अब अगले वर्ष से मंत्री और मुख्यमंत्री अपनी आय का टैक्स अपनी असली आमदनी से खुद भरेगें। अभी सरकार की ओर से टैक्स भरने की व्यवस्था उत्तर प्रदेश मंत्री, वेतन, भत्ते एवं विधिक कानून 1981 के तहत चल रही थी जिसे संशोधित किया जायेगा।
स्नेह मधुर
लगभग चार दशक पूर्व उत्तर प्रदेश में एक ऐसे जननेता का आविर्भाव हुआ था जिसे देश ने राष्ट्र के सर्वोच्च राजनैतिक पद से न सिर्फ विभूषित कर गौरवान्वित महसूस किया था बल्कि जिस कांग्रेस पार्टी से जुड़ कर वह सत्ता के सोपान पर लगातार डगर भरते चले गये, उसी कांग्रेस को जड़ों से उखाड़ने में भी उन्होने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यही नहीं, उस नेता ने अपने पिटारे से आरक्षण का भूत निकालकर पूरे देश में भूचाल ला दिया था। वह भूचाल भी ऐसा था जिसने सवर्णों की आशाओं और भविष्य पर ऐसा तुषारापात किया जिससे वे आज भी उबर नहीं पाये हैं और न ही उससे मुक्त होने की कोई उम्मीद ही नज़र आती है।
वह जननेता इतना लोकप्रिय था कि उसके समर्थक उसे ‘‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है’’ जैसे अल्फ़ाज़ों से नवाजा करते थे। ऐसे लोकप्रिय नेता किस तरह से भेष बदलकर गरीब और निर्दोष लोगों को छलते हैं, इसका ताज़ा उदाहरण तब देखने को मिला जब पता चला कि उस ‘फकीर’ नेता ने उत्तर प्रदेश की विधान सभा में एक ऐसा कानून पारित करा दिया था जिसमें यह प्राविधान कर दिया गया था कि प्रदेश के विधायकों, मंत्रियों और मुख्यमंत्री का आयकर प्रदेश के खजाने से भरा जायेगा क्योंकि विधान सभा के लिए निर्वाचित विधायकों में से काफी लोग गरीब पृष्ठभूमि से आते हैं और टैक्स जमा करने में सक्षम नहीं हैं। यह कानून पारित हो गया और चूंकि गरीब से लेकर अमीर तक हर विधायक इस कानून से लाभान्वित हो रहा था इसलिए किसी को भनक भी नहीं लगने पायी। इस कानून का लाभ 1981 से लेकर 2019 तक 19 मुख्यमंत्रियों और करीब 1000 जनप्रतिनिधियों ने लिया। इन लाभार्थियों में कांग्रेस से लेकर भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से जुड़े वे लोग शामिल रहे जो लगातार आम आदमी के हितों का हमेश राग अलापते देखे जाते रहे हैं। ऐसे लोगों के पास दर्जनों कोठियां हैं, अनगिनत वाहन हैं, चार्टर्ड प्लेन में चलते हैं, अरबों की संपत्तियाँ हैं और जब सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर बंगला खाली कराने की कोशिश की जाती है तो वे रुनान्धे होकर लावारिस हो जाने की दुहाई देते हुए रहम की अपील करने में भी नहीं हिचकते। कहते हैं कि इस उम्र में कहाँ जायेगें? उन्हें दो साल तक का वक्त दिया जाये ताकि वे कोई आशियाँ तलाश लें। सत्ता के सर्वोच्च पद पर भी रहकर कैसे झूठ बोला जाये, इसका संदेश वे अपने कार्यकर्ताओं को देते हैं कि ‘’लगे रहो, सत्ता मिलने पर तुम्हें भी इसी तरह से लूट का मौका मिलेगा’’।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने वर्षों पुराने इस कानून को बदलने का मन बना लिया है। इसका श्रेय मुख्यमंत्री योगी को देना ही पड़ेगा जिन्होंने दागी सत्ताधारियों के वर्षों पुराने पाखंड में सेंध लगाने का जज्बा तो दिखाया है, जो काम पिछले 18 मुख्यमंत्री नहीं कर सके, उल्टे उस पाप की गंगा में खुद भी चुपचाप भोले बनकर डुबकी लगाने का लोभ संवरण नहीं कर पाये। अब अगले वर्ष से मंत्री और मुख्यमंत्री अपनी आय का टैक्स अपनी असली आमदनी से खुद भरेगें। अभी सरकार की ओर से टैक्स भरने की व्यवस्था उत्तर प्रदेश मंत्री, वेतन, भत्ते एवं विधिक कानून 1981 के तहत चल रही थी जिसे संशोधित किया जायेगा।
यह कानून उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बनाया था। इस कानून ने अब तक 19 मुख्यमंत्रियों और लगभग 1000 मंत्रियों को लाभ पहुंचाया है। इनमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मुलायम सिंह यादव, मायावती, कल्याण सिंह, अखिलेश यादव, दिवंगत राम प्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह, श्रीपति मिश्र, वीर बहादुर सिंह और नारायण दत्त तिवारी के नाम शामिल हैं। पिछले वित्तीय वर्ष में इस मद में कुल 86 लाख रुपये सरकार की ओर से चुकाये गये।
