लोकसभा चुनाव 2024 : अब तो बस जनता के फैसले का इंतजार!
स्नेह मधुर
आज चुनाव प्रचार नहीं हुए। 18वीं लोकसभा चुनाव के लिए अब किसी भी चरण के लिए चुनाव प्रचार खत्म हो गये हैं। पहली जून को होने वाली 57 सीटों की छोड़कर नई लोकसभा के लिए जनता जनार्दन ने अपना मत दे दिया है और उम्मीद है कि जनता का फैसला जिसके भी पक्ष में गया है, उसे सरकार बनाने के लिए इन 57 सीटों में से किसी की शायद ही जरूरत पड़े क्योंकि लूली लंगड़ी संसद के दिन गए, जिसको भी जनता लाएगी, बहुमत से ही लाएगी, ऐसा पक्ष और विपक्ष दोनों का ही मानना है।
विपक्ष का पीएम कौन होगा, यह परिणाम आने के 48 घंटे बाद पता चलेगा क्योंकि आपस में सिर फुटौव्वल होगी इंडी गठबंधन के बीच जबकि एनडी गठबंधन से पहले से ही स्पष्ट है कि मोदी ही पीएम बनेंगे लगातार तीसरी बार। कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी साल भर से लगातार मेहनत कर रहे हैं, पूरे देश को नाप रहे हैं, करीब 65 पब्लिक रैलियां की हैं लेकिन एनडीए के बुजुर्ग नेता मोदी ने जिस तरह से तूफानी परफॉर्मेंस दी है, उसने अच्छों अच्छों को बेचैन कर दिया है, चकित कर दिया है कि “आगे नाथ न पीछे पगहा” वाली शख्सियत भी क्या इतनी मेहनत कर सकती है? बिजनेस गुरु कहते हैं कि कड़ा लक्ष्य रखकर उसको पाने के लिए कोई न कोई मोटिवेशन जरूरी होता है। मोटिवेशन मतलब मैटीरियलस्टिक चीजें, लेकिन क्या मां भारती की सेवा का लक्ष्य भी आपमें प्राण फूंक सकता है? पिछले 60-70 दिनों मे मोदीजी ने
लगभग 206 रैलियां, 25 से ज़्यादा रोड शो, 80 से ज़्यादा इंटरव्यू, 200 से ज़्यादा उड़ानें, लगभग 1 लाख किलोमीटर की यात्रा की और 200 घंटे से ज़्यादा भाषण दिए हैं और अब वे मेडिटेशन के मोड में चले गए हैं…पूर्ण शांति… जिज्ञासाओं से भरपूर दूरी! उद्देश्य खुद को रिचार्ज करना क्योंकि चार जून के बाद फिर नई दौड़ शुरू करनी है, नए प्रतिमान बनाने हैं! क्या ऐसा असंभव सा कृत्य कोई कर सकता है? न कोई हुआ है और लगता है कि न कोई होगा!
विपक्ष का आरोप है कि मोदी कन्याकुमारी के विवेकानंद रॉक में जाकर जो ध्यान कर रहे हैं, उसका भी राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं वह। मैं कहता हूं कि विपक्ष की सोच सही है। मोदी 24 घंटे काम और लक्ष्य प्राप्ति के मोड में रहते है। इतने काम उन्हें करने हैं कि “हनुमान तेहि परसा, कर पुनि प्रणाम, राम काज किन्हें बिना मोहें कहां विश्राम” यानी लक्ष्य प्राप्ति की यात्रा के बीच में उन्हें विश्राम का ख्याल भी नहीं आ सकता है। यह भी दो तरह का संदेश है कि मेहनत से भागना नहीं और दूसरा भारतीय सनातनी संस्कृति का सम्मान जन जन में विस्तारित करना। पिछली बार वह केदारनाथ गए थे, इस बार कन्याकुमारी!
