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विपक्ष वोट बैंक सियासत की नजर से देख रहा है

वैध शरणार्थियों से बेपरवाह सियासत

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

राजनीति में असहमति स्वभाविक है। लेकिन यह तर्कसंगत और अहिंसक होनी चाहिए। अन्यथा असहमति व्यक्त करने वालों को स्वयं जबाबदेह बनना पड़ता है। नागरिकता संसोधन विधेयक पर विपक्षी पार्टियों को अब ऐसी ही जबाबदेही का सामना करना पड़ रहा है। इन्होंने पहले विधेयक बाद में कानून की मूलभावना को ही नहीं समझा। यह विधेयक दशकों से भारत में शरणार्थी का जीवन बिताने वाले उन परिवारों के लिए था, जिन्हें पाकिस्तान,बंगलादेश व अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर अमानवीय उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था। कट्टरवादी तत्वों ने उनके सामने केवल दो विकल्प छोड़े थे। पहला यह कि वह मुसलमान बन जाएं, या उनके मुल्क से बाहर चले जाएं। इन परिवार की बेटियों को अगवा किया गया, दुर्व्यवहार हुआ। शासन ने भी इन्हें लावारिस छोड़ दिया। इनकी सुरक्षा करने वाला वहां कोई नहीं था। ऐसे में इन परिवारों के सामने भारत में शरण लेने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा था। मुल्क विभाजन के समय महात्मा गांधी,डॉ आंबेडकर,सरदार पटेल आदि नेता जानते थे कि पाकिस्तान जैसे देश में हिन्दू,बौद्ध ,सिख आदि का ज्यादा समय तक निर्वाह नहीं हो सकता।
लाखों परिवार विभाजन के समय अपनी जान बचा कर किसी तरह भाग कर भारत आ गए थे। कुछ इस गलत फहमी में रुक गए कि मुसलमान उन्हें उत्पीड़ित नहीं करेंगे।

ऐसे ही भारत में शरणार्थी बन कर आये एक परिवार ने अपने नाना का वाकया सुनाया। विभाजन हुआ, तो उनके नाना ने कहा कि वह पाकिस्तान छोड़कर नहीं जाएंगे। क्योंकि सल्तनतें बदलती है, शासक बदलते है, लेकिन रियाया नहीं बदलती। कुछ ही समय में उनकी धारणा बदल गई। वह भारत नहीं, पाकिस्तान था, वहां हिन्दू,बौद्ध,सिख रियाया को भी बदला जाता है। उनकी जिंदगी को दुश्वार बना दिया जाता है।


दशकों से ऐसे परिवार शरणार्थी बन कर रहने को विवश थे। उनके लिए अन्य कोई जगह भी नहीं थी। नरेंद्र मोदी सरकार ने इनके साथ मानवीय दृष्टिकोण अपनाया। इनको नागरिकता प्रदान करने का विधयेक तैयार किया गया। संसद के दोनों सदनों से इसे पारित किया। यह कानून बन गया। सुप्रीम कोर्ट ने इसपर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इस आधार पर भी कहा जा सकता है कि यह संविधान कि भावना पर आधारित कानून है।


