविलम्ब उनकी रिपोर्ट भारत निर्वाचन आयोग को भेजते हुए उन तीन मतदान केन्द्रों पर पुनर्मतदान की अनुशंसा कर दी । जब ज़िलाधिकारी अरुण कुमार मिश्रा को इसकी जानकारी हुई तो वे परेशान हो गये । हो सकता है लोकपति जी ने डी एम को फ़ोन कर उनसे अपनी नाराज़गी भी व्यक्त की हो । बहरहाल तीनों केन्द्रों पर मैजिस्ट्रेटों की तैनाती कर पुनर्मतदान सम्पन्न कराया गया । एक केन्द्र पर मैं और दूसरे पर जे पी त्रिवेदी और तीसरे पर रोहित नन्दन की ड्यूटी लगी । मतदान शान्तिपूर्ण तरीक़े से सम्पन्न हो गया और परिणाम आशानुकूल ही रहा , पं. लोकपति त्रिपाठी भारी मतों के अन्तर से विजयी रहे । मैं आज तक यह नहीं समझ पाया कि जब जीत शतप्रतिशत सुनिश्चित थी तो बूथ कैप्चरिंग क्यों की गई ?
बहरहाल चुनाव के बाद कांग्रेस की फिर से सरकार बन गई और उसके तुरन्त बाद ज़िलाधिकारी अरुण कुमार मिश्रा का स्थानान्तरण आदेश सबसे पहले आ गया । उनकी विदाई समारोह में भी डी एम साहब की ए डी एम बाबा के प्रति अप्रसन्नता बार बार प्रकट हो जा रही थी । रोहित नन्दन का स्थानान्तरण ज्वाइंट मजिस्ट्रेट कर्वी के पद पर हो गया । इसके बाद ए डी एम बाबा का नम्बर आ गया और वे ए डी एम सिटी अलीगढ़ बना दिये गये । ए डी एम साहब एक ब्रीफ़केस में कपड़े रख कर स्थानान्तरण रुकवाने लखनऊ चले गये । तब तक प्रतापगढ़ के बाबू वासदेव सिंह का निधन हो चुका था । ए डी एम बाबा प्रभावशाली लोकपति के प्रभामण्डल को भेद न सके और उसी ब्रीफ़केस को लिए हुए अलीगढ़ चले गये। उनका परिवार और सामान बाद में अलीगढ़ चला गया । सबके बाद इस ख़ाकसार का ट्रांसफ़र आदेश भी आख़िर आ ही गया । मुझे नैनीताल पोस्ट कर दिया गया । अब तक एन एन उपाध्याय डी एम और धनंजय सिंह ए डी एम की नई जोड़ी ज़िला संभाल चुकी थी । मैं डी एम और ए डी एम के निर्देशानुसार रिलीव हो गया और लखनऊ आ रहे धनंजय सिंह के साथ अपना बिस्तर-बंद और अटैची उनकी जीप पर रख कर लखनऊ आ गया । लखनऊ में नियुक्ति विभाग से सम्पर्क कर अपनी पोस्टिंग बदलवाने सचिवालय एनेक्सी पहुँच गया । नियुक्ति विभाग में मुझे समीक्षा अधिकारी Rk Singh राज कुमार सिंह मिले ।उन्होंने अपने साथ लेकर मुझे सचिवालय के बाहर चाय की दुकान पर पहले चाय पिलाई और फिर बताया कि लोकपति जी ने जानबूझकर आपको पहाड़ भिजवाया है इसलिए आपका ट्रांसफ़र संशोधित नहीं हो पायेगा । संयोग से आपको पहाड़ का सबसे अच्छा ज़िला मिल गया है , बेहतर होगा कि आप नैनीताल ज्वाइन कर लीजिए ।
मैं उसी दिन रात की ट्रेन पकड़ कर नैनीताल पहुँच गया । आर के सिंह ने सही कहा था , ज़िन्दगी में जो कुछ मुझे अमूल्य हासिल हुआ मसलन पत्नी , बेटी और बेटा वहीं के कार्यकाल में मिले । मैं पंडित लोकपति त्रिपाठी का हृदय से आभारी हूँ और श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ ।