इस कानून के लागू होते समय तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने विधानसभा में तर्क दिया था कि राज्य सरकार को विधायकों के आयकर का बोझ उठाना चाहिए क्योंकि अधिकतर मंत्री गरीब पृष्ठभूमि से हैं और उनकी आय कम है। ऐक्ट के एक सेक्शन में कहा गया है, ‘सभी मंत्री और राज्य मंत्रियों को पूरे कार्यकाल के दौरान प्रति माह एक हजार रुपये वेतन मिलेगा। सभी डेप्युटी मिनिस्टर्स को प्रतिमाह 650 रुपये मिलेंगे।’
इसमें कहा गया है ‘उपखंड 1 और 2 में उल्लिखित वेतन टैक्स देनदारी से अलग है और टैक्स का भार राज्य सरकार उठायेगी।’ हालांकि उस वक्त कारोड़पति नहीं तो लखपति विधायकों की संख्या भी काफी थी। वक्त बीतने के साथ नेताओं की घोषित सम्पत्ति अब करोड़ों में पहुंच गयी है। राज्यसभा चुनाव 2012 के हलफनामे के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने खुद की सम्पत्ति 111 करोड़ दिखायी थी। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की लोकसभा चुनाव में दाखिल शपथ पत्र की अनुसार सम्पत्ति अपने पत्नी के साथ 37 करोड़ रुपये थी। इतनी आय के बावजूद वे अपना टैक्स भरने में किस तरह से सक्षम नहीं थे, इस बारे में किसी ने भी सोचने की जरूरत ही नहीं समझी, आखिर क्यों? क्योंकि राजनीति सत्ता की सीढ़ी है और इसे समाज सेवा का नाम देकर लोगों की आँखों में धूल झोंकना आसान हो जाता है। कम से कम अब तक तो ऐसा ही होता रहा है। योगी द्वारा उठाये गये इस कदम से लगता है जैसे कि अब सूरत बदलने लगी है।
उत्तर प्रदेश के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना के अनुसार मुख्यमंत्री योगी ने निर्देश दिये हैं कि अब सभी मंत्री अपने इनकम टैक्स का भुगतान खुद करेंगे। इसके लिए वित्त विभाग प्रस्ताव बनायेगा, जिसके जरिये ‘’मिनिस्टर्स सैलरीज अलाउन्सेस एंड मिसलेनियस ऐक्ट’’ को खत्म किया जायेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वित्त मंत्री सुरेश खन्ना को पुराना कानून खत्म करने के लिए प्रस्ताव बनाने के निर्देश दिये हैं। यह प्रस्ताव कैबिनेट के बाद अगले विधानसभा सत्र के दौरान सदन के पटल पर रखा जायेगा। इस तरह से पिछले 38 वर्षों से सरकारी खजाने से मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों के इनकम टैक्स भरे जाने की परंपरा खत्म हो जायेगी। आगे से अब किसी भी मंत्री या मुख्यमंत्री का इनकम टैक्स सरकारी खजाने से नहीं भरा जायेगा, बल्कि संबंधित व्यक्ति अपनी संपत्ति से भरेगा।
हालांकि जनता के साथ वर्षों से की जा रही इस धोखाधड़ी में अनजाने में पिछले दो वित्त वर्षों से योगी आदित्यनाथ सरकार के सभी मंत्री भी शामिल थे। उनके टैक्स सरकारी खजाने से ही भरे जा रहे थे। इस वित्त वर्ष में योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्रियों का कुल टैक्स 86 लाख रुपये था जो सरकार की ओर से दिया गया है। उत्तर प्रदेश के प्रिंसिपल सेक्रटरी (फाइनैंस) संजीव मित्तल के अनुसार 1981 के कानून के तहत मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों का टैक्स राज्य सरकार की ओर से इस वर्ष भरा जा चुका है।
सवाल उठता है कि क्या गरीब विधायक नहीं होते हैं? क्या उनको लाभ दिया जाना उचित नहीं है? गरीबों को लाभ तो मिलना ही चाहिए लेकिन गरीब कि परिभाषा क्या है? जिसकी आय इतनी हो कि वह आयकर स्लैब में आता है तो क्या उसे गरीब माना जायेगा? आयकर का संबंध तो वार्षिक आय से होता है। इसके बावजूद अगर ऐसा महसूस होता है कि किसी वर्ग को इसका लाभ मिलना चाहिए तो उसको दिये जाने वाले लाभ के फायदे उन लोगों को क्यों जो हर तरह से सक्षम हैं? विश्वनाथ प्रताप सिंह तो राजघराने के थे, सैकड़ों एकड़ ज़मीनें थीं उनके पास, राजमहल थे लेकिन राजनीति में आने के लिए उन्होने खुद को ‘फकीर’ कहलवा दिया। अगर उनकी नीयत साफ होती तो वे खुद इस कानून का लाभ न लेते और अपना टैक्स तो खुद भरते रहते। लेकिन वे भी गरीब विधायकों की आड़ में आयकर का लाभ लेने में नहीं हिचके। राजनीतिज्ञों के इसी ‘फरेब’ के कारण उनकी ‘नीति और नीयत’ को हमेशा संदेह की नज़र से देखा जाता रहा है। वैसे भी आजकल जनप्रतिनिधियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर उनके वेतन, भत्तों और पेंशन को लेकर चर्चाओं का बाज़ार गरम है। सभी की यह शिकायत है कि जब वेतन इतना है, भत्ते खूब हैं तो फिर पेंशन क्यों, तब जब सभी की पेंशन बंद हो चुकी है। कई मामलों में डबल पेंशन भी मिल जाती है। जब मोबाइल आ गया है तो टेलीफोन भत्ता क्यों?