लेकिन विपक्ष ने कानून को भी अपनी वोटबैंक सियासत के हवाले कर दिया। ये संविधान की दुहाई देने लगे, कानून को संविधान विरोधी घोषत कर रहे थे, इतना ही नहीं इन्होंने परोक्ष अपरोक्ष रूप में यह भी सन्देश देने का प्रयास किया कि यह कानून मुसलमानों के विरोध में है। उनको नोटबन्दी जैसी लाइन में लग कर भारतीय होने के प्रमाणपत्र देने होंगे, जिनके पास उनके पूर्वजों के प्रमाणपत्र नहीं होंगे, उनकी तो शामत आ जायेगी, आदि अफवाहों को जम कर हवा दी गई। इसकी शुरुआत संसद की बहस के दौरान हो गई थी। कानून बनने के बाद इन्होंने सड़क पर मोर्चा बना लिया। जमकर भ्रम फैलाया गया।
असहमति के इस रूप को संविधान की भावना के अनुरूप नहीं कहा जा सकता। क्योंकि इसमें सीधे तौर पर देश के मुसलमानो को भड़काने का काम किया जा रहा था। संविधान इसकी इजाजत नहीं देता। इस आंदोलन में हिंसा हो रही थी, अराजक तत्व सरकार सम्पत्ति नष्ट कर रहे थे, गरीबों को रोजगार साधनों पर हमला कर रहे थे, संविधान इसकी इजाजत नहीं देता। विपक्ष के किसी बड़े नेता ने हिंसा को रोकने की अपील नहीं की,इसके विपरीत वह सरकार पर ही हमला बोलते रहे। विपक्ष के रुख से यह भी जाहिर हुआ कि इन्हें धार्मिक आधार पर उत्पीड़ित किये गए हिन्दू,सिख, बौद्ध समुदाय के लोगों से कोई मतलब नहीं है, उनके प्रति इन नेताओं की कोई संवेदना नहीं है। किसी ने एक बार भी यह नहीं कहा कि हिन्दू, बौद्ध,जैन,सिख आदि उत्पीड़ित शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने का वह स्वागत करते है। इतना ही नहीं विपक्ष के जो नेता पहले ऐसे शरणार्थियों के नागरिकता देने की मांग करते थे, उन्होंने भी इंग बदल लिया, वह भी इसे संविधान विरोधी बताने लगे। इन सबको संविधान के कुछ आर्टिकल याद आने लगे। मनमाने ढंग से उनकी व्याख्या होने लगी। इनके हिसाब से तो कोई आक्रमण कर के भारत के भीतर आ जाये तो उसके साथ भी समानता का आर्टिकल चौदह, पन्द्रह, इक्कीस,छब्बीस सब लागू हो जाएंगे। लेकिन कोई नेता इस बात से खुश नहीं था इस कानून से उत्पीड़ित हिन्दू,बौद्ध,सिख भारत के नागरिक बन जाएंगे। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने प्रमाण देकर कहा कि कांग्रेस और पाकिस्तान के बयान एक जैसे लगते है। पाकिस्तान भी उसके यहां उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों की चर्चा नहीं करता। कांग्रेस को भी उनकी चिंता नहीं है। एयर स्ट्राइक, सर्जिकल स्ट्राइक, आर्टिकल तीन सौ सत्तर और नागरिकता संशोधन विधेयक पर कांग्रेस पार्टी के नेताओं और पाकिस्तान के नेताओं के एक समान रहे हैं। लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पास हुआ था तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि यह अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार कानून तथा दोनो देशों के बीच हुए एग्रीमेंट का उलंघन है।

कांग्रेस नेता इसे संविधान का उल्लंघन बता रहे है। प्रियंका गांधी कहती है कि समानता का अधिकार और धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार सुनिश्चित है। हमारा संविधान, हमारी नागरिकता, एक मजबूत और एकीकृत भारत के सपने हम सभी के हैं। हम अपने संविधान को व्यवस्थित रूप से नष्ट करने के इस सरकार के एजेंडे के खिलाफ लड़ेंगे और उस मूल आधार को खत्म नहीं होने देंगे, जिस पर हमारे देश का निर्माण हमारी सभी शक्तियों के साथ हुआ था। इस बयान में अवैध घुसपैठियों के लिए हमदर्दी है, हिन्दू,सिख, बौद्ध,पारसी शरणार्थियों के प्रति कोई संवेदना नहीं है। कपिल सिब्बल,पी चिदम्बरम,गुलाम नवी आजाद,तेजस्वी यादव,अखिलेश यादव,ममता बनर्जी,अरविंद केजरीवाल आदि सभी एक स्वर में नागरिकता संशोधन विधेयक को असंवैधानिक एवं संविधान की मूल भावना के खिलाफ घोषित कर रहे है। इनके अनुसार इसमें न केवल धर्म के आधार पर भेदभाव किया गया है बल्कि यह सामाजिक परंपरा और अंतरराष्ट्रीय संधि के भी खिलाफ है। यह अनुच्छेद चौदह, पन्द्रह इक्कीस,पच्चीस व छब्बीस के खिलाफ है। अनुच्छेद चौदह किसी भी व्यक्ति को भारत के कानून के समक्ष बराबरी की नजर से देखने की बात कहता है, लेकिन यह प्रावधान अवैध घुसपैठियों पर लागू करना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक है। इस बात को विपक्ष वोटबैंक सियासत की नजर से देख रहा है।

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