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“आम का पेड़ भी पीपल और बेल की भांति ही शुभ”

“रामायण में वर्णित पेड़ पौधों के सामाजिक सरोकार”
भाग – चार
प्रबोध राज चन्दोल
संस्थापक, पेड़ पंचायत
अयोध्या काण्ड के 92वें सर्ग में कनेर के पौधे का उल्लेख आता है। कनेर एक विषैला पौधा है और यह अनेक प्रकार का होता है लेकिन आमतौर पर पीला कनेर बहुतायत में देखने को मिलता है। इस पौधे के अनेक औषधीय उपयोग भी हैं। इसकी पत्तियाँ, छाल और जड़ के प्रयोग से कई गंभीर रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है अगर किसी को चोट, मोच, सूजन है तो इसकी पत्तियों को गर्म करके बांधना चाहिए। चेहरे पर मस्सा, दाग-धब्बे में इसकी छाल का पेस्ट बनाकर लगाना चाहिए। उद्यान में सुन्दरता के लिए तो इसे लगाया ही जाता है।
इसी प्रकार से 94वें सर्ग में केवड़े के फूल को अत्यंत कांति वाला बताया गया है। केवड़े के फूल में अत्यन्त तीव्र सुगन्ध होती है। यह दुनिया का सबसे खुशबूदार फूल है। इससे इत्र व सौन्दर्य प्रसाधन तो बनते ही हैं साथ ही इसका प्रयोग-मुहाँसे, खुजली, सूजन आदि में भी किया जाता है।
इसी सर्ग में चित्रकूट पर्वत पर आम, जामुन, असन, लोध, प्रियाल, कटहल, धव, अंकोल, भव्य, तीनिश, बेल, तिन्दुक, बांस, बेल, काश्मरी (मधुपर्णिका), अरिष्ट (नीम), वरण, महुआ, तिलक, बेर, आँवला, कदंब, बेत, धन्वत (इन्द्र जौ), बीजक (अनार), आदि घनी छाया वाले पेड़ों का होना बताया गया है जो फूल और फलों से लदे होने के कारण अत्यन्त मनोरम प्रतीत होते थे।

आम का पेड़ भी पीपल और बेल की भांति शुभ वृक्षों में आता है। इसका फल अत्यन्त स्वादिष्ट व रसीला होता है। हिंदू संस्कृति में आम की लकड़ी हवन के लिए समिधा के रुप में काम आती है। आम की पत्तियों के अनेक औषधीय प्रयोग हैं जो-पेचिस, उच्च रक्तचाप तथा त्वचा के उपचार में काम आती है।


इसी प्रकार से जामुन भी एक रसीला फल है। इसके अतिरिक्त जामुन की गुठलियाँ और जामुन के पत्ते भी बहुत उपयोगी हैं जैसे-मधुमेह, अल्सर, रक्तसंचार में सुधार आदि-आदि। जामुन का सिरका भी बनाया जाता है जिसके अनेक औषधीय गुण भी हैं। असन एक प्रकार का विचित्र पेड़ है जो अपने भीतर पानी का संग्रह कर लेता है। इस पेड़ के तने पर कट करने से पेड़ में संग्रहित पानी की जलधारा बाहर निकल जाती है जिसको पीया भी जा सकता है।
लोध के पेड़ मध्यम आकार के होते हैं। इसके भी अनेक प्रयोग हैं, लोध के द्वारा लाख (लाक्षा) को साफ किया जाता है। इसके फूल तीखे, कड़वे व ठण्डी तासीर वाले होते हैं। इसके औषधीय उपयोग में रक्त की गर्मी, मधुमेह, रक्त से जुड़े रोग, इसके तने की छाल सूजन को कम करने वाली, बुखार ठीक करने वाली व पाचन क्रिया में सुधार करने वाली होती है।
