इस समय अमरीका-चीन के बीच शीतयुद्ध की सांसें कभी धीमी तो कभी तेज तेज चल रही हैं। ताइवान को लेकर चीन और अमरीका आमने सामने हैं। दोनों समुद्र में अपने अपने बेड़े से एक दूसरे को घूर रहे हैं। कुछ अन्य यूरोपीय देशों के साथ भी चीन का सम्बंध तनावपूर्ण चल रहा है। भारत- चीन सीमा पर भी दोनों देशों की सेनाएं आमने सामने हैं। माहोल गंभीर बनता जा रहा है। कभी कभी आणविक युद्ध की भी अवाज सुनाई दे जा रही है। कहीं इस स्थिति ने और गंभीर रूप ले लिया और उन्माद के क्षणों में आणविक युद्ध हो गया तो धरती आकाश का कैसा नजारा होगा, इस पर कुछ वैज्ञानिकों नेे बड़ी भयावह तसवीर पेश की है।
हॉलैंड के एक वेैज्ञानिक पॉल क्रुतजेन के अनुसार, एक अमरीकी रसायन विशेषज्ञ जॉन विर्क ने स्वीडन की एक पत्रिका ’एम्बियो’ में आणविक युद्ध के बाद उठने वाले धुएं से सम्बंधित अपनी एक रिपोर्ट प्रकाशित की ह,ेै जिसमें कहा गया हेै कि आणविक युद्ध में कुछ लाख लोग ही मरेंगे, लेकिन युद्ध के बाद जो करोड़ों टन धुआं उठेगा उससे सूर्य की किरणों कोे पृथ्वी पर पहुंचने में गंभीर अवरोध उत्पन्न होगा। ट्र्पोस्फीयर ; पृथ्वी की उंचाई से 4 किलोमीटर ऊपर ओैर 6 किलोमीटर नीचे ओैर स्ट्रे्ेटोस्फीयर ;पृथ्वी से 50 किलोमीटर ऊपर के क्षेत्र में अत्यधिक काले बादल छा जाएंगे। मोैसम में अकल्पनीय परिवर्तन होगा जो मानव सहित सभी जीव जंतुओं ओैर वनस्पतियों के लिए जानलेवा होगा।
नासा के तीन वेैज्ञानिकों – ओ ब्रियान, थॉमस एकरमेैन ओैर जेम्स पोलॉक – ने भी रिर्पोट दी थी कि आणविक मोैसम अकल्पनीय रूप से प्रभावित होगा। विनाश कितना गंभीर होगा यह इस पर निर्भर करेगा कि कितने मेगावाट के आणविक आयुधों का प्रयोग किया गया हेै। इस रिर्पोट के बाद केैम्ब्रिज ओैर मेसाचुसेट्स के ’अमरीकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स’ के सौ वेेैज्ञानिकों कीे एक मीटिंग हुई थी। मीिंटंग के बाद ’साइंस’ पत्रिका में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें कहा गया कि मोैसम का परिवर्तन तो होगा ही, धुएं के कारण पृथ्वी पर कई सप्ताह तक अंधेरा छाया रहेगा, तापमान बहुत गिर जाएगा ओैर महीनों तक वेैसा ही रहेगा। मोैसम में अचानक परिावर्तन होने के कारण तरह-तरह की बीमारियां फेैलेंगी। वातावरण अकल्पनीय ढंग से ठंडा हो जाएगा। वेैज्ञानिकों ने इस ठंड का नाम ’आणविक शीतलहर’ दिया हेै।
’जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च’ के अनुसार, यह धुआं लगभग 10 वर्ष तक रहेगा। यानी आणविक शीतलहर लगभग 10 वर्ष या इससे अधिक रहेगी।
’रटगर्स यूनिवर्सिटी’ के पर्यावरण विशेषज्ञ जोशुआ कू ने कहा है कि ब्लैक कार्बन रेडिएशन को तेजी से ग्रहण करता है। यह उसे स्ट्रेटोस्फीयर में ले जाएगा जहां यह वर्षों तक रह कर वातावरण को प्रदूषित कर सकता है।
इस रिपोर्ट के बाद जीव वेैज्ञानिकों ने अध्ययन शुरू किया। उनके अनुसार आणविक शीत लहर के कारण कई तरह के पोैधे ओैर जानवर हमेशा के लिए पृथ्वी से लुप्त हो जाएंगे।
