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‘मेरा जीवन’: के.एम. अग्रवाल: 53: गुवाहाटी की पुकार*3

के.एम. अग्रवाल

सालों से मन में यह बात आती थी कि कभी आत्मकथा लिखूँ। फिर सोचा कि आत्मकथा तो बड़े-बड़े लेखक, साहित्यकार, राजनेता, फिल्मकार, अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी, वैज्ञानिक, बड़े-बड़े युद्ध जीतने वाले सेनापति आदि लिखते हैं और वह अपने आप में अच्छी-खासी मोटी किताब होती है। मैं तो एक साधारण, लेकिन समाज और देश के प्रति एक सजग नागरिक हूँ। मैंने ऐसा कुछ देश को नहीं दिया, जिसे लोग याद करें। पत्रकारिता का भी मेरा जीवन महज 24 वर्षों का रहा। हाँ, इस 24 वर्ष में जीवन के कुछ अनुभव तथा मान-सम्मान के साथ जीने तथा सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस विकसित हुआ। लेकिन कभी लिखना शुरू नहीं हो सका।

एक बार पत्रकारिता के जीवन के इलाहाबाद के अनुज साथी स्नेह मधुर से बात हो रही थी। बात-बात में जीवन में उतार-चढ़ाव की बहुत सी बातें हो गयीं। मधुर जी कहने लगे कि पुस्तक के रूप में नहीं, बल्कि टुकड़ों-टुकड़ों में पत्रकारिता के अनुभव को जैसा बता रहे हैं, लिख डालिये। उसका भी महत्व होगा। बात कुछ ठीक लगी और फिर आज लिखने बैठ ही गया।

गतांक से आगे…

गुवाहाटी की पुकार: 3

अखबार में कवरेज

असम के लगभग सभी जिलों के प्रमुख बाजारों में पूर्वांचल प्रहरी के संवाददाता हुआ करते थे। वे लिफाफों में अथवा कभी-कभी टेलीफोन से समाचार भेजते थे। कई संवाददाता महीने में एक-दो बार स्वयं भी प्रेस पर आ जाते थे।

अखबार के लिए साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को कवर करने के लिए जी.एल. साहब ने स्वयं भी इस क्षेत्र के लोगों से संपर्क कर रखा था। हमेशा नंगे पैर चलने वाले, कुर्ता-धोती में पतले-दुबले काया वाले, शांत स्वभाव, अधेड़ उम्र के नवारुण वर्मा की साहित्यिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में एक खास पहचान थी। उनकी कलम में शब्दों और विचारों की बहुत अच्छी पकड़ थी। वे अखबार में प्रायः आते और लिखते रहते थे। उनसे कुछ कहना नहीं पड़ता था। ओंकार पारिख भी सामाजिक और साहित्यिक गतिविधियों पर लिखते थे। असम के सामाजिक और साहित्यिक क्षेत्र में इन्होंने विशद अध्ययन कर रखा है।
हमारे स्थानीय रिपोर्टर असमिया थे अथवा ऐसे हिन्दी भाषी थे, जो गुवाहाटी में ही लम्बे समय से बसे हुए थे और असमिया भाषा खूब बोलते और समझते थे।

पूर्वांचल प्रहरी अखबार के दफ्तर में अपने केबिन में

मुझे कुछ रिपोर्टरों और संवाददाताओं के नाम याद आ रहे हैं, जिनको याद करना अच्छा लगता है। स्टाफ रिपोर्टर के रूप में विनोद रिंगानिया, सत्यानंद पाठक, राजकुमार शर्मा, कृष्ण कलिता, प्रभाकर मणि त्रिपाठी और गोपाल मिश्रा (फोटाग्राफर) थे। संवाददाता के रूप में निर्मल भगेरिया – बरपेटा रोड, बजरंग खेमका – नलबाड़ी, बाँकेलाल शर्मा – बोगाई गाँव, तोदी – दुबड़ी, संतोष कुमार अग्रवाल – गौरीपुर, संदीप कोठरी – नवगाँव, नथमल टिबड़ेवाल – तेजपुर, डब्लू – डिब्रूगढ, बिहारी – शिबशागर, रामनिवास पाण्डेय – लंका, राजकुमार झांझरी – विजय नगर थे। इनके अलावा डिब्रूगढ़ से अधेड़ उम्र, धोती-कुर्ता में ठिगने कद के लडिया जी कभी-कभी आते थे और हिन्दी साहित्य पर कुछ न कुछ लिखते थे। सभी लोग उनकी इज्ज़त करते थे। इनि अलावा पटना, शिलांग, दिल्ली आदि पड़ोस के राज्य मुख्यालयों पर भी संवाददाता हुआ करते थे।

पूर्वांचल प्रहरी शुरू होने के बाद मैंने देखा कि शाम को किसी प्रेस कांफ्रेंस में रिपोर्टर जाते थे, तो वे वहीं से खा-पीकर घर चले जाते थे और समाचार दूसरे दिन देते थे। मुझे यह बात अच्छी नहीं लगी। एक दिन मैंने रिपोर्टरों से कहा कि शाम की प्रेस क्रांफ्रेंस का समाचार हमें शाम को ही चाहिए। प्रश्न था कि अन्य सारे अखबारों के रिपोर्टरों ने यही नियम बना डाले थे कि खाने-पीने के बाद घर जाओ और दूसरे दिन समाचार दो, तो ऐसी हालत में सिर्फ पूर्वांचल प्रहरी का रिपोर्टर सबके विरुद्ध जाकर शाम को ही समाचार कैसे दे दे ? एक-दो बार तो मेरे जोर देने पर समाचार शाम को मिल गये, लेकिन फिर मैंने उनकी मजबूरी को समझा और फिर पहले की तरह ही चलने लगा।

अल्फा वाले कभी-कभी अखबारों के एक-एक संवाददाता को सुदूर जंगल में अज्ञात स्थान पर ले जाते थे और अपने किसी खास लीडर से मिलवाते थे और प्रेस नोट जारी करते थे, जिसे छपना होता था। प्रेस नोट छपता ही था।

एक बार की बात है, अल्फा वाले हमारे एक युवा मारवाड़ी संवाददाता को, जो गुवाहाटी से काफी दूर एक बाजार में रहता था, पुलिस का मुखबिर होने के शक में अपहृत कर जंगल में उठा ले गये। उस संवाददाता ने लाख उन्हें समझाया कि वह मुखबिरी नहीं करता है, लेकिन अल्फा वाले इस बात पर अड़े रहे कि वह अखबार में मुखबिरी वाली बात को स्वीकार करते हुए खेद व्यक्त करे, माफी माँगे अन्यथा उसकी हत्या कर दी जायेगी। संवाददाता ने जंगल से लगातार दो दिन फोन करके माफीनामा प्रकाशित कर देने की बात कही। तीसरे दिन जी.एल. साहब को लगा कि संवाददाता की जान बचाने के लिए उसे छापना ही होगा।

क्रमशः 54

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