प्रकाश पर वैज्ञानिक परिचर्चा
डॉ दिलीप अग्निहोत्री
लखनऊ।
भारतीय चिंतन में प्रकाश को अत्यधिक महत्व दिया गया। इसे दिव्य माना गया। सूर्य को प्रत्यक्ष देव रूप में प्रणाम किया जाता है। अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने की कामना की गई। भारत के अनेक मंदिरों का निर्माण प्रकाश की वैज्ञानिक मान्यता के अनुरूप किया गया। छाया मंदिर,वृहदेश्वर मंदिर,हम्पी मंदिर में प्रकाश के सिद्धांत को श्रंखला स्थापत्यकला द्वारा दर्शाया गया है। मध्य रात्रि को नहीं,बल्कि अरुणोदय के साथ दिवस का प्रारंभ माना गया।
लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के भौतिक विज्ञान विभाग में अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाश दिवस के अवसर पर ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया। यूनेस्को ने दो वर्ष पहले सोलह मई को प्रकाश दिवस के रूप में मान्यता दी थी। लखनऊ विश्वविद्यालय ने विद्यर्थियो के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन प्रतियोगिता व व्याख्यान माला का आयोजन किया। डॉ० अनिल भारद्वाज ने चंद्रयान प्रथम और द्वितीय के बारे में बताया। दो हजार आठ में चंद्