राज्यसभा सांसद डीपी त्रिपाठी नहीं रहे
काफी समय से अस्वस्थ चल रहे थे देवी प्रसाद त्रिपाठी। मित्रों के बीच वह डीपीटी के नाम से मशहूर थे। 67 साल की उम्र में हुआ उनका निधन। कई पुस्तकें भी लिख चुके थे डीपी त्रिपाठी। सुल्तानपुर में पैदा हुए डीपी त्रिपाठी की गिनती एनसीपी के वरिष्ठ नेताओं में होती थी। इलाहाबाद से भी रहा है उनका गहरा संबंध।
हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और संस्कृत साहित्य के विद्वान रहे देवी प्रसाद त्रिपाठी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्राध्यपक भी रहे।
डीपीटी के भतीजे जितेंद्र तिवारी इफको ऑफीसर्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं जो दिल्ली मुख्यालय में कार्यरत हैं।श्री त्रिपाठी के 3 पुत्र एवं पत्नी के साथ दो-दो भाई तथा बहन तीन भतीजे सहित भरा पूरा परिवार है जो लखनऊ और सुल्तानपुर में रहता है।
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में पैदा हुए डीपी त्रिपाठी की गिनती एनसीपी के वरिष्ठ नेताओं में होती थी। बतौर छात्र नेता अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले डीपी त्रिपाठी एक नेता होने के साथ-साथ स्कॉलर भी थे। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने उनके निधन पर दुख व्यक्त किया है।
जब डीपी त्रिपाठी राष्ट्रीय राजनीति में आए तो कांग्रेस के साथ जुड़े। कांग्रेस ज्वाइन करने के कुछ समय बाद ही उनकी अलग पहचान बनी और वह राजीव गांधी के करीबियों में गिने जाने लगे। भले ही डीपी त्रिपाठी की गिनती पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबियों में होती हो लेकिन उन्होंने कांग्रेस पार्टी को तब छोड़ दिया जब सोनिया गांधी प्रधानमंत्री पद की रेस में आगे आईं।
शरद पवार ने जब सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने का मुद्दा उठाया, तो डीपी त्रिपाठी ने भी उनके साथ ही कांग्रेस छोड़ दी. साल 1999 में उन्होंने कांग्रेस को छोड़ा और एनसीपी ज्वाइन कर ली. वह एनसीपी के राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रवक्ता थे।
इसके बाद कांग्रेस को छोड़कर एनसीपी ज्वॉइन कर ली थी। वह शरद पवार के खास सिपहसलार थे।
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में एमए करने के बाद उन्होंने जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से भी पढ़ाई की थी। वहीं पर छात्र राजनीति में सक्रिय हुए और अध्यक्ष भी बने। वह एक नेता के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक भी थे।
डीपी त्रिपाठी अप्रैल 2012 में राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। जून 2012 से लेकर नवंबर 2012 तक ऊर्जा कमेटी और लोकपाल व लोकायुक्त बिल पर राज्यसभा की सेलेक्ट कमेटी के सदस्य रहे। डीपी त्रिपाठी विदेश मामलों की कमेटी, रेलवे कंवेन्शन कमेटी और हिंदी सलाहकार समिति के भी सदस्य रहे। फिलहाल डीपी त्रिपाठी एनसीपी के महासचिव के तौर पर जिम्मेदारी संभाल रहे थे। बीते वर्ष ही राज्यसभा से उनका कार्यकाल समाप्त हुआ था। 1968 में राजनीति में आए त्रिपाठी को संसद के अच्छे वक्ताओं में शुमार किया जाता था। आपातकाल में आंदोलन के चलते वह जेल भी रहे थे।
हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और संस्कृत साहित्य के विद्वान रहे देवी प्रसाद त्रिपाठी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्राध्यपक भी रहे थे। उन्होंने कई किताबें भी लिखी, जिनमें प्ररूप, कांग्रेस एंड इंडिपेंडेंट इंडिया, जवाहर सतकाम, सेलिब्रेटिंग फैज और नेपाल ट्रांजिशन-ए वे फॉरवर्ड समेत अन्य हैं।
डीपीटी को एक छात्र नेता के साथ अध्यापक के तौर पर भी याद किया जाता है। इसके बाद वह नेता के रूप में भी विख्यात हुए।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर पोलिटकल स्टडीज से पढ़ाई करने वाले डीपीटी छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय रहे हैं। आपातकाल के दौर में विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे। आपातकाल में उन्हें भी तिहाड़ में रखा गया था और भाजपा के दिवंगत नेता अरुण जेटली के साथ ही गिरफ्तार किए गए थे और रिहा भी दोनों साथ ही हुए थे। श्री त्रिपाठी के 3 पुत्र एवं पत्नी के साथ दो-दो भाई तथा बहन तीन भतीजे सहित भरा पूरा परिवार है जो लखनऊ और सुल्तानपुर में रहता है।
डीपीटी के भतीजे जितेंद्र तिवारी इफको ऑफीसर्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं जो दिल्ली मुख्यालय में कार्यरत हैं और उनके बेहद करीबी पारिवारिक सदस्य के रूप में साथ में थे उनके निधन से प्रयागराज और इफको में गहरा शोक व्याप्त है ।