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हम निराश न हों.. : कृष्ण मोहन अग्रवाल

“हम निराश न हों…”

वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण मोहन अग्रवाल

5 वर्ष पहले की बात है। मैं ट्रेन से कहीं जा रहा था। गोरखपुर में दो – तीन युवक-युवतियां तेजी से ट्रेन में चढ़े और बुलंद आवाज में देश की राजनीतिक स्थिति की आलोचना करने लगे। अमर शहीद भगतसिंह की चर्चा करते हुए वे मजदूरों, किसानों, दबे-कुचले लोगों से अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने तथा संघर्ष करने की अपील कर रहे थे और पर्चे बांट रहे थे।

मैने उन्हीं में से एक युवक से पूछा कि आप जिस गाँव या शहर में रहते हैं, वहाँ की स्थानीय समस्याओं को लेकर आंदोलन क्यों नहीं करते ?लेकिन वह युवक कुछ उत्तर दिये बगैर आगे बढ़ गया।

मैं सोचने लगा कि युवकों के इस प्रकार से लोगों को जागरूक करने का क्या लोगों पर, समाज पर कुछ असर होता होगा ?ट्रेन में बैठे लोगों ने भी उन युवकों को कोई तवज्जो नहीं दिया।
पुनः कुछ दिन पहले लखनऊ से बस द्वारा गोरखपुर लौट रहा था।लखनऊ शहर में ही एक जगह बस के रुकने पर एक युवक और एक युवती बस में चढ़ गये।युवती जोर-जोर से बोलने लगी,देश में बेरोजगारी बढ़ रही है, गरीबों की आर्थिक स्थिति दिन पर दिन खराब हो रही है। केन्द्र की भाजपा सरकार सिर्फ हिन्दुस्तान-पाकिस्तान, हिन्दू-मुसलमान कर रही है।सांप्रदायिकता बढ़ रही है। आप सोचिये, क्या अमर शहीद भगतसिंह ने देश के लिए यही सपना देखा था ?
युवक अमर शहीदों से संबंधित “यश की धरोहर” पुस्तक भी बेच रहे थे और लोगों से आर्थिक मदद भी माँग रहे थे।बस में बैठे 20-25 लोगों में किसी ने भी कोई आर्थिक मदद नहीं दी।मैंने एक पुस्तक खरीद ली।पुस्तक सचमुच पढ़ने लायक है।स्वतंत्रता सेनानियों भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, असफाकउल्लाह आदि के उस समय के साथियों भगवान दास महापौर,सदाशिव राव मलकापुरकर और शिव वर्मा द्वारा यह पुस्तक लिखी गयी है, इसलिए यह सच्चाई के अधिक निकट है और इन क्रांतिकारियों को निकट से देखने, समझने का मौका मिलता है।

घर आने के बाद भी मैं ऐसे युवक-युवतियों के समर्पण और बिना थके लोगों को देश की स्थिति के प्रति जागरूक करने के प्रयास के बारे में सोचता रहा।’ नौजवान भारत सभा ‘ संस्था से जुड़े दो-तीन लोगों से फोन पर बात करके उन्हें समझने की कोशिश की।पता चला कि संस्था का मुख्यालय तो पंजाब में है।वहीं से किताबें तथा पर्चे आदि छपकर आते हैं।उत्तर प्रदेश में लखनऊ तथा कुछ अन्य शहरों में केन्द्र बनाकर ये लोगों के बीच काम करते हैं।मेरे मन में प्रश्न था कि इनके खुद के खर्च कैसे चलते होंगे ?पता चला कि ये अपने खर्च के लिए कुछ काम करते हुए इस आंदोलन के लिए अधिक समय देते हैं।20-2कोर टीमें उत्तर प्रदेश में हैं।वैसे पंजाब, दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार और उत्तराखंड आदि प्रदेशों में अधिक सक्रियता से काम हो रहा है।

इन लोगों से मैने फोन पर ही प्रश्न किया कि क्या इस आंदोलन का कुछ असर जमीन पर दिखाई दे रहा है ?वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था, चारों ओर फैले भ्रष्टाचार के विरोध में लोगों में इनके प्रयास से क्या कुछ जागरूकता आ रही है ?

मुझे बताया गया कि कहीं-कहीं ‘शिक्षा सहायता मंडल’ का गठन करके शाम को छोटे बच्चों के लिये एक प्रकार का स्कूल चलाते हैं, जहाँ कुछ किताबी ज्ञान के साथ-साथ अपने विचारों से भी उन्हें अवगत कराते हैं।इन्हें लगता है कि इस प्रकार के प्रयास से युवा वर्ग में जागरूकता आयेगी।इनका यह भी कहना है कि इस अभियान, आंदोलन का असर दो-चार-दस वर्षों में नहीं दिखाई देगा। यह उसी प्रकार की एक सतत प्रक्रिया है, जैसे देश की आजादी की लड़ाई लम्बे वर्षों तक चली और तब हम आजाद हुए।
समतमूलक समाज के लक्ष्य को प्राप्त करने को आकुल ये युवक और इनके संगठन का कहना है कि आज ‘गोदी मीडिया’ द्वारा देश की दिलकश तस्वीर पेश करने की कोशिशों के बावजूद अब यह सच्चाई छिपाये नहीं छिप रही है कि देश की अर्थव्यवस्था भयंकर मंदी की चपेट में आ चुकी है।मैन्युफैक्चरिंग, आटोमोबाइल्स,रीयल इस्टेट, उपभोक्ता सामग्री सहित अर्थव्यवस्था के सबसे महत्वपूर्ण सेक्टरों में मंदी का असर साफ देखने को मिल रहा है।लाखों लोगों पर छटनी की तलवार लटक रही है।पूँजीपतियों द्वारा लिए गये कर्जों की वजह से बैंकिंग व्यवस्था चरमरा चुकी है और बैंकों में जमा हुई आम जनता के बचत के डूब जाने का खतरा मँडरा रहा है।कोई बेवकूफ या अंधभक्त ही मानेगा कि सब कुछ ठीक है।
मैं व्यक्तिगत स्तर पर भी एक सजग नागरिक हूँ और देख रहा हूँ कि देश की स्थिति तेजी से खराब हो रही है और सामान्यजन में अभी इसके विरुद्ध कोई सुगबुगाहट नहीं है। मानो सामान्यजन धर्म के अफीम के नशे में पड़ा हुआ है।बातचीत में वह अपनी तकलीफ बताता है लेकिन फिर….!

किससे कुछ उम्मीद की जाय ?जो भी कुछ होना है राजनीति के माध्यम से संसद से गुजर कर होना है।जो राजनीति में हैं, सिर्फ। अपना स्वार्थ देख रहे हैं।किसी न किसी प्रकार करोड़ों, अरबों इकट्ठा कर रहे हैं।सरकारी अधिकारी और कर्मचारी जनता का शोषण कर रहे हैं। छात्र नेता भी राजनीतिक पार्टियों की गंदगी में फंसे हुए हैं।उन्हें विधायक और सांसद की कुर्सी दिखाई दे रही है।
किसी आंदोलन की कोई चिंगारी नहीं दे रही है। फिर भी हमें निराश नहीं होना चाहिए।

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