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‘मेरा जीवन’: के.एम. अग्रवाल: 47: स्नेह मधुर

के.एम. अग्रवाल

सालों से मन में यह बात आती थी कि कभी आत्मकथा लिखूँ। फिर सोचा कि आत्मकथा तो बड़े-बड़े लेखक, साहित्यकार, राजनेता, फिल्मकार, अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी, वैज्ञानिक, बड़े-बड़े युद्ध जीतने वाले सेनापति आदि लिखते हैं और वह अपने आप में अच्छी-खासी मोटी किताब होती है। मैं तो एक साधारण, लेकिन समाज और देश के प्रति एक सजग नागरिक हूँ। मैंने ऐसा कुछ देश को नहीं दिया, जिसे लोग याद करें। पत्रकारिता का भी मेरा जीवन महज 24 वर्षों का रहा। हाँ, इस 24 वर्ष में जीवन के कुछ अनुभव तथा मान-सम्मान के साथ जीने तथा सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस विकसित हुआ। लेकिन कभी लिखना शुरू नहीं हो सका।

एक बार पत्रकारिता के जीवन के इलाहाबाद के अनुज साथी स्नेह मधुर से बात हो रही थी। बात-बात में जीवन में उतार-चढ़ाव की बहुत सी बातें हो गयीं। मधुर जी कहने लगे कि पुस्तक के रूप में नहीं, बल्कि टुकड़ों-टुकड़ों में पत्रकारिता के अनुभव को जैसा बता रहे हैं, लिख डालिये। उसका भी महत्व होगा। बात कुछ ठीक लगी और फिर आज लिखने बैठ ही गया।

गतांक से आगे…

सफर के साथी: 17

लगभग 12 वर्ष तक इलाहाबाद में प्रवास के दौरान पत्रकारिता से जुड़े अनेक ऐसे चेहरे हैं, जिनसे मुलाकात हो या न हो, वे प्रायः याद आते हैं। उनके बारे में भी लिखना अच्छा लगता है कि कौन कहाँ से आया और उसकी यात्रा कहाँ तक पहुँची ? इनमें कई ऐसे लोग भी हैं, जिनके बारे पर्याप्त जानकारी के अभाव में नहीं लिख पा रहा हूँ।

स्नेह मधुर

स्नेह मधुर एक ऐसा नाम है, जिसने 1978 से 2018 तक की अपनी पत्रकारिता की यात्रा में बहुत ही ऊबड़-खाबड़ रास्ते से चलते हुए दैनिक अखबार, मासिक-साप्ताहिक पत्रिका, न्यूज चैनेल और फिल्मी दुनिया तक के अनुभव को स्वयं में समेटा है। वर्तमान में इतने अर्से बाद अब वह महसूस करते हैं कि पत्रकारिता अब वह नहीं है, जब हमें खुलकर सच्चाई को लिखने की आजादी थी और ऐसा लिखते हुए हमें संपादक का संरक्षण मिलता था। वह खुलकर कहते हैं, ‘अब तो आग्रहों एवं पूर्वाग्रहों से भरी पड़ी है पत्रकारिता। मीडिया में संपादक की भूमिका समाप्त कर दिए जाने के कारण ही यह स्थिति उत्पन्न हुई है। अब अख़बार मात्र एक उत्पाद हैं और पत्रकार उसके सेल्समैन।’

बहरहाल, स्नेह मधुर ने 1978 में इलाहाबाद में दैनिक जागरण ज्वाइन किया और 1980 में माया पत्रिका में आ गये। उस समय माया पत्रिका की तूती बोला करती थीं।

