के.एम. अग्रवाल
सालों से मन में यह बात आती थी कि कभी आत्मकथा लिखूँ। फिर सोचा कि आत्मकथा तो बड़े-बड़े लेखक, साहित्यकार, राजनेता, फिल्मकार, अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी, वैज्ञानिक, बड़े-बड़े युद्ध जीतने वाले सेनापति आदि लिखते हैं और वह अपने आप में अच्छी-खासी मोटी किताब होती है। मैं तो एक साधारण, लेकिन समाज और देश के प्रति एक सजग नागरिक हूँ। मैंने ऐसा कुछ देश को नहीं दिया, जिसे लोग याद करें। पत्रकारिता का भी मेरा जीवन महज 24 वर्षों का रहा। हाँ, इस 24 वर्ष में जीवन के कुछ अनुभव तथा मान-सम्मान के साथ जीने तथा सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस विकसित हुआ। लेकिन कभी लिखना शुरू नहीं हो सका।
एक बार पत्रकारिता के जीवन के इलाहाबाद के अनुज साथी स्नेह मधुर से बात हो रही थी। बात-बात में जीवन में उतार-चढ़ाव की बहुत सी बातें हो गयीं। मधुर जी कहने लगे कि पुस्तक के रूप में नहीं, बल्कि टुकड़ों-टुकड़ों में पत्रकारिता के अनुभव को जैसा बता रहे हैं, लिख डालिये। उसका भी महत्व होगा। बात कुछ ठीक लगी और फिर आज लिखने बैठ ही गया।
गतांक से आगे…
गुवाहाटी की पुकार: 20
“असम की हिन्दी पत्रकारिता”
असम में हिन्दी पत्रकारिता (दैनिक) की सही मायने में शुरुआत तो ‘पूर्वांचल प्रहरी‘ से ही हुई, जिसका प्रकाशन 16 मई, 1989 से गुवाहाटी से शुरू हुआ। यह वह समय था, जब कहने को तो असम गण परिषद की सरकार थी, छात्र-युवा आंदोलन से उभरे प्रफुल्ल कुमार महंत मुख्यमंत्री और भृगु कुमार फूकन गृहमंत्री थे, लेकिन समाज और राज्य में चलता अल्फा का था, जिसके आगे राज्य सरकार की कानून व्यवस्था पंगु थी।
यह गौरव की बात है कि अखबार के मालिक जी.एल.अग्रवाला (प्रबंध निदेशक/संपादक) के कुशल नेतृत्व में तथा कार्यकारी संपादक कृष्ण मोहन अग्रवाल की संपादकीय देख-रेख एवं परिश्रम से हिन्दी का जो पौधा रोपा गया, वह आज 31 वर्ष बाद भी फल फूल रहा है। इतना ही नहीं, इस अखबार से प्रेरित होकर गुवाहाटी से एक-दो नहीं चार और दैनिक अखबार निकलने लगे, जो आज भी हिन्दी की शान और जान हैं। मुझे बहुत ख़ुशी होती है कि असम के प्रथम हिन्दी दैनिक का मैं प्रथम कार्यकारी संपादक था, भले ही मैं वहां सवा साल ही रहा।
लेकिन यदि रेकार्ड की बात की जाय तो कहा जायेगा कि असम का पहला हिन्दी दैनिक अखबार ‘लोकमान्य‘ था, जो 1963 में पांडु गुवाहाटी से शुरू हुआ, लेकिन दुर्भाग्य से यह अखबार दो वर्ष बाद ही बंद हो गया। रामाशंकर त्रिपाठी इसके संपादक थे। यह अखबार गुवाहाटी के साथ कलकत्ता और नागपुर से भी छपने लगा था।
असम में हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत 1919 मानी जाती है, जब शायद पहली बार डिब्रूगढ़ से ‘प्रकाश‘ नाम से मासिक पत्रिका शुरू हुई, जिसके संपादक विश्वेेेेेवर दत्त शर्मा थे। तीन रुपए वार्षिक मूल्य की यह पत्रिका लगभग दो साल ही चल सकी और बंद हो गयी।