ए डी एम बाबा जब अलीगढ़ पहुँच गये तो उनका मुख्य काम हो गया हर साल होने वाले साम्प्रदायिक दंगों पर नियन्त्रण पाना । ए डी एम सिटी के पद पर शहर की शान्ति व्यवस्था के अलावा एक शस्त्र लाइसेंसों का ही काम महत्वपूर्ण होता है जिससे सभी अच्छे खाते पीते लोग लाइसेंस पाने या लाइसेंस नवीनीकृत कराने के लिए उससे अच्छे ताल्लुकात बना कर रखते हैं । बाबा ने नवीन प्रयोग किया ताकि उनकी हनक आम लोगों में बन जाये । दुकानों की जाँच वग़ैरह के अलावा दुकानों के खुलने और बंद होने के समय के अनुपालन को वे सुनिश्चित कराने लगे । बंदी का टाइम होते ही पुलिस बल लेकर निकल पड़ते और ज़बरन दुकानें बंद करवा देते । विरोध करने वाले की ठुकाई भी हो जाती ।
व्यापार मंडल वग़ैरह ने शुरू में हायतौबा मचाया पर क़ानून के विरूद्ध कहाँ तक लड़ते , आख़िर दुकानों के खुलने का समय रेगुलेट हो गया । बाबा तो जैसे शान्ति व्यवस्था के लिए ही पैदा हुए रहे हों , 1984 में जब मऊ में दंगा हुआ था तो बाबा को मिर्ज़ापुर से ख़ास तौर पर शासन ने उन्हें मऊ भिजवाया ।मऊ में दंगाइयों ने मऊ के एस डी एम को दंगे के दौरान गोली मार कर हत्या कर दी थी । बाबा ने रात में भारी पुलिस बल के साथ दंगाइयों के घरों पर छापा मारना शुरू किया । वे जवान और बदमाश से दिखने वाले लोगों को छत पर ले जाकर गर्म कराते तो रात की नीरवता को भंग करती उनकी चीख़ें पूरे मुहल्ले को शान्ति बनाये रखने का संदेश देने लगतीं । दो चार दिन में मऊ दंगे पर नियन्त्रण हो गया । अलीगढ में भी बाबा ने तरह तरह के प्रयोग किए और परिणाम ये हुआ कि अलीगढ़ में दशकों तक दंगे नहीं हुए ।
बाबा जब ए डी एम स्तर पर पदोन्नत हुए तो उनकी प्रतिभा को तत्कालीन खाद्यमंत्री वासदेव सिंह ने पहचाना। उन्होंने उनकी पोस्टिंग ए डी एम सप्लाई बनारस के पद पर करा दी । बाबा ने यहाँ कम ग़दर नहीं काटा । एक सिंह साहब सरकार में उप मंत्री बनाये गये तो उन्होंने बनारस सर्किट हाउस में बाबा को तलब किया । पता नहीं सही है या ग़लत पर लोगों ने कहा कि बाबा ने सर्किट हाउस जाकर उप मंत्री जी से मिलने से मना कर दिया । उप मंत्री जी को बताया गया कि ए डी एम ने कहा कि वे उप मंत्री के बुलाने पर नहीं जाते । अपनी सरेआम तौहीन से मंत्री जी आगबबूला हो गये । वे लखनऊ जाकर मुख्यमंत्री से मिले और भावुक इन्सान थे सो फूटफूट कर रोते हुए अपनी व्यथा कथा सुना दी । मुख्यमंत्री जी अपने मंत्री के अपमान से नाराज़ हो ए डी एम बाबा को बनारस से हटाने का फ़रमान जारी कर दिया । जब ट्रांसफ़र आदेश जारी होकर बनारस पहुँचा तो तहलका मच गया । बाबा की ईमानदारी और अक्खडपन से उन्हें बनारस में अपार लोकप्रियता हासिल थी ! लोगों ने डी एम से ए डी एम की फ़रियाद लगानी शुरू कर दी । परेशान डी एम ने चीफ़ सेक्रेटरी को फ़ोन कर बाबा के स्थानांतरण का अनुरोध किया ।
