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8 दिसम्बर गीता जयंती के रूप में मनाई गई

गीतापाठ को लोकप्रिय बनाने का अभियान

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

आठ दिसम्बर को वृहत स्तर पर गीता जयंती के आयोजन किया जाता है।

भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश युद्ध स्थल पर दिया था। एक तरफ कौरव दूसरी ओर पांडव सेना युद्ध के लिए तैयार खड़ी थी। अर्जुन का मन विचलित था। उचित अनुचित का निर्णय करना उनके लिए कठिन था। वह दिग्भर्मित थे। लेकिन उन्होंने एक काम बहुत बढ़िया किया था। अर्जुन ने अपने रथ की कमान प्रभु श्रीकृष्ण को सौप दी थी।

इसी परिस्थिति में सारथी बने प्रभु ने किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। यह प्रसंग आज भी प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में परिलक्षित होता है। कई बार अपना ही मन हृदय युद्ध स्थल जैसा हो जाता है। कौरव व पांडव की तरह परस्पर विरोधी विचारों के बीच द्वंद की स्थिति बनती है। उचित का निर्णय करना कठिन हो जाता है। शरीर भी दस इंद्रियों का रथ ही तो है। प्रभु को सारथी बना कर कर्म करता चल, अर्थात गीता के उपदेश के अनुरूप कर्म करना चाहिए। फल पर नियंत्रण नहीं है। जय पराजय, सुख दुख सभी में सम् भाव रहकर कर्म करने का उपदेश प्रभु ने अपने सखा अर्जुन को दिया था। इससे सुंदर प्रबंधन का अन्य कोई सूत्र हो नहीं सकता।

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः ।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥

-जहाँ योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीव-धनुषधारी अर्जुन है, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है- ऐसा मेरा मत है ॥


लखनऊ की श्रीमद भगवत गीता समिति गीता पाठ को लोकप्रिय बनाने का अभियान चला रही है। गीता में जीवन प्रबंधन है, भ्रम से बाहर निकलने का मार्ग है। आज के जीवन मे जो तनाव है, उसे गीता के नियमित पाठ से दूर किया जा सकता है। इसके पाठ से धर्म आधारित कर्म का भाव जागृत होता है।
इसके अंतर्गत अनेक कार्यक्रम चलाए जाते है। क्लास तीन से लेकर बारह तक के विद्यर्थियो गीता के श्लोक कंठस्थ कराए जाते है। इस समय प्रायः सभी विद्यर्थियो को गीता के श्लोक कंठस्थ है। इसी प्रकार गृहस्थ गीता अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है। इसमें बड़ी संख्या में गृहस्थ लोग समवेत गीता पाठ करते है। तीसरे कार्यक्रम के रूप में गीता शलाका प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसमें अंतरविद्यालय स्तर पर प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसमें प्रतिभागी विद्यार्थी गीता के कंठस्थ श्लोक सुनाते है। इसका उद्देश्य सभी विद्यर्थियो में गीता व संस्कृत के प्रति रुचि जागृत करना होता है। इस प्रतियोगिता में महाभारत से जुड़े सौ प्रश्न भी दिए जाते है। अधिकतम सही उत्तर देने वाले विद्यार्थियों को पुरष्कृत किया जाता है। इसके अलावा गीता स्वाध्याय का भी आयोजन किया जाता है। आठ दिसम्बर को वृहत स्तर पर गीता जयंती के आयोजन किया जाता है।


इस बार भी आठ दिसम्बर को महामना मालवीय विद्यालय में श्रद्धा और उत्साह के साथ गीता जयंती के आयोजन किया गया। इसमें सैकड़ो श्रद्धालुओं ने भगवतगीता का अखंड पाठ किया।

महामना मालवीय मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और श्रीमद भगवत गीता समिति के संरक्षक प्रभु नारायण श्रीवास्तव ने कहा कि इस महान ग्रन्थ की प्रासंगिकता सदैव रहेगी। इससे धर्म मार्ग पर कर्म करने की प्रेरणा मिलती है। उचित अनुचित का ज्ञान होता है। इसके नियमित पाठ से संस्कारो व धर्म भाव का जागरण होता है। अखंड पाठ के बाद कैलाश चन्द्र शर्मा,शिवसेवक उपाध्याय, कुंदन लाल शास्त्री ने भजन व श्लोक का गायन किया।

श्रीमद् भगवद् गीता भाव प्रसार परिषद्

वर्तमान परिवेश में मनुष्यों की अतृप्ति का वास्तविक कारण क्या है? इस प्रश्न का हल थोड़े भावात्मक चिंतन से स्पष्ट हो जाता है। वास्तव में मनुष्यों ने जीवन के वास्तविक लक्ष्यों के निर्धारण में कोई तत्परता नहीं दिखाई है। उसने कभी इस संदर्भ में कोई सकारात्मक चिंतन नहीं किया है की जीवन में घटने वाली कोई भी घटना या स्वयं उनके द्वारा प्रायोजित प्रतिस्पर्धाओं का सार उन्होने क्या पाया है? उन्होने स्वयं से यह प्रश्न कभी नहीं किया की क्या उनकी आशाओं और आकांक्षाओं का कोई नैतिक अस्तित्व भी है अथवा नहीं? उनका चिंतन कभी उनकी भावनाओं पर आधारित नहीं रहा। उनका अनुभव कभी गहरा नहीं हो पाया। उन्होने अपनी प्राप्ति का विश्लेषण कभी नहीं किया ओर केवल भौतिक जगत की नश्वर समृद्धि को प्राप्त करने के लिए बोझिल योजनाओं की नीव रखी। उन्होने निः श्रेयस की रिक्ति में केवल अभ्युदय का संधान ही किया है इसीलिए उनको उस नित्य आनंद की प्राप्ति असंभव है।