स्नेह मधुर प्रोफ़ेशनल फोटोग्राफर के रूप में भी काम कर चुके हैं। अमृत प्रभात के लिए फ्रीलांस फोटोग्राफी करने के साथ मनोरमा पत्रिका के लिए मॉडलिंग फोटोग्राफी भी करते थे। वह इलाहाबाद के पहले प्रोफ़ेशनल फोटोग्राफर थे जो उस ज़माने में ट्रांसपेरेंसी वाली फोटो खींचते थे जो बॉम्बे से डेवलप होकर आती थी। जब अमिताभ बच्चन चुनाव लड़ रहे थे तो उस दौरान अमृत प्रभात में नौकरी करते हुए भी उन्होंने माया के लिए अमिताभ बच्चन बनाम बहुगुणा सब्जेक्ट पर कई फोटो खींची थी जिसको लेकर माया ने एक विशेष अंक निकाला था।

अमिताभ बच्चन से निकटता हो जाने के कारण बोफोर्स विवाद के दौरान उन्होंने इलाहाबाद के करीब एक दर्जन पत्रकारों को दिल्ली ले जाकर अमिताभ बच्चन से वन टू वन मुलाकात कराई थी। पत्रकारों के कल्याण के लिए स्नेह मधुर ने एक फंड बनाने का भी प्रयास किया था। इस योजना के तहत बेरोजगार हो जाने वाले पत्रकार को साल भर तक वेतन मिलता रहेगा। अमिताभ बच्चन ने इस फंड में पांच लाख रुपए के अंशदान का वायदा किया था। लेकिन इलाहाबाद के कुछ पत्रकारों ने इस योजना का बहिष्कार कर दिया था और नारे लगाए थे कि आधी रोटी खाएंगे लेकिन अमिताभ बच्चन से मदद नहीं लेंगे।

जब अमिताभ बच्चन ने सांसद पद से इस्तीफा दिया था तो इलाहाबाद में गुस्साए लोगों ने अपना आक्रोश व्यक्त किया था। उस दौरान एक अखबार ने यह खबर छापी थी दुकानें बंद कराने में स्नेह मधुर की भी भूमिका है।

पत्रकारों के लिए अपने रसूख से स्नेह मधुर ने सिविल लाइंस थाने के बगल में 12 रुपए सालाना के किराए पर एक इमारत आबंटित करा दी थी। लेकिन कुछ स्थानीय पत्रकारों ने ईर्ष्या वश विरोध कर दिया तो उसको भी स्नेह मधुर ने छोड़ दिया था। आज वहां पर एक मार्केट है।

माया छोड़कर स्नेह मधुर 1983 में रिपोर्टर के रूप में अमृत प्रभात से जुड़ गये, और मेरे साथ ही बैठने लगे। अमृत प्रभात ज्वाइन करने के पहले से वह विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख तथा फीचर आदि भी लिखते रहे, जिनमें धर्मयुग, सारिका, कथायात्रा, माया, मनोरमा, सूर्या, साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादम्बिनी, हिंदी एक्सप्रेस, नवभारत टाइम्स, रविवार, श्रीवर्षा, हिंदुस्तान समाचार पत्र आदि शामिल हैं।

रिपोर्टर रूम में उनके पहले दिन के पहले कुछ क्षण यादगार बन गये। मुझे तो याद नहीं, लेकिन स्नेह मधुर को याद है कि कमरे में उनके आने पर पहले मैं उन्हें परिसर से बाहर ले गया और ठेले से अंडा खिलाया। फिर एक छोटा सा समाचार दिया कि इसे संक्षिप्त में तीन-चार लाइनों में बना दें। लेकिन मधुर जी मनोहर कहानियां के पैटर्न पर कल्पना की उड़ान भर कर तीन पेज में बना दिया। हमने उनकी ओर देखा और फिर दोनों मुस्कुरा दिये। बाद में क्राइम रिपोर्टर के रूप में स्नेह मधुर ने अमृत प्रभात में एक लंबी पारी खेली और अपनी खबरों के माध्यम से अपराध जगत में खलबली तो मचा ही दी, पुलिस विभाग तक को भी त्वरित सूचनाओं के मामले में पछाड़ दिया। स्थिति यह हो गई थी कि अपराध होने पर मौके पर पहले स्नेह मधुर पहुंचते थे और पुलिस बाद में।