भारत में 31 राज्यों (फिलहाल दो केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली और पुदुचेरी को मिलाकर) में कुल 4120 विधायक हैं। हर विधायक को वेतन मिलता है जो अच्छी-ख़ासी रकम होती है। बड़े राज्यों में यह राशि पचास हजार रुपये से अधिक होती है। इस समय तेलंगाना राज्य के विधायक को सबसे अधिक 2.50 लाख रुपये का वेतन मिलता है।
इसके अतिरिक्त, राज्य विधानसभा के लिए चुने जाने वाले विधायकों को प्रत्येक राज्य में हर साल एक करोड़ से लेकर 4 करोड़ तक का विधायक फण्ड मिलता है। हर राज्य में यह फंड अलग-अलग धनराशि का होता है। जैसे, मध्य प्रदेश में एक विधायक को हर साल अपने क्षेत्र के विकास के लिए 4 करोड़ रुपये मिलते है जबकि कर्नाटक में 2 करोड़ रुपये।
वेतन के अलावा अन्य सुविधाएँ भी
उत्तर प्रदेश में एक विधायक को विधायक निधि के रूप में 5 साल के अन्दर 7.5 करोड़ रुपये मिलते हैं। इसके अलावा विधायक को वेतन के रूप में 75 हजार रुपया महीना, 24 हजार रुपये डीजल खर्च के लिए, 6000 रुपये पर्सनल असिस्टेंट रखने के लिए, मोबाइल खर्च के लिए 6000 रुपये और इलाज खर्च के लिए 6000 रुपये मिलते हैं। सरकारी आवास में रहने, खाने पीने, अपने क्षेत्र में आने-जाने के लिए अलग से खर्च मिलता है। इन सभी को मिलाने पर विधायक को हर माह कुल 1.87 लाख रुपये मिलते हैं।
अपने क्षेत्र में पानी की समस्या के समाधान के लिए विधायक को यह अधिकार भी मिला होता है कि वह 5 साल में 200 हैण्डपम्प भी लगवा सकता है जबकि एक पम्प लगवाने का खर्च लगभग 50 हजार रूपये आता है। इसके अलावा विधायक के साथ रेलवे में सफ़र करने पर एक व्यक्ति फ्री में यात्रा कर सकता है।
रिटायरमेंट के बाद के फायदे
कार्यकाल ख़त्म होने के बाद विधायक को हर महीने 30 हजार रुपये पेंशन में रूप में मिलते हैं, 8000 रुपये डीजल खर्च के रूप में मिलने के साथ साथ जीवन भर मुफ्त रेलवे पास और मेडिकल सुविधा का लाभ मिलता है। अर्थात एक बार विधायक बनने के बाद पूरी जिंदगी सुरक्षित हो जाती है।
ज्ञातव्य है कि पिछले 7 सालों में विधायकों के वेतन में लगभग 125% की वृद्धि हो चुकी है। वेतन में सबसे अधिक वृद्धि 450% दिल्ली के विधायकों और उसके बाद तेलंगाना के विधायकों के वेतन में 170% की वृद्धि हुई है।
सांसदों की सैलरी विधायकों की औसत सैलरी की तुलना में 2 गुना ज्यादा है। सांसद को हर माह 2.91 लाख रुपये मिलते हैं। इसमें 1.40 लाख रुपये की बेसिक सैलरी और 1.51 लाख रुपये का भत्ता शामिल होता है।
वर्तमान में भारत के राष्ट्रपति को हर महीने 1.50 लाख रुपये, उप-राष्ट्रपति को हर महीने 1.25 लाख रुपये, प्रधानमन्त्री को 1.65 लाख रुपये, राज्यपाल को 1.10 लाख रुपये, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को हर महीने 1.10 लाख रुपये जबकि कैबिनेट सचिव को 2.50 लाख रूपये मिलते हैं।
आइये जानते हैं कि भारत के हर राज्य के विधायकों को कितना वेतन मिलता है:
राज्य | विधायक की सैलरी एवं भत्ते |
1. तेलंगाना | 2.50 लाख |
