सुशील बोन्थियाल
टीवी हमको संवेदनहीन कर रहा है शायद.. अपनी आंखों से देखे हुए.. और टीवी में देखे हुए में “एहसास” का बड़ा फ़र्क पाया मैंने.. कल शाम बिल्डिंग से नीचे सामान लेने गया था… रात के 8 बज रहे थे.. दुकान की लाइन में मेरे आगे खड़ी औरत 15 मिनट से सब्ज़ी ऐसे छांट छांट के ले रही थी जैसे सोना ख़रीद रही हो.. उसके पीछे 6 लोग लाइन में खड़े थे.. दुकानदार भी परेशान हो रहा था… मैंने कहा… मैडम पीछे और भी लोग हैं.. जल्दी करिए न.. उसने मुझे झिड़कते हुए बोला.. आपको ज़्यादा जल्दी है क्या.. ले तो रही हूं… गुस्से में जवाब देने ही वाला था कि कुछ सोचकर चुप रह गया… मूड ख़राब हो गया था.. उसके जाने के बाद मैंने सामान लिया और जैसे ही निकला कि एक अधेड़ उम्र की औरत मुंह पे साड़ी का पल्ला.. मांग में सिंदूर.. हाथ की मुट्ठी में प्लास्टिक का थैला.. बिल्कुल मेरे सामने थी.. बोली.. भाई मीठा तेल लेकर दो न.. वो भिखारी जैसी नहीं लग रही थी.. मेरा मूड पहले से ख़राब था.. और उसकी बात भी अजीब लगी मुझे.. मैं उसे इग्नोर करके निकल गया.. अपनी बिल्डिंग के गेट पे पहुंचा तो सोचने लगा कि… मीठा तेल क्या होता है.. कौन थी वो औरत.. ऐसा तो नहीं उसे कुछ मदद चाहिए हो… लेकिन वो भिखारी तो नहीं लग रही थी… सोचा देखता हूं जाकर उसे चाहिए क्या.. मैंने सामान वॉचमैन के पास रखवा दिया.. और उसी दुकान पे गया.. वो मुझे नहीं दिखी… चारों तरफ़ देखा.. दुकान से आगे मार्केट की ओर बढ़कर देखा.. उधर भी नहीं.. वापिस आया… और दूसरी तरफ़ गया तो देखा कि एक छोटे से मेडिकल स्टोर के बगल वाली बंद दुकान के आगे बैठी है.. मेडिकल स्टोर पे सामान ले रहे लोगों की तरफ़ देख रही है.. मैं दूर ही खड़ा था.. मेडिकल से एक आदमी जब निकला तो उस औरत ने उससे भी कुछ कहा.. उस आदमी ने उसे कुछ बोला और निकल गया.. फिर पीछे से औरत ने कुछ बोला तो वो आदमी पलटा और जेब से दस रुपए निकाल कर उसे दिए… मैं समझ गया उसे मदद की ज़रूरत है.. जाकर पूछा.. आपको कुछ चाहिए.. बोली.. तेल दिलवा दो.. मीठा तेल.. मैंने पूछा मीठा तेल क्या होता है… बोली खाने वाला तेल… भाजी के लिए चाहिए… अब मैं समझा कि उन्हें खाने वाला तेल चाहिए.. मैंने पूछा आपके पास और सब है… तो बोली कि एक किलो चावल है और 20 रुपए का आटा और थोड़े आलू हैं.. मैं सुनकर दंग रह गया… खाने के नाम पे इस औरत के पास बस ये ही है.. अपनी भावनाओं को छुपाते हुए मैंने हिम्मत करके उससे पूछा.. कहां रहती हैं.. बोली.. चारकोप गांव.. मैंने कहा आइए मैं आपको राशन दिलवा देता हूं.. वो मुझे एक दुकान पे चलने के लिए बोली जहां सस्ता सामान मिलता है… मैं वो दुकान जानता था.. वहां अच्छा सामान नहीं मिलता था.. सो मैंने कहा की आगे एक अच्छी दुकान है वहां से आपको राशन दिलवा देता हूं.. हम उस दुकान की ओर चल पड़े.. वो मेरे साथ सामान्य नहीं हो पा रही थी.. काफ़ी संकोच के साथ बोल रही थी.. जब मैं कुछ पूछता तभी कुछ बोलती.. मैं मन में सोच रहा था कि हे! भगवान इतनी बुरी हालत कैसे हो सकती है किसी की.. उसके बारे में जानने की इच्छा हो रही थी पर हिम्मत नहीं हो रही थी.. वो खुद ही बोली.. मैं भिखारी नहीं है साहब.. लोगों के घर में काम करती है.. जब काम बंद हुआ तो 4000 रुपए थे.. सब ख़तम हो गए.. पति का काम भी बंद है..20 साल का बेटा है जिस पर किसी ने जादू कर दिया है.. घर में ही लेटा रहता है..10 साल की बेटी है.. चारकोप गांव में 4000 रुपए भाड़े से रहते हैं.. बिजली केवल रात को देता है मालिक… मैंने कहा वहां सरकारी राशन बाटने नहीं आते क्या… तो बोली हमलोग बाहर के हैं.. वहां के लोकल कोली समुदाय के