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कविता : *मैं अपराजिता हूं* : रश्मि राजेश

*मैं अपराजिता हूं*

रश्मि ‘राजेश

मैं अपराजिता हूँ।।

धरती की सुता हूँ
पार हो जाऊंगी

इस अग्नि परीक्षा से, निर्बाध, निर्विकार, निष्कलंक
चिन्तन तुम करो।

क्या तुम योग्य हो पर्यवेक्षण के?


सभी धर्मों का प्रतिपालन

मुझे ही करना होगा

केवल तुम्हारी महिमा के लिए 
युग युगों तक तुम्हारी वन्दना हो

जय जयकार हो,

मैं विस्मृत हो जाऊं?

कहाँ का न्याय है प्रभु ??

उत्तर तो जानूं,किसे मैं अपना मानूं,
जन्मदाता को……
माता को…….
पति को………
पुत्र को…….
बंधु को…….
सखा को…….
किसे ????

उत्तर दो….
सृजन करती हूं मैं स्वयं,
नित नव अंकुर,
लोचन त्रिनयन ,
मैं अपराजिता हूं

धरती की सुता।।

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