2. दिल्ली | 2.10 लाख |
3. उत्तर प्रदेश | 1.87 लाख |
4. महाराष्ट्र | 1.70 लाख |
5. जम्मू & कश्मीर | 1.60 लाख |
6. उत्तराखंड | 1.60 लाख |
7. आन्ध्र प्रदेश | 1.30 लाख |
8. हिमाचल प्रदेश | 1.25 लाख |
9. राजस्थान | 1.25 लाख |
10. गोवा | 1.17 लाख |
11. हरियाणा | 1.15 लाख |
12. पंजाब | 1.14 लाख |
13. झारखण्ड | 1.11 लाख |
14. मध्य प्रदेश | 1.10 लाख |
15. छत्तीसगढ़ | 1.10 लाख |
16. बिहार | 1.14 लाख |
17. पश्चिम बंगाल | 1.13 लाख |
18. तमिलनाडु | 1.05 लाख |
19. कर्नाटक | 98 हजार |
20. सिक्किम | 86.5 हजार |
21. केरल | 70 हजार |
22. गुजरात | 65 हजार |
23. ओडिशा | 62 हजार |
24. मेघालय | 59 हजार |
25. पुदुचेरी | 50 हजार |
26. अरुणाचल प्रदेश | 49 हजार |
27. मिजोरम | 47 हजार |
28. असम | 42 हजार |
29. मणिपुर | 37 हजार |
30. नागालैंड | 36 हजार |
31. त्रिपुरा | 34 हजार |
हालाँकि सरकार जल्दी ही राष्ट्रपति का वेतन बढाकर 5 लाख रुपये करने वाली है क्योंकि कैबिनेट सचिव को 2.50 लाख रुपये मिलते हैं जो कि राष्ट्रपति से ज्यादा हैं और राष्ट्रपति के पद की गरिमा के लिए ठीक नही है कि एक कर्मचारी भारत के सबसे बड़े पद पर आसीन व्यक्ति से ज्यादा वेतन प्राप्त करे।
वेतन न लेने वाले मंत्री रवींद्र जायसवाल
उत्तर प्रदेश की योगी कैबिनेट में एक ऐसे मंत्री भी हैं जिन्होंने न तो विधायक रहते कभी वेतन और भत्ता लिया था और न ही मंत्री बनने के बाद वह वेतन ले रहे हैं। यह विधायक और अब मंत्री प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की उत्तरी विधान सभा सीट से चुनाव जीतने वाले युवा नेता रविन्द्र जायसवाल हैं। रविन्द्र अपने वेतन से अपने विधानसभा क्षेत्र में बिजली के खंभे और बड़ी संख्या में सोलर लाइटें लगवा रहे हैं। बड़े व्यवसायी परिवार से जुड़े रवींद्र जायसवाल ने पहले कार्यकाल में अपनी विधानसभा क्षेत्रों में बेहतर बिजली सप्लाई के लिए वेतन से खंभे खरीदकर उपलब्ध कराये, वहीं दूसरे कार्यकाल में वह सोलर लाइटें लगवाकर गलियों और सड़कों को अंधेरे से मुक्त करने में जुटे हैं।
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही देश में स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है। मोदी के दूसरे कार्यकाल में उनसे उम्मीद की जा रही है कि वह राजनीतिज्ञों को मिलने वाली तमाम तरह की सुविधाओं पर भी नज़र डालें और तय करें कि क्या वास्तव में वे इतनी सुविधाओं के पात्र हैं? क्या यहां पर भी स्वच्छता अभियान की जरूरत नहीं है? संसद की कैंटीन में जितनी कम कीमत पर खाद्य पदार्थ उन्हें मिल जाते हैं, क्या देश के अन्य इलाकों में भी वैसी कैंटीन नहीं खोली जा सकती है? ऐसा लोग इसलिए सोचते है क्योंकि वे मानते हैं कि जनप्रतिनिधि अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं करते हैं बल्कि धनार्जन की होड़ में ही लगे रहते हैं और एक ऐसी संस्कृति को फैलाते हैं जो अपने सिर्फ कुछ खास लोगों के स्वार्थों की पूर्ति तक ही सिमटी रहती है।