प्रियाल नामक वृक्ष के फलों के बीजों की गिरी को चिरौंजी कहते है जो खाने में बहुत स्वादिष्ट होती है जिसका प्रयोग विभिन्न भारतीय पकवानों, खीर व मिठाईयों में होता है। इसके पेड़ को पयार या पयाल भी कहते हैं।
कटहल पोषक तत्वों से भरपूर है जिसकी आमतौर पर घरों में सब्जी बनाकर खाई जाती है। धव वृक्ष औषधीय, उपयोगी होता है। इसकी लकड़ी काफी मजबूत होती है जिससे कृषिकार्य हेतु औजार भी बनते हैं।
अंकोल का पेड़ प्रायः सारे भारत में अधिकतर पहाड़ी क्षेत्रों में है। इसकी जड़ मूत्रवर्धक, दर्द निवारक तथा सूजन को कम करने वाली हैं। इसकी लकड़ी काफी अच्छी हाती है जोकि अनेकानेक कामों में उपयोगी है।
भव्य एक मध्य आकार का पर्णपाती पेड़ है। पैरों में अकड़न, जकड़न, वेदना आदि में इसके पत्तों का प्रयोग किया जाता है। पूजा के लिए इसकी लकड़ी का पीढ़ा बनाया जाता है। इसकी छाल का प्रयोग फोड़े तथा भगन्दर आदि में किया जाता है। तीनिश एक फूल देने वाला पौधा है। इसकी लकड़ी का उपयोग भवनों के खम्बों आदि व दही मथने के लिए लकड़ी का बर्तन बनाने के लिए किया जाता है। इसकी छाल को घाव या कटे-फटे स्थानों पर लगाया जाता है। आँखों के रोगों में इसकी जड़ों के रस को काली मिर्च के दो फलों के चूर्ण के साथ मिलाकर खाने से बहुत लाभ होता हैऔर इसका गोंद भी उपयोग में आता है।

बेल एक फल है जिसे विशेष रुप से गर्मियों में खाया जाता है। इससे शीतलता के लिए शर्बत बनाकर पीया जाता है। बेल की गणना शुभंकर पौधों में होती है, इसके पत्ते व फल शिवलिंग पर चढ़ाये जाते हैं। तिन्दुक या तेंदु की लकड़ी चिकनी और काले रंग की होती है इसकी लकड़ी सेघरों में उपयोगार्थ विभिन्न सामान बनाए जाते हैं। इसकी छाल का काढ़ा बनाकर पीने से मलेरिया, पेचीस व अतिसार के बुखार में लाभ होता है।
बांस का परम्परागत उपयोग ईंधन, भोजन, ग्रामीण आवास,या छप्पर आदि बनाने में किया जाता है। इससे अचार-मुरब्बा भी बनाया जाता है तथा कागज बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है।
काशमरी या गम्हार की लकड़ी से कई प्रकार के फर्नीचर बनाए जाते हैं तथा इसके पत्तों का प्रयोग अनेक प्रकार की दवाओं को बनाने में किया जाता है।
अरिष्ट या नीम एक सर्वविदित वृक्ष हैं जिसे हम सभी जानते हैं। औषधी के रुप में इसके अनेक प्रकार से परम्परागत उपयोग होते रहे हैं : रक्त स्वच्छ करने, फोड़े-फुंसी या फिर त्वचा के रोगों में इसका बहुतायत प्रयोग होता रहा है।
वरण या वरुण मूत्रवर्धक गुणों के लिए जाना जाता है।
महुआ का फल भोजन के रुप में प्रयोग होता रहा है। इसकी सब्जी बनाकर भी खा सकते हैं। इससे अनेक प्रकार की औषधियाँ भी बनती हैं महुआ के सूखे फूलों का उपयोग मेवे के रुप में भी किया जा सकता है तथा आधुनिक युग में इसके फूलों से विशेष प्रकार की मदिरा भी बनाई जाती है।