क्या यह चुनाव ऐसे परिणाम लेकर आने वाला है जो चौंकाएगा? अगर एनडी गठबंधन बहुमत या उससे कुछ कम हासिल करता है तो यह चौंकाने वाला परिणाम ही कहलाएगा। दस वर्षों की निःस्वार्थ सेवा और पारदर्शिता के बावजूद जनता का दिल न जीत पाना ही इसे माना जायेगा। अगर इंडी गठबंधन रेस में आगे निकलता है तो भी यह चौंकाने वाला परिणाम ही कहा जायेगा। हां, इंडी गठबंधन के भक्तों के लिए तो यह प्रत्याशित ही माना जायेगा।
जो लोग यह कहते हैं कि मोदी चार जून को अपना झोला लेकर हिमालय की ओर चले जायेंगे, वे क्या ईमानदारी के साथ यह बता सकते हैं कि हाल के कुछ महीनों में मोदी ने ऐसा कौन सा काम किया है जिसकी वजह से 2019 के मोदी भक्त उनसे खफा हो गए हों या फिर इंडी गठबंधन के नेताओं ने कोई नई मिसाल पेश की है जिससे उनके प्रति आकर्षण बढ़ा हो? इस प्रश्न का कोई ईमानदारी के साथ जवाब नहीं देगा, इसलिए चार जून का इंतजार करना ही होगा, तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा। जनता के मूड को जानने का दावा करना घातक हो सकता है। 1977 में इंदिरा गांधी को उनकी ही एजेंसियों ने धोखा दे दिया था उनकी पक्की जीत का अनुमान लगाकर। कांग्रेस को 154 सीट मिली थी और जनता दल को 295। इसके ठीक उलट तीन साल बाद ही हुए चुनाव में कांग्रेस आंधी की तरह वापस आ गई। उसे 353 सीट मिली थी और जनता दल दोनों को मिलाकर मात्र 71 और इस परिणाम के बाद जनसत्ता में पत्रकारों के महानायक प्रभाष जोशी जी ने अखबार के प्रथम पृष्ठ पर संपादकीय में माफी मांगते हुए लिखा था कि उनके दिमाग पर दिल हावी हो गया था। उन्हें नहीं लगा था कि आपातकाल की ज्यादतियों को जनता इतनी जल्दी भुला देगी और कांग्रेस को भारी मतों से जीता देगी। प्रभाष जोशी जी ने चुनाव पूर्व यह दावा किया था कि जनता पार्टी फिर सत्ता में वापसी करेगी।
असल में जनता पार्टी के शासनकाल में आपसी मतभेद इतने मुखर हो गए थे कि सरकार अस्थिर सी हो गई थी। ऐसे में इंदिरा जी ने स्थिर और मजबूत सरकार देने का वायदा किया था और यह बात जनता को भा गई थी। जनता ने स्थिरता को अधिक महत्व देते हुए कांग्रेस की पुरानी गलतियों को माफ कर दिया था।
कमोबेश यही स्थिति इस बार भी दिखती है। मोदी ने दस वर्षों तक सरकार की कमान मजबूती से अपने हाथों में पकड़े रखी और लोगों का विश्वास हासिल करने में कामयाब रहे कि वे देश हित में काम कर रहे हैं और हर तरह की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विषम स्थितियों को भी झेलने में सक्षम हैं, इसलिए जनता उनका साथ दे सकती है और उसी तरह से उन्हें जीता सकती है जैसा 1980 में इंदिरा जी को 353 सीटें दी थीं या फिर 1984 में जैसा कि राजीव गांधी को 404 सीटें दी थीं, हालांकि वह सहानुभूति से उपजी लहर का परिणाम था।कमोबेश यही स्थिति इस बार भी दिखती है। मोदी ने दस वर्षों तक सरकार की कमान मजबूती से अपने हाथों में पकड़े रखी और लोगों का विश्वास हासिल करने में कामयाब रहे कि वे देश हित में काम कर रहे हैं और हर तरह की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विषम स्थितियों को भी झेलने में सक्षम हैं, इसलिए जनता उनका साथ दे सकती है और उसी तरह से उन्हें जिता सकती है, उसी तरह से जैसा कि 1980 में इंदिरा जी को 353 सीटें देकर या फिर 1984 में राजीव गांधी को 404 सीटें देकर, हालांकि वह सहानुभूति से उपजी लहर का ही परिणाम था।