स्नेह मधुर ने अमृत प्रभात में लगभग 15 वर्ष गुजारे तथा अखबार में समय-समय पर आने वाले उतार-चढ़ाव को देखते, उनसे निपटते हुए सकुशल 1996 में इलाहाबाद में ही हिन्दुस्तान अखबार ज्वाइन कर लिया। लगभग 12 वर्ष तक हिन्दुस्तान में रहते हुए कभी इलाहाबाद और कभी बनारस में काम करते रहे। 2010 में वह लखनऊ में नई दुनिया के विशेष संवाददाता बनकर चले गये। वह ऐसा दौर था, जब अखबार मालिक पत्रकारों को स्थायी तौर पर न रखकर कांट्रैक्ट बेसिस पर रखने लगे थे। जो पत्रकार बाहर बहुत शान से रहता था, अखबार के भीतर प्रबंधतंत्र के उत्पीड़न का प्रायः शिकार होता था। वह या तो लड़े या छोड़कर चला जाय।

स्नेह मधुर हिन्दुस्तान में रहते हुए ‘वायस आफ अमेरिका, वाशिंगटन डी.सी.’ के लिए भी चयनित कर लिए गए थे। प्रिंट मीडिया के साथ रेडियो मीडिया में भी काम करना एक बड़ी चुनौती थी जिसे उन्होंने अपने अनुभव क्षेत्र का विस्तार करने के लिए स्वीकार किया। इस मीडिया में खास बात यह थी कि सम्पूर्ण भारत से संबंधित किसी भी क्षेत्र की खबर पर उनकी टिप्पणी का live प्रसारण होता था। आजकल यह आम बात हो गई है लेकिन दो दशक पूर्व ऐसा नहीं था।  

1995 में इलाहाबाद से प्रकाशित एक साप्ताहिक पत्रिका गंगा यमुना प्रकाशित होती थी जिसके संपादक मशहूर साहित्यकार श्री रवीन्द्र कालिया जी थे। इस पत्रिका ने इस वर्ष के लिए ‘टॉप टेन पर्सनैलिटीज ऑफ इलाहाबाद’ का सर्वे कराया था। इलाहाबाद के कुल दस चर्चित हस्तियों में स्नेह मधुर का भी नाम छठे स्थान पर था।

वर्ष 2005 में पूरे देश से दस पत्रकारों को स्वीडन में एक वर्कशॉप के लिए चुना गया था जिसमें स्नेह मधुर भी एक थे। स्नेह मधुर उत्तर प्रदेश के इकलौते पत्रकार थे जिनका नाम उस सूची में था। लेकिन हिंदुस्तान की संपादिका मृणाल पांडे ने उन्हें जाने की अनुमति नहीं प्रदान की जिसका जिक्र उस समिति ने किया था कि दस में से सिर्फ नौ पत्रकार जा सके।

1999 में वह भारत सरकार के हरिश्चंद्र पत्रकारिता पुरस्कार समिति के सदस्य भी रहे। दो अन्य सदस्यों में श्रीमती ममता कालिया और श्रीमती चित्रा मुद्गल भी थीं।

2015 के आस-पास नई दुनिया के बंद हो जाने के बाद, दिल्ली से ही निकलने वाले नेशनल दुनिया के विशेष संवाददाता के रूप में लखनऊ में ही बने रहे। इस अखबार में साल भर रहे, लेकिन कार्य से संतुष्टि नहीं मिली तो 2016 में एक साल के लिए ‘के.न्यूज’ चैनल में राजनीतिक संपादक के रूप में जुड़े रहे। उनकी मंशा पत्रकारिता के हर क्षेत्र के बारे में जानकारी रखने की थी।

और फिर एक दिन आया जब स्नेह मधुर लखनऊ में ही हिन्दी ‘पायनियर’ में संपादक हो गये, जहाँ दो वर्षों तक अपनी सेवाएं देने के बाद 2018 में अवकाश ग्रहण कर लिया।

