*लोकतंत्र!!!*
ये कैसा भगवान (लोकतंत्र) है जिसकी हत्या आये दिन उसके अपने ही मन्दिरों (देश के विभिन्न सदनों) में होती रहती है और भक्त (जनता) असहाय अपने आराध्य (लोकतंत्र) की दुर्गति देखने को विवश है।
कभी केंद्र का लोकतंत्र मन्दिर, कभी दिल्ली का, कभी कर्नाटक का, कभी ……………।
ये कैसे लोकतंत्र के पुजारी (जनता के द्वारा निर्वाचित नुमाइंदे सदस्य – जिन्हें हम माननीय कह कर सम्बोधित करते हैं) लोकतन्त्र (भगवान) की गरिमा को मन्दिर (सदन) में ही तार-तार करते धक्का-मुक्की, उठा-पटक, खींचतान करते देश की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं।
हे सर्व शक्तिमान ईश्वर, तेरे अस्तित्व पर संदेह होता है। तू कैसे दिनों दिन बढती अराजकता को बर्दाश्त करता है।
तूने जो गीता में कहा था,
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥
*अर्थात*-
मैं प्रकट होता हूं, मैं आता हूं, जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं, जब जब अधर्म बढता है तब तब मैं आता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं।
क्या अभी पाप और आसुरी शक्तियां चरम सीमा पर नहीं पहुँची है?
चारों ओर घोर अनाचार, दुराचार, भ्रष्टाचार का बोल बाला है और सच्चे का मुँह काला है।
*यक्ष प्रश्न* – हे प्रभु अब किस दिन का इन्तजार है, क्यों नहीं अवतरित होता धर्म स्थापना के लिये, सज्जन लोगों की रक्षा के लिये।
कृष्ण मोहन अग्रवाल
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