एक परिवर्तन और आ सकता है। अगर एनडी गठबंधन जीतता है तो यह चुनाव देश से कई क्षेत्रीय दलों को संसदीय राजनीति के परिदृश्य से काफी हद तक बाहर भी कर सकता है, जैसे समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, एआईडीएमके, वीआरएस, सीपीएम और महाराष्ट्र के कई क्षेत्रीय दल भी। असल में अस्सी के दशक में कांग्रेस के कमजोर होने पर और भाजपा की स्वीकार्यता न होने के कारण राज्य स्तर पर तमाम दलों का जन्म हुआ था और कांग्रेस की खाली जगह में अपनी पैठ बना ली थी। कांग्रेस अभी भी पहले से भी ज्यादा कमजोर है लेकिन मोदी के उभार ने कांग्रेस को तो आगे बढ़ने से रोका भी और क्षेत्रीय दलों को भी समेट दिया है। एक परिवर्तन और आ सकता है। अगर एनडी गठबंधन जीतता है तो यह चुनाव देश से कई क्षेत्रीय दलों को संसदीय राजनीति के परिदृश्य से काफी हद तक बाहर भी कर सकता है, जैसे समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, डीएमके, वीआरएस, सीपीएम और महाराष्ट्र के कई क्षेत्रीय दल भी। असल में अस्सी के दशक में कांग्रेस के कमजोर होने पर और भाजपा की स्वीकार्यता न होने के कारण राज्य स्तर पर तमाम दलों का जन्म हुआ था और उन दलों ने कांग्रेस की खाली की गई जगह में अपनी पैठ बना ली थी। कांग्रेस अभी भी पहले से भी ज्यादा कमजोर है लेकिन मोदी के उभार ने कांग्रेस को तो आगे बढ़ने से रोका भी और क्षेत्रीय दलों को भी समेट दिया है।
अगर इस चुनाव में मोदी येन केन प्रकारेण भी पीएम पद की शपथ ले लेते हैं तो बहुत ही महत्वपूर्ण घटना होगी। अगर बहुमत से आगे निकल जाते हैं तो यह भारतीय राजनीति के आकाश की खगोलीय घटना होगी। एक व्यक्ति के बूते बिना किसी सहानुभूति लहर के एक पार्टी का बहुमत में पहुंचना दशकों तक याद किया जाएगा और इसकी गूंज शताब्दियों तक सुनाई पड़ेगी। विपक्ष ने हार को मानसिक रूप से स्वीकार कर लिया था वर्ष 2019 में ही, बस औपचारिक चुनाव की कवायद ही चल रही थी। विपक्ष के लिए तो राहत भरी सिर्फ एक ही बात होगी कि एन डी गठबंधन 400 से कम में ही सिमट जाय, इस जादुई आंकड़े से एक कम यानी 399 तक ही पहुंच कर रुक जाता है मोदी का अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा तो भी विपक्ष को अपनी जीत का जश्न मनाने का मौका जरूर मिल जायेगा।
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May 30th – 4 PM – Satta Bazaar Final Betting Numbers…..
Phalodi Satta Bazaar
🔹Congress – 11
🔹INDI Alliance – 40
🔹BJP – 403
🔹NDA – 498
Palanpur Satta Bazaar
🔹Congress – 23
🔹INDI Alliance – 64
🔹BJP – 386
🔹NDA – 451
Karnal Satta Bazaar
🔹Congress – 33
🔹INDI Alliance – 71
🔹BJP – 359
🔹NDA – 405
Bohri Satta Bazaar
🔹Congress – 7
🔹INDI Alliance – 32
🔹BJP – 352
🔹NDA – 421
Belgaum Satta Bazaar
🔹Congress – 1
🔹INDI Alliance – 9
🔹BJP – 401
🔹NDA – 500
Kolkata Satta Bazaar
🔹Congress – 49
🔹INDIA – 99
🔹BJP – 339
🔹NDA – 403
Vijaywada Satta Bazar
🔹Congress – 9
🔹INDI Alliance – 32
🔹BJP – 399
🔹NDA – 503
Indore Sarafa
🔹Congress – 20
🔹INDI Alliance – 64
🔹BJP – 350
🔹NDA – 444
Ahmedabad Chokha Baar
🔹Congress – 0
🔹INDI Alliance – 27
🔹BJP – 423
🔹NDA – 509
Surat Maghobi
🔹Congress – 37
🔹INDIA – 94
🔹BJP – 347
🔹NDA – 402
The last phase of voting is on 1st of June and the results will be out on 4th June.
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