1935 में डिब्रूगढ़ में असम प्रांतीय मारवाड़ी सम्मेलन हुआ, जिसमें एक हिन्दी अखबार निकालने की बात तय की गई। एक लिमिटेड कम्पनी भी बनायी गई , जिसके आठ हजार शेयर भी बेचे गये। रायबहादुर ख्याली राम हंसारिया और रंगलाल खेमानी आदि इसमें सम्मिलित थे। अंत में 1939 में डिब्रूगढ़ से ‘नव जागृति‘ नाम से मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ, जिसके संपादक पन्नालाल राजपुरोहित पारिख थे। लेकिन डेढ़-दो साल बाद ही यह भी बंद हो गयी।
असम में हिन्दी पत्रकारिता के संदर्भ में एक कहावत है,’ डिब्रूगढ़ ने जन्म दिया, तिनसुकिया ने पाला और गुवाहाटी ने विकास दिया।’ इसी प्रकार यह भी कहा जाता है कि जिस बात को डिब्रूगढ़ आज सोचेगा, पूरा असम उसे कल सोचेगा।
1947 में तिनसुकिया से हिन्दी साप्ताहिक ‘अकेला‘ का प्रकाशन शुरू हुआ, जो 2019 में जाकर दैनिक हो गया। विश्वनाथ गुप्त इसके संस्थापक संपादक थे। इनके परिवार की दृढ़ इच्छाशक्ति हमेशा दूसरों को प्रेरणा देती रहेगी। लगातार तीसरी पीढ़ी आज इस प्रकाशन को संभाल रही है। विश्वनाथ गुप्त के बाद उनके लड़के प्रताप गुप्त, फिर उनके लड़के प्रकाश चन्द गुप्त और फिर उनके लड़के बिरजू गुप्त संपादक का भार संभाल रहे हैं।
1948 में डिब्रूगढ़ से ‘छात्र‘ नाम से मासिक हिन्दी पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ, जो हस्तलिखित था और जिसके संपादक मंडल में 14 व्यक्ति थे। इनमें से कुछ नाम जवाहरलाल लाटा, झावरमल शर्मा, दीनदयाल केजड़ीवाल, परशुराम जालान, मोदीराज शर्मा और परमेश्वर तुलश्यान थे। पत्रिका में संपादक के रूप में एक कल्पित नाम ‘अक्कन’ छपता था। लेकिन एक साल में ही यह पत्रिका बंद हो गयी।
1947 में ही ‘शंखनाद’नाम से एक हिन्दी साप्ताहिक शुरू हुआ, जो हिन्दुत्व की भावना से ओतप्रोत रहता था। शंकरलाल मात्रा एडवोकेट इसके संपादक थे। लेकिन यह साप्ताहिक भी जल्द ही बंद हो गया।
1957 में ‘पूर्व ज्योति‘ नाम से हिन्दी पाक्षिक गुवाहाटी से शुरू हुआ, जो बाद में साप्ताहिक हो गया था। यह पत्रिका काफी लोकप्रिय हुई, क्योंकि इसका आधार सामाजिक गतिविधियां और सोच था। छगनलाल जैन इसके संपादक थे। लगभग 18 वर्षों तक यह पत्रिका चलने के बाद 1975 में बंद हो गयी।
1975 में डिब्रूगढ़ से ‘असम प्रदीप‘ नाम से पाक्षिक शुरू हुआ, जो हिन्दी के साथ असमिया और राजस्थानी भाषा में भी छपता था। सूर्यवंशी चौधरी इसके संपादक थे। बाद में गुवाहाटी से भी इसका प्रकाशन शुरू हुआ था, लेकिन यह भी जल्दी ही बंद हो गया।
1976 में तिनसुकिया से ‘असम ज्योति‘ नाम से एक पाक्षिक शुरू हुआ, जो हिन्दी, असमिया और राजस्थानी में छपता था। इसकी विशेषता थी कि एक अध्यापिका लावण्यम् गोगोई इसकी संपादक थीं। छह पृष्ठ की यह पत्रिका महिला प्रधान थी। 1997 में लावण्यम् गोगोई की मृत्यु हो जाने के बाद इसका प्रकाशन बंद हो गया।
1972 में जोरहाट और गुवाहाटी से ‘नव ध्वनि’ नाम से एक पाक्षिक हिन्दी, असमिया और नेपाली में निकलना शुरू हुआ, लेकिन अधिक समय तक नहीं चल सका। अनुराग प्रधान इसके संपादक थे।
1986 से जोरहाट से ‘समन्विता‘ त्रैमासिक का प्रकाशन शुरू हुआ। भारतीय भाषा परिषद द्वारा प्रकाशित इस पत्रिका के संपादक बापचंद महंत थे। एक सौ पृष्ठ की इस पत्रिका में आधे पृष्ठ हिन्दी में और आधे पृष्ठ असमिया में होते थे। इसका मूल्य 8 रूप था, जबकि वार्षिक मूल्य 25 रू था। यह पत्रिका भी लम्बे समय तक नहीं चल सकी।