स्नेह मधुर वैसे तो बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे हैं। शुरू से ही उनकी रुचि फिल्मी दुनिया में थी, इसलिए प्रायः मुम्बई का चक्कर लगाते रहते। कई फिल्मों में विभिन्न रूपों में उन्होंने काम किया है। फिल्म लेखन, अभिनय, गीत लेखन के साथ निर्माता और वितरक का भी काम किया। एक वक्त था जब वह शहर में कर्फ्यू नामक फिल्म बना रहे थे जिसके वह निर्माता थे और फिल्म के निर्देशक गुलज़ार थे। लेकिन पारिवारिक कारणों से मुंबई छोड़कर वापस इलाहाबाद लौटने के कारण फिल्म अधूरी रह गई। बाद में एक टेली फिल्म अर्धांगिनी बनाई जिसे दूरदर्शन ने प्रसारित भी की थी। उन्होंने एक इंग्लिश फिल्म Little Box of Sweets में भी अभिनय किया है।

फिल्मी दुनिया में उनकी पहुँच का अंदाज इसी से लगा सकते हैं कि 2007 में जयपुर में आयोजित ‘इंटरनेशनल शार्ट फिल्म फेस्टिवल’ में वह जूरी सदस्य के रूप में जुड़े रहे। उनके साथ कई फिल्मी हस्तियां भी जूरी सदस्य थीं और बसु चटर्जी जूरी हेड थे। शशि कपूर ने फेस्टिवल का उद्घाटन किया था।

We want Sneh Madhur

वैसे तो स्नेह मधुर रिपोर्टर के रूप में काम करते हुए कई उतार-चढ़ाव से गुजरे हैं, लेकिन 1995 में इलाहाबाद में एक दिन अमर उजाला में एक छोटा सा समाचार छपा कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुछ छात्राएं वेश्यावृत्ति करते हुए पकड़ी गयीं। उन दिनों एस के दुबे संपादक बनकर पत्रिका में पुनः लौट आये थे। उन्होंने स्नेह मधुर को बुलाकर कहा, ‘इतना महत्वपूर्ण समाचार कैसे छूट गया ? हमें यह समाचार विस्तार से चाहिए।’

स्नेह मधुर ने कहा, ‘ यह ऐसा समाचार है, जिसे मैंने यदि लिख दिया तो पत्रिका में आग लग जायेगी। अमर उजाला ने बचते -बचाते अर्ध्य सत्य ही लिखा है। मैं छात्राओं को वेश्या नहीं लिख सकता, हकीकत कुछ और है, उनसे ज़बरदस्ती यह काम करवाया जा रहा है।’

दुबे जी ने कहा, ‘आप हमें समाचार दीजिए, छपेगा।’

बहरहाल, दो दिन बाद स्नेह मधुर ने विस्तार से उस समाचार को लिखकर दिया, जिसने पूरे इलाहाबाद को हिला दिया। लम्बा-चौड़ा यह समाचार अमृत प्रभात मे बाई लाइन छपा।

इस समाचार का छपना था कि सचमुच आग लग गयी, तहलका मच गया। अधीक्षिका के नेतृत्व में सैकड़ों की संख्या में विश्वविद्यालय की छात्राओं ने पत्रिका को घेर लिया। प्रदर्शनकारियों के साथ सिटी मजिस्ट्रेट भी मौजूद रहे। नारे लगाती हुईं ये छात्रायें जैसे ही अमृत प्रभात प्रेस के मुख्य गेट पर पहुँचीं, गेट को बंद कर दिया गया।

प्रदर्शनकारी छात्राएं स्नेह मधुर से बात करना चाहती थीं, क्योंकि उन्होंने ही समाचार लिखा था। स्थिति को देखते हुए, पत्रिका के प्रबंधतंत्र ने स्नेह मधुर को एक कमरे में बंद कर दिया और संपादक के.बी.माथुर तथा प्रबंधक संतोष तिवारी को गेट पर छात्राओं से बात करने के लिए भेजा। लेकिन लड़कियाँ और अधीक्षिका उनसे बात करने को तैयार नहीं थीं। उनका बार-बार समझाना सब बेकार।