लोग हमें राशन नहीं लेने देते.. ख़ुद ही सारा राशन ले लेते हैं… हमको उधर आने ही नहीं देते.. हमारे एरिया में बांस से बैरिकेटिंग लगा देते हैं… सुनकर मेरे होश उड़ गए… ऐसी विपदा में भी कोई ऐसा कर सकता है क्या… वो भी इतने गरीब लोगों के साथ… इतने में सामने से एक औरत नीली साड़ी में आती दिखाई दी.. उसको देखते ही ये मेरे से थोड़ा सा अलग हो गई और बोली कि.. साहब इसको कुछ मत देना.. ये गंदी औरत है.. मैंने पूछा कैसे… तो बोली ये भी आजकल मांग कर खाती है और मुहल्ले में ये बात छुपाती है और हमलोगों के लिए बोलती है कि हम मांगकर खाते हैं.. मैं समझ गया कि इसे डर है कहीं वो औरत भी मुझसे मदद मांगने आ गई तो हो सकता है राशन दोनों लोगों में बांटना पड़े… वो सड़क पे खड़ी कारों के पीछे छुप गई ताकि नीली साड़ी वाली उसे न देख ले… दुकान पे जाकर मैंने उसे तेल के अलावा सारा राशन दिलाकर विदा किया… और उस नीली साड़ी वाली को खोजने लगा.. वापिस आ रहा था तो एक राशन की दुकान से कुछ दूरी पर वैसी ही 5 औरतें खड़ी थीं.. मुंह पे साड़ी का पल्ला.. मांग में सिंदूर.. हाथ में प्लास्टिक का एक थैला जिसे उन्होंने मोड़कर अपनी मुट्ठी में छिपाया हुआ था.. सब टकटकी लगाए दुकान में सामान लेने वाले ग्राहकों की तरफ़ देख रही थीं… पर दूर से ही.. कोई भी औरत सामने नहीं आ रही थी.. तब मुझे महसूस हुआ कि.. ये इस बात का इंतजार कर रहीं हैं कि शायद कोई इनसे ख़ुद ही पूछ ले कि तुम्हें कुछ चाहिए.. उनमें से कोई भी भिखारी नहीं थी इसलिए खुले आम जाकर मांगने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहीं थी.. वो सकुचाई सी.. सहमी हुई.. आशा भरी आंखों से लोगों की तरफ़ देख रहीं थीं कि शायद इधर से जाने वाले किसी इंसान से उनकी आंखें टकराएं और वो आंखों से ही उनके मन का हाल जान सके.. और कुछ राशन दिला दे..उन्हें ख़ुद से मांगना न पड़े..
एक औरत की इस जिजीविषा को देखकर मेरा हृदय कांप गया… जो इस लॉकडाउन में अपने परिवार का पेट भरने के लिए अपने आत्मसम्मान और अपनी मजबूरी के बीच असहाय खड़ी थी.. उनकी स्थिति को समझते हुए उनके पास सीधे जाकर.. मैं उनके बचे खुचे आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता था.. सो मैंने ग्राहक बनने का नाटक किया और दुकान से पारले जी का एक पैकेट लेकर उनकी तरफ़ आया ताकि उनकी नजरें मुझसे मिल जाएं.. और झिझक कुछ कम हो.. मैं हल्का मुस्कुराता हुआ धीरे धीरे उनकी ओर बढ़ा.. और उनके करीब पहुंच कर रुक गया और जेब से फोन निकालने का नाटक कर ही रहा था कि उसी नीली साड़ी वाली के साथ खड़ी सलवार सूट पहने लगभग 18 साल की एक लड़की से मेरी आंखे मिलीं.. हिम्मत करके उसने सकुचाते हुए कहा.. “सर राशन में कुछ हेल्प कर दो ना”.. मुझे लगा जैसे मैंने कुछ बड़ा हासिल कर लिया हो.. एक पल तो कुछ बोल ही नहीं पाया.. आंखों में हल्की नमी उभर आई.. अपने को संभाला और कहा.. यहीं रुको लाता हूं… उन्हें मुझसे बात करते देखकर कुछ दूरी पे खड़ी 3 औरतें भी आगे बढ़ीं.. तो नीली साड़ी वाली ने मुझसे कहा.. हम दो लोग ही हैं.. उनके मन में भी यही डर था कि राशन आएगा तो सबमें बंट जाएगा.. मैं हां! में सिर हिलाकर दुकान पे गया.. और चावल, दाल, आटा, तेल, नमक और पारले जी के पांच अलग अलग पैकेट बनवाए और उन पांचों औरतों को दिया.. पूछने पर पता चला… सबकी वही कहानी थी… पैसा ख़तम हो गया था.. कोली लोग सरकारी मदद का राशन हड़प लेते हैं… मैं जाने लगा… तो वो लड़की बोली… सर आप जैसे टीवी में करते हो ना… वैसे ही हो.. लगा कि टीवी में संवेदना ज़िंदा है अभी…लड़की ने मुझे पहचान लिया था और मैंने इंसानियत को!