इसी प्रकार तिनसुकिया से किसी समय ‘पूर्वोत्तर संवाद’ नाम से एक पाक्षिक शुरू हुआ, जिसके संपादक गोपाल चंद्र गुप्ता थे।
1948 में डिब्रूगढ़ से और बाद में गुवाहाटी से ‘विश्वामित्र‘ नाम से एक पत्रिका निकाली गई थी, जो लम्बे समय तक नहीं चल सकी। कुछ ऐसी भी पत्रिकाएं हैं, जिनके नाम तो पता चलते हैं, लेकिन वे कहां से निकले और कब तक निकले, पता नहीं चलता।
1976 में बसंत कुमार सिंह के संपादन में ‘जयहिंद’ निकला।
1982 में ‘रजनीगंधा’ पाक्षिक शंभू प्रसाद शर्मा के संपादन में निकला।
बालोपयोगी पत्रिका ‘बालार्क’ अमेरिका प्रसाद पंकज के संपादन में निकला।
तेजपुर से ‘महाजाति’ पूर्व सांसद पूर्ण नारायण सिंह के संपादन में निकला।
1959 में ‘दीप’ मासिक निर्मल बेरीवाल निरुपमा के संपादन में निकला।
तिनसुकिया से ‘नवीन समाज‘ साहित्यिक पत्रिका नवाब सिंह रघुवंशी के संपादन में निकला। उन्होंने ही ‘रणभेरी’ नाम से एक साप्ताहिक भी संपादित किया था।
पुष्पराज जैन के संपादन में ‘प्रभात’ निकला।
निरुपमा के संपादन में ‘असम प्रभाकर’ निकला।
तिनसुकिया से 1971 में कांतेश्वर उपाध्याय के संपादन में ‘असम भूमि’ साप्ताहिक निकला। इन्होंने ही ‘पूर्वोत्तर’ नाम से एक मासिक भी निकाला था।
1984 में तिनसुकिया से ‘द ब्लास्ट’ हिन्दी साप्ताहिक रमणीय भार्गव के संपादन में निकला।
1977 में ‘पूर्व गंधा’ पाक्षिक भुवनेश्वर प्रसाद सिंह आजाद के संपादन में निकला। बताते हैं कि यह आज भी कभी-कभी छप जाता है।
1988 में ‘भारत भूमि’ साप्ताहिक अशोक राज के संपादन में निकला।
1992 में तिनसुकिया से ‘नव दर्पण’ पाक्षिक संदीप मिश्रा के संपादन में निकला।
एक जानकारी के अनुसार शिबसागर से 1846 में कर्नल नाथन ब्राउन के प्रयास से असमिया में ‘अरुणोदय’ मासिक का प्रकाशन शुरू हुआ था।
इसी प्रकार 1895 में डिब्रूगढ़ से राधानाथ चांग काटती के संपादन में Times of Assam अंग्रेजी अखबार का प्रकाशन शुरू हुआ था।
एक दूसरा अंग्रेजी दैनिक Assam Tribune 1938 में डिब्रूगढ़ से प्रकाशित होना शुरू हुआ, जिसने 1988 में अपना पचास वर्ष पूरा किया।
और अब तो पूर्वांचल प्रहरी के बाद गुवाहाटी से हिन्दी के ‘सेन्टिनल’, ‘पूर्वोदय’, ‘प्रात: खबर’, ‘निष्पक्ष समाचार ज्योति’ अखबार निकल रहे हैं। उत्तर काल और अकेला निकल कर कुछ समय बाद ही बंद हो गये।
1996 से गुवाहाटी से अनुवाद आधारित पत्रिका ‘उलूपी‘ का प्रकाशन रविशंकर रवि के संपादन में शुरू हुआ। अनियतकालिक यह प्रकाशन जारी है।
अंत में कह सकते हैं कि असम मैं हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं और दैनिक अखबारों के प्रकाशन में मारवाड़ी समाज का बहुत बड़ा योगदान रहा है। हो भी क्यों न, इनके पास बुद्धि है, इच्छाशक्ति है और धन है। समय-समय पर गैर हिन्दी भाषियों ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
अंत में, इस लेख में जानकारियां इकट्ठा करने में लेखक श्री ओंकार पारिख जी का काफी योगदान है। हम उनके आभारी हैं।
के एम अग्रवाल: +919453098922
क्रमशः 71