कुछ वेैज्ञानिकों का अनुमान हेै कि एक मध्यम श्रेणी के आणविक युद्ध में लगभग पांच हजार टन मेगावाट आणविक विस्फोटकों का उपयोग होगा। उसके बाद इतना धूल ओैर धुआं उठेगा कि गर्मी के मोैसम में पृथ्वी का ओैसत तापमान – 30 डिग्री सेल्सियस हो जाएगाा। जाड़े के मोैसम में यह तापमान कितना कम होगा, इसकी कल्पना से ही रोंगटे खड़ेे हो जाते हेैं। इतनी ठंड के कारण अनाज, फल इत्यादि की कोई पेैदावार नहीं हो होगी।ं मोैसम इस तरह गड़बड़ा जाएगा कि लोग भयानक ठंड, अंधेरा तथा भुखमरी के शिकार होंगे।
युद्ध के बाद शहर बुरी तरह जलेंगे क्योंकि वहां ईंधन का भंडार होगा। प्लास्टिक, पेट्रोल, कागज ओैर लकड़ियां होंगी। पेट्रोल ओैर प्लास्टिक लकड़ियों की अपेक्षा ज्यादा घना धुआं निकालते हेैं। फ्लोरिडा के एक भोैतिक शास्त्री ओैर अग्नि विशेषज्ञ का कहना हेै कि हालांकि ये पदार्थ शहरों के ईंधन के सिर्फ पांच प्रतिशत होते हेैं, लेकिन इनसे निकलने वाला धुआं बहुत घना और अधिक होता हेै। काफी उंचाई पर फेैले धुएं के बादल इक्वेटर तक फेैलेंगे।
सूर्य के प्रकाश का विकिरण प्रभवित होगा। सूर्य का प्रकाश वातावरण को भेद कर महाद्वीपों, समुद्रों तक पहुंचता हेै। ये सूर्य की उर्जा को ग्रहण करके गर्म होते हेैं। पूरी पृथ्वी ही गर्म होती हेै। पृथ्वी इस उर्जा को विभिन्न रूपों में अंतरिक्ष में पुन वापस भेजती हेै। यदि सभी उर्जा का विकिरण हुआ तो वेैज्ञानिको के अनुसार पृथ्वी का ओैसत तापमान बहुत ही ठंडा हो जाएगा। गी्रन हाउस प्रभाव के कारण संपूर्ण उर्जा का विकिरण नहीं हो पाता। कार्बन डाइआक्साइड, पानी का भाप, तथा बादलों का पानी कुछ उर्जा को अंतरिक्ष में जाने नहीं देते, बल्कि अपने में समाहित कर लेते हेैं। हवा पृथ्वी की सतह के सबसे निकट हेै , इसलिए यह सबसे अधिक उर्जा समाहित करती हेै। इस कारण पृथ्वी की सतह पर ओैसत ताप 13 डिग्री सेल्सियस रहता हेै। लेकिन जेैसे-जेैसे उंचाई बढ़ती जाती हेै, हवा ठंडी होने लगती हेै। इससे उस पूरे स्थान का मंथन होता रहता हेै। जब पृथ्वी की सतह की गरम हवा वहां पहुंचती हेै तब ज्तवचवेचीमतमे में गति आतीे हेै। इसी से मोैसम का निर्माण होता हेै।
आणविक युद्ध के बाद अत्यधिक धुआं के कारण पृथ्वी काफी सोैर उर्जा से वंचित रह जाएगी ओैर ठंडी होने लगेगी, जिससे पृथ्वी के जीव जंतु, मनुष्य और वनस्पतियों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा।
14 जनवरी , 1945 की सुबह। ब्रिटेन की वायुसेना के मंत्रालय ने घोषणा की थी कि जर्मनी के डेस्डेन शहर पर आक्रमण हो चुका हेै। आक्रमण के पहले चरण में 1800 ओैर 2600 किलो वजन के सेैकड़ों बम गिराए जा चुके हेैं। पूरा शहर दिल दहला देने वाली आग की चपेट में था। एक ब्रिटिश पायलट, जिसने बम गिराने के बाद का दृश्य देखा था, ने बताया, ’ जेैसे आग का भयंकर समंदर नजर आ रहा था। आग की लपटें इस तरह उपर उठती जा रही थीं कि मेैं कॉकपिट में बेैठा लपटों की तेज गर्मी को महसूस कर रहा था। इतना धुआं उठा था कि मेरे यान में अत्यधिक प्रकाश होते हुए भी लग रहा था जेैसे सूर्यास्त का समय हो। इस स्थिति की हमने कल्पना नहीं की थी। मेैं बुरी तरह डर कर यान लेकर जान बचाकर भागा। मैंने तथा बम गिराने वाले अन्य पायलटों ने सोचा तक नहीं था कि बम गिराने के बाद उठनेवाले धुएं से हम इस तरह लपेट में आ जाएंगे।
यह तो उन बमों के विस्फोट के बाद का दृश्य हेै जो आणविक नहीं थे। परमाणु बमों के बाद का जो दृश्य होगा वह सचमुच कितना भयावह हो होगा।
*कुमार अंचल*