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साफ छुपते भी नहीं, खुलकर सामने आते भी नहीं 

बिना नाम लिए प्रियंका द्वारा दिए गए बयान पर बसपा सबसे पहले भड़की और उसने रिएक्ट भी कर दिया। सपा-बसपा का नाम लिए बिना प्रियंका गांधी का यह तंज कोई नया नहीं था। ये दोनों ही दल आपस में ही एक-दूसरे पर भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगाते रहते हैं।
योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ।
साफ छुपते भी नहीं, खुलकर सामने आते भी नहीं! कुछ ऐसा ही इस समय प्रदेश में विपक्षी दलों के साथ है। कांग्रेस की महासचिव तथा प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी ने पिछले दिनों सपा-बसपा का नाम लिए बिना कहा कि कुछ विपक्षी दल सरकार के प्रवक्ता की भूमिका में है।
बिना नाम लिए प्रियंका द्वारा दिए गए बयान पर बसपा सबसे पहले भड़की और उसने रिएक्ट भी कर दिया। सपा-बसपा का नाम लिए बिना प्रियंका गांधी का यह तंज कोई नया नहीं था। ये दोनों ही दल आपस में ही एक-दूसरे पर भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगाते रहते हैं। हालांकि हाल ही में बसपा प्रमुख मायावती ने अपने एक बयान में साफ किया कि उनकी पार्टी न किसी पार्टी की प्रवक्ता है न किसी के हांथ का खिलौना। हालांकि लाँकडाउन के दौरान बसपा की प्रमुख मायावती ने जहां कई मौकों पर योगी के साथ मोदी सरकार के कार्यो की सराहना की वहीं सपा को इस बात की सलाह दी कि आपद धर्म में सपा को कम से कम राजनीति करने से बचना चाहिए।
लांकडाउन के दौरान सरकार के क्रियाकलापों को लेकर कांग्रेस जितनी मुखर रही उतनी यह दोनों पार्टियां केवल ट्वीट और प्रेसनोट के जरिए बयानबाजी करती रही। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को तो जेल तक जाना पड़ा। इतना सब होने के बाद कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी का विपक्षी दलों पर लालपीला होना तो बनता है। भले ही कांग्रेस सदन से सड़क तक सबसे निचली पायदान पर हो लेकिन इसके बावजूद उसकी आक्रामकता में कोई कमी नहीं है। जबकि सपा.बसपा सरीखे दल जो कभी न कभी किसी न किसी समय भाजपा के हमप्याला और हमनेवाला रहे वे इस समय उसकी सरकार के खिलाफ आक्रामक होने से न जाने क्यों कतरा रहे है।
जनता के मुद्दों को लेकर सड़क से सदन तक सरकार की नाक में दम करने वाली कांग्रेस ही अकेली ऐसी पार्टी है जिसका भारतीय जनता पार्टी से कभी कोई सरोकार नहंीं रहा। बसपा जहां सपा के साथ मिलकर सरकार बना चुकी है तो 2019 का लोकसभा चुनाव उसी के साथ मिलकर लड़ी। चुनाव के बाद दोनों के रास्ते अलग हो गए। सपा.बसपा के बीच प्रदेश में दो बार गठबंधन हुआ और टूटा भी। जबकि मुख्यविपक्षी दल समाजवादी पार्टी 2017 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ चुकी है।
इससे पहले प्रदेश में जब भी तत्कालीन मुलायम सरकार के सामने विश्वासमत का संकट पैदा हुआ तो कांग्रेस ने ही उसका समर्थन किया जबकि इसके एवज में सपा ने भी केन्द्र में तत्कालीन यूपीए सरकार में कई मौकों पर उसका समर्थन किया। यूपी में बसपा ही ऐसी पार्टी है जो सपा.भाजपा और कांग्रेस तीनों दलों के साथ किसी ने किसी मौके पर उसके साथ रही है। 1996 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बसपा के बीच गठबंधन में कांग्रेस ने एक सौ पच्चीस और बसपा तीन सौ सीटों पर लड़ी थी। जिस समय कांग्रेस और बसपा का चुनावी गठबंधन हुआ था उस समय विधानसभा में चार सौ पच्चीस सीटे हुआ करती थी। उत्तराखंड गठन के बाद यूपी की विधानसभा का संख्या बल 403 का रह गया। बसपा ने भाजपा के समर्थन से सरकार तो तीन बार बनाई लेकिन उसके साथ मिलकर कभी चुनाव नहीं लड़ा। हालांकि 2002 के विधानसभा चुनाव में किसी दल को बहुमत न मिलने पर बसपा भाजपा ने मिलकर सरकार बनाई। सरकार का नेतृत्व बसपा ने किया।
दोनों दलों के बीच छह-छह माह सरकार चलाने का करार हुआ। पहले करार में मायावती सीएम बनी लेकिन जब भाजपा की बारी आई तो मायावती ने एक माह भी सरकार नहीं चलने दी। आखिर में बसपा-कांग्रेस सहित कई दलों में बड़ी टूट हुई और भाजपा ने गठबंधन सरकार बनाई।

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