मुख्य सचिव को बाबा के ट्रांसफ़र की कहानी पता थी सो उन्होंने कहा कि ….मुख्यमंत्री बहुत नाराज़ हैं, ए डी एम से। ए डी एम का ट्रांसफ़र नहीं रुक सकता । डी एम ने कहा कि ए डी एम बहुत कर्मठ और ईमानदार अधिकारी हैं उनके इस ट्रांसफ़र से पब्लिक में सरकार की छवि के सम्बन्ध में बहुत ग़लत मेसेज जा रहा है कि सरकार अच्छे अधिकारियों का उत्पीड़न कर रही है । डी एम ने ज़ोर डालने के लिए कहा कि ..यदि ए डी एम का ट्रांसफ़र नहीं रुकता तो उन्हें भी हटा दिया जाये । चीफ़ साहब ने जवाब दिया कि यदि चाहते हैं तो आप को भी हटा दिया जायेगा ……मुख्यमंत्री अपने मंत्री का कहा मानेंगे कि आपका …. मंत्री जी मुख्यमंत्री के सामने रो रो कर अपनी बेइज़्ज़ती सुनाकर गये हैं …. एक ही रास्ता है कि यदि स्वयं मंत्री जी मुख्यमंत्री से बोल दें कि उन्हें ए डी एम से कोई शिकायत नहीं है तो कुछ किया जा सकता है।
डी एम ने अपने सूत्रों के माध्यम से उप मंत्री से मामले को समाप्त करने का अनुरोध किया । बढ़ते जनाक्रोश से मंत्री भी दबाव में आ चुके थे , उन्होंने कहा कि यदि ए डी एम साहब यह कहते हैं कि “वे उपमन्त्री से नहीं मिलेंगे” उन्होंने नहीं कहा तो वे मुख्यमन्त्री जी से उनके ट्रांसफ़र को रोकने के लिए कह देंगे । डी एम के कहने पर फ़ोन से ए डी एम और मंत्री की बात कराई गई और ए डी एम बाबा का स्थानान्तरण रुक गया ।
ए डी एम बाबा का बनारस में अभियान जारी रहा । उन्होंने किसी दिन जाँच कर बनारस के शक्तिशाली नेता और राज्यसभा के तत्कालीन उप सभापति श्याम लाल यादव का पेट्रोल पम्प सीज करा दिया । भीड़भाड़ वाले नगर बनारस में बाबा के नेतृत्व में अतिक्रमण हटाने के बड़े और मुश्किल अभियान चले और बाबा की लोकप्रियता बढ़ती चली गयी ।
बाबा जब पदोन्नत होकर बनारस के ए डी एम सिविल सप्लाई बने तो अपनी ईमानदारी, निर्भीक और बेबाक़ कार्यशैली से जल्दी ही लोगों में छा गये । पूर्वांचल के लोग कुछ भावुक प्रकृति के होते हैं । दक्षिण भारत की भावुकता पूर्वांचलियों को कैसे मिल गयी , अनुमान लगा पाना मुश्किल है । मुझे लगता है दोनों को यह प्रकृति भात प्रेमी होने के कारण मिली होगी क्योंकि यही उनमें कॉमन है: हा! हा! हा!हा !हा …….!
पूर्वांचल वाले निःस्वार्थ भाव से जिसे दिल से चाहने लगते हैं उसे आसमान पर बिठा देते हैं । वे उसी प्रकार अपने नायक के लिए जान तक देने को तैयार हो जाते हैं जैसे जयललिता और करूणानिधि, एम जी आर के लिए तमिलनाडु वाले करते रहे हैं।
मुझे एक घटना याद आ रही है , जब मेरे बैचमेट सत्यनारायण श्रीवास्तव ने बलिया के डी एम के पद पर तैनाती के दौरान एक भूमि संरक्षण अधिकारी यादव जी को रिश्वत की पेशकश करने पर जेल भिजवा दिया था । ईमानदारी के भूत ने उनके अन्दर से ज्ञान बुद्धि सब खदेड़ कर अकेले क़ब्ज़ा जमा लिया था । जब घटना अख़बारों में छपी तो मैंने उन्हें फ़ोन किया । वे समझे कि मैंने उन्हें बधाई देने के लिए फ़ोन किया है । मैंने कहा – सत्यनारायण ! क्यों मरने पर आमादा हो ! अरे आज के ज़माने में रिश्वतख़ोरी करने वाले आँखें भी दिखाते हैं, वो तो इस सीमा तक ईमानदार है कि तुम्हें भी लाभ में शरीक करने आया था, तुम्हें नहीं शरीक होना था तो गाली देकर भगा दिया होता, उसे जेल क्यों भिजवाया, अब मरो । एकाध हफ़्ते में ही सत्यनारायण दाखिल दफ़्तर हो गये । अख़बार में पढ़ा कि ईमानदार ज़िलाधिकारी सत्यनारायण के ट्रान्सफर से आहत युवक ने बलिया में आत्महत्या कर ली !