मानव समूह धर्मभाव के अभाव में कभी न तृप्त होने वाली भौतिक तृष्णा की शांति के लिए उन स्वयंभू प्रपंचियों के प्रपंचजाल में उलझ गया है जिन प्रपंचियों और पाखंडियों ने मनुष्यों के स्वार्थसिक्त भावनाओं का अनैतिक लाभ अनंतकाल से उठाया है और उसे दिशाहीन किया है।

अपनी सुप्तावस्था में उनकी जिज्ञासा केवल और केवल आयु संपत्ति और अनावश्यक संग्रह की ही रह गई है। उन्होंने कभी यह नहीं पूछा की उनकी वास्तविक उन्नति कैसे होगी? जीवन में क्लेशों का क्या कारण है? क्या उनसे मुक्त भी हुआ जा सकता है? जीवन में भौतिकता और आध्यात्मिकता का संतुलन क्या है, और क्यो आवश्यक है? धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, विवेक, वैराग्य और षटसम्पत्तियों की मीमांसा क्या है? वे इस संदर्भ में कभी जिज्ञासा नहीं करते की जीवन प्रबंधन की सर्वश्रेष्ठ शैली क्या है? यह विचार करने का विषय है की उनके प्रश्न क्यों सत्य की परिधि से परे और केवल बुद्धि विलास की आशा से ही प्रेरित लगते हैं?

वो ये कभी नहीं पूछते की भीतर कुछ वैसा कब घटित होगा जिसके घटित होने से वे केवल पाने की भावना से मुक्त हो जाएंगे। उनका पशुत्व किस प्रकार नष्ट हो जाएगा और जितनी उनकी आयु है वे उसका सर्वश्रेष्ट उपयोग कैसे कर पाएंगे?

परिणाम स्पष्ट है। वे व्याकुल हैं। वो मृग के समान स्व में स्थित ब्रह्म रूपी कस्तुरी को संसार भर में ढूंढ रहे हैं। वे नीति-अनीति का निर्णय नहीं कर पा रहे केवल और केवल अर्थ लिप्सा और लालसा में युग प्रपंचियों और चांडालों के द्वारा दिग्भ्रमित हो रहे हैं। धर्मकसौटी के अभाव में वो उन युग प्रपंचियों के हाथों अपनी आत्मा को बेचकर भी संतुष्ट होने का आत्मघाती प्रयास कर रहे हैं।

श्रीमद् भगवद् गीता भाव प्रसार का संदर्भ इसी ज्वलंत समस्या के चिंतन और मनन से ऊपजा और सहज भाव से प्रगति भी कर रहा है। वास्तविक संदर्भ यह है की श्रीमद् भगवद् गीता समस्त जीव जगत की भाव अनुरूप जिज्ञासाओं को अपने सिद्धांत समूह के द्वारा शांत कर सकती है। वह जीवन के वास्तविक प्रश्नों को बड़ी सरलता से व्यक्त करती है और मनुष्यों में सरलता एवं सहजता का भाव पोषित करते हुए उन प्रश्नों का हल भी उपलब्ध कराती है। वह जननी है जीवन प्रबंधन के श्रेष्ठतम शैली की। वह हमें जगा सकती है। हमारी तंद्रा को तोड़ सकती है। जीवन के वास्तविक उद्देश्यों से हमरा साक्षात्कार करा सकती है। यही धर्म की शुद्ध कसौटी है जो संशय और भ्रम की स्थिति में उचित मार्ग दिखा सकती है। वह हमें बता सकती है की क्यों सत्य के दर्शन का लक्ष्य ही श्रेष्ठ है। वह उस उस श्रेष्ठ लक्ष्य को प्राप्त करने का मार्ग भी बता सकती है। वह सम्पूर्ण वशूधा में संतुलन और शांति की की चेतना जागृत कर सकती है। सम्पूर्ण मानव जाति को अनंत धर्म के मौलिक दर्शन का साक्षात्कार कराकर अनंत आनंद से भर सकती है।

इस संदर्भ लोककल्याण की भावना से में सप्तम् रहस्य फाउंडेशन द्वारा ‘श्रीमद् भगवद् गीता भाव प्रसार परिषद्’ की संगठनात्मक व्यवस्था विकसित की गई है। जिसमें श्रीमद् भगवद् गीता जी के भाव प्रसाद से सम्पूर्ण मानव जाति को जागृत और तृप्त करने का सामान्य सा प्रयास हमने प्रारम्भ किया है। हमने श्रीमद् भगवद् गीता के दिव्य ज्ञान को जन जन तक पहुँचाने का संकल्प लिया है।

पावन महाराज

संपर्क सूत्र:- 9931083584

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