रामायण के कुछ पेड़ों के बारे में सन्देह भी पैदा होता है। जैसे अयोध्या काण्ड के 94 वें सर्ग में लोध एवम् तिलक के वृक्षों का वर्णन किया गया है। विद्वानों ने तिलक को लोध वृक्ष ही माना है।परन्तु यदि ऐसा है तो महर्षि वाल्मीकि ने एक ही श्लोक में इन दोनों नामों का वर्णन क्यों किया? यह प्रश्न मस्तिष्क में उठता है।अतः ये दोनों वृक्ष उस समय अलग-अलग रहे होंगे। अथर्ववेद में मणीबन्धन प्रयोग के अंतर्गत तिलक के वृक्ष से निर्मित तिलकमणी का उल्लेख आता है। तिल के पौधे को भी तिलक कहा जाता है। तिल एक खास प्रकार के स्वास्थ्यवर्धक तथा सुगंध वाले बीज होते हैं। एक अन्य वृक्ष को भी तिलक कहते हैं जिसके बीज लाल और चमकदार होते हैं। इसकी छाल, पत्ते, बीज व काष्ठ औषधीय उपयोग के हैं। बीज का पेस्ट गठिया मेंबहुत उपयोगी है, अस्थमा में काढ़ा, उल्टी, बुखार, पैचिस आदि में यह पेड़ बहुउपयोगी है। पीपल के वृक्ष की एक प्रजाति को भी तिलक कहा जाता है।
बेर एक झाड़ीनुमा पेड़ है जिसकी अनेकानेक प्रजातियाँ हैं। बेर फल पाचक गुण के कारण कब्ज से राहत दिलाता है। बेर की छाल का चूर्ण उल्टी से राहत दिलाता है, इसकी छाल का काढ़ा सूजन और पेट की गड़बड़ी में काम आता है।
आँवले से तो हम सभी परिचित हैं, विटामिन सी से भरपूर यह फल स्वास्थ्य को बनाए रखने में योगदान देता है और यह हमें अनेक व्याधियों से भी बचाये रखता है।
कदम्बका फल-फूल और छाल सभी कुछ अनेक औषधीय गुणों से भरपूर है। कदम्ब का फल पुरुषों के लिए अन्दरुनी मजबूती प्रदान करता है।
बैंत भी अनेक बिमारियों के उपचार में प्रयोग होता है। इसकी लकड़ी से अनेक घरेलू उपयोगी सामान बनते हैं।
धन्वन एक जंगली पौधा है, कुछ विद्वानों ने इसे फालसा भी कहा है। फालसा एक प्रकार का फल है जो गर्मी के मौसम में होता है तथा बिमारियों से लड़ने में सहायता करता है। यह शरीर की कमजोरी को दूर करने के लिए शक्तिवर्धक पेय (टॉनिक) का काम भी करता है। कुछ लोगों ने धन्वन को इन्द्रजौ कहा है। इन्द्रजौ को कड़वा बादाम भी कहते हैं। यह एक प्राचीन औषधि है जिसकी छाल, पत्ते, फल, फूल, जड़ का उपयोग अनेक रोगों में किया जाता है। यह सुन्दर फूलों वाला वृक्ष होता है। इसे कुटज भी कहते हैं।
बीजक आमतौर पर उन फलों को कहा जाता है जो बीजयुक्त होते हैं। परन्तु यहां संभवतः अनार के लिए यह शब्द प्रयोग किया गया है। अनार एक मीठा व स्वादिष्ट फल होता है अनार शरीर में लोहतत्व की पूर्ति करता है तथा लाल रक्त कणों की वृद्धि करता है। यह पोषकतत्वों से भरपूर है तथा पेट के लिए फायदेमन्द है, तनाव और भूलने की बीमारी में भी लाभदायक है।
क्रमशः
#Mangotree #Trees and plants in ramayan #आम का पेड़ PrabodhRajChandol प्रबोध राज चन्दोल रामायण में वर्णित पेड़ पौधों के सामाजिक सरोकार’ भाग - चार 2025-01-05
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