कानपुर: लॉकडाउन की विभीषिका सबसे ज्यादा दूसरे प्रदेशों में काम करने वाले श्रमिक, कारीगर ङोल रहे हैं। जो अब तक किसी तरह मुसीबत टलने का इंतजार कर रहे थे, उनका भी धैर्य टूट चुका है। जेब खाली है, पेट खाली है। लॉकडाउन को एक महीना बीत चुका है और उनका पलायन अब तक जारी है।
फूट-फूटकर रोए श्रमिक
श्रवस्ती के दो श्रमिक चंद्रभाल व अनिल अमृतसर से पैदल ही घर के लिए निकल पड़े। वहां दोनों किराये के कमरे में रहकर चप्पल के गोदाम में काम करते थे। लगभग एक हजार किमी का सफर तय कर शुक्रवार को नौबस्ता हाईवे पहुंचे। यहां सिपाहियों ने रोका तो वह फूट-फूटकर रोने लगे। सिपाहियों ने पानी पिलाया और उनकी मजबूरी जानी। दोनों श्रमिकों के कपड़ों का रंग भी पसीने की वजह से बदल चुका था।
पैरों में अलग-अलग थीं चप्पलें
पैरों में अलग-अलग चप्पलें थीं। वह चप्पल फैक्ट्री में काम करते थे सो परिवार के लिए पहले से चप्पलें खरीद रखी थीं। रास्ते में यही चप्पलें काम आ गई, पर वह भी कब तक साथ निभातीं। कानपुर पहुंचने तक दोनों श्रमिकों की तीसरी-तीसरी जोड़ी चप्पलें दम तोड़ चुकी थीं। आगे का सफर उन्हें अब नंगे पांव ही करना पड़ेगा। उन्होंने बताया दोनों की तीन-तीन जोड़ी चप्पलें घिस गईं। बीच-बीच में वह चप्पल उतार कर बैग में रख लेते और गमछा बांधकर मंजिल की ओर चल देते थे। एक सप्ताह से ज्यादा हो गया है सफर करते हुए पर मंजिल अभी करीब नजर नहीं आ रही।
मोबाइल स्विच ऑफ, घर से नहीं हो पा रहा संपर्क
नासिक से पैदल चलकर गोंडा जा रहे टिंकूराम, नाथुराम, विजय शुक्ला ने बताया कि कामकाज न होने की वजह से पैदल ही गांव के लिए निकल पड़े। वहां रहकर भी मरना था, इसलिए पैदल ही वहां से चल दिए। इस दौरान सभी के मोबाइल स्विच ऑफ हो गए। इस वजह से किसी के घर से संपर्क नहीं हो पा रहा।