तभी दो-तीन लड़कियाँ एकाएक गेट पर चढ़कर परिसर में घुस आयीं और ‘ वी वान्ट स्नेह मधुर ‘ नारे परिसर में घूम-घूमकर लगाने लगीं। उनके पीछे-पीछे सैकड़ों लड़कियां प्रेस परिसर में घुस गईं और नारेबाज़ी करने लगीं।

स्थिति को काफी तनावपूर्ण होते देखकर प्रबंधतंत्र ने जिलाधिकारी से संपर्क किया लेकिन उन्होंने कोई मदद नहीं की। प्रदेश के किसी मंत्री ने भी टेलीफोन पर संपर्क करने पर कोई कारवाई नहीं की। अंत में प्रबंधतंत्र ने केन्द्रीय गृहमंत्री को फोन करके स्थिति की जानकारी दी। गृहमंत्री ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को बोला और तब राज्यपाल ने हस्तक्षेप किया। परिणामस्वरूप, तब बड़ी संख्या में पुलिस आयी और प्रदर्शनकारियों को मौके से हटाया। अधीक्षिका और लड़कियों ने वापस जाते-जाते कहा, ‘कल हम लोग फिर आयेंगे।’

दूसरे दिन अमृत प्रभात में प्रथम पृष्ठ पर इस संदर्भ में संपादकीय छपा कि ‘हम झुकेंगे नहीं‘।

बताया जाता है कि जिस समय छात्राएँ पत्रिका परिसर के गेट पर प्रदर्शन कर रहीं थीं, इसकी जानकारी शहर में दूर-दूर तक लोगों को हो गयी और सैकड़ों की संख्या में तमाशबीन वहाँ इकट्ठा हो गये।

दो दिन बाद पत्रिका के प्रबंध निदेशक तमाल कांति घोष, स्नेह मधुर को लेकर दिल्ली चले गये और गृहमंत्री आदि से मिलकर लखनऊ होते हुए एक सप्ताह बाद लौटे। तब तक स्थिति काफी कुछ शांत हो चुकी थी। बताया जाता है कि बाद में अधीक्षिका ने स्नेह मधुर से मिलकर प्रदर्शन के लिए खेद व्यक्त किया था।

स्नेह मधुर की व्यंग्य पर भी अच्छी पकड़ है। यही कारण है कि काफी पहले ही ‘घूमता आईना’ नाम से उनकी पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है, जिसमें समय-समय का समाज पूरे व्यंग्य और हास्य के साथ दिखाई देता है। ये मंचीय कवि तो नहीं हैं, लेकिन समय -समय पर इनकी लेखनी कुछ अच्छी कविताएँ भी लिख देती हैं। इनकी दो पुस्तकें पहाड़ खामोश है और किसी के लिए ठहर जाना भी प्रकाशित हो चुकी हैं। स्नेह मधुर भारत के Cultural Ambassador के रूप में 1998 में सीरिया की यात्रा भी कर चुके हैं।

स्नेह मधुर के जीवन से जुड़ी एक महत्वपूर्ण बात बतानी जरूरी है जो उनकी विराट सोच को दर्शाती है। जिस समय उन्होंने विवाह किया, वह लोकप्रियता के शिखर पर थे। हर कोई उनके समारोह में शामिल होने को इच्छुक था। उस समय अमृत प्रभात बंद चल रहा था, लोगों को महीनों से वेतन नहीं मिल रहा था। ऐसे समय में उन्होंने विवाह के बाद प्रीति भोज आयोजित करने से मना कर दिया। उनके परिवार ने बहुत दबाव बनाया कि शादी जीवन में एक बार होती है, खुशी का यह अवसर फिर नहीं आयेगा। लेकिन स्नेह मधुर ने कहा कि जिस पत्रकार कॉलोनी में स्यापा छाया हुआ है, वहां पर इतना बड़ा आयोजन करना लोगों के घावों पर नमक छिड़कने के समान है। अंततः उन्होंने प्रीतिभोज नहीं होने दिया। क्या ऐसा कोई उदाहरण मिलेगा?

क्रमशः 48

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