बहरहाल घूम कर मूल विषय यानि फिर अब बाबा पर आ जाते हैं । बाबा दर्शन के विद्वान थे और उन्हें आध्यात्मिक धर्म-गुरुओं पर विश्वास था । बनारस के पड़ाव में उस समय एक महात्मा जी के आश्रम की बहुत चर्चा चलती रहती थी । महात्मा जी को उनके भक्त भगवान कहते थे । इस देश में अब भगवान बनने में भी जातियों की बड़ी भूमिका है । हर जाति के अपने अपने भगवान होते हैं । आशाराम बापू, सन्त गुरमीत राम रहीम, बाबा रामपाल, जय गुरुदेव बाबा से लेकर पुराने समय तक के भगवान और बाबा लोग विभिन्न जातियों के होते रहे हैं । ए डी एम बाबा ने जब पड़ाव वाले भगवान की बहुत ख्याति सुनी तो उनके दर्शन के लिए उत्सुक हो गये । सिटी मैजिस्ट्रेट को कहा गया कि वे पड़ाव वाले भगवान को ए डी एम साहब की दर्शन इच्छा से अवगत करा दें ।
शाम को ऑफिस का काम निबटाने के बाद ए डी एम बाबा और सिटी मैजिस्ट्रेट पड़ाव में भगवान के आश्रम पहुँच गए । सम्मान के साथ दोनों अधिकारियों को भगवान के कक्ष में ले जाया गया । प्रणाम आशीर्वाद के बाद दोनों बैठे और विचार विमर्श शुरू हुआ । ए डी एम बाबा छोटे क़द के दुबले पतले लड़के जैसे तो सिटी मैजिस्ट्रेट लम्बे चौड़े व्यक्तित्व के स्वामी थे । भगवान ने सिटी मैजिस्ट्रेट को ही ए डी एम समझा और सिटी मैजिस्ट्रेट से तो बहुत तवज्जो देकर बात करते रहे पर ए डी एम बाबा कुछ भी बोलें तो उन्हें ए डी एम बाबा का साथी समझ हल्के में लेते हुए भगवान उनकी उपेक्षा करते रहे ।
बातचीत के दौरान भगवान ने कह दिया कि “ अहम् ब्रह्मास्मि “ । ए डी एम बाबा को मौक़ा मिल गया।वे बोले – अहं ब्रह्मास्मि का क्या मतलब बाबाजी ? भगवान ने सहज भाव से जवाब दिया कि अहं ब्रह्मास्मि मतलब मैं ब्रह्म हूँ । ए डी एम बाबा गरज उठे – बिलकुल ग़लत ! यदि आप ब्रह्म हैं तो हम लोग क्या हैं ? अहं ब्रह्मास्मि का अर्थ है कि अ से ह तक जितने स्वर व्यंजन हैं उनके संयोग से जो कुछ बनता है सब मिल कर ब्रह्म है । वहाँ सन्नाटा छा गया । भगवान असहज महसूस करने लगे । कुछ देर की चुप्पी के बाद ए डी एम बाबा ने भगवान से पूछा कि बाबाजी अब हम लोग चलें ? व्यथित भगवान ने कहा- मन: पूतं समाचरेत् ! ए डी एम बाबा फिर गरज उठे- फिर बोले आप बाबाजी ! “मन: पूतं समाचरेत्” का क्या मतलब? भगवान ने कहा- मन: पूतं समाचरेत् का मतलब जैसा मन कहे वही करना चाहिए । ए डी एम बाबा बोले- मन कहे चोरी , हत्या करने को तो चोरी , हत्या की जानी चाहिए ? अरे सब तरह के मन का कहा करने को नहीं कहा गया है , आर्य मन जो कहे उसका कहा ही किया जाना चाहिए ।
भगवान अब बहुत ही अनमने हो चुके थे । ए डी एम बाबा और सिटी मैजिस्ट्रेट दोनों ने भगवान को अभिवादन किया और चुपचाप आश्रम से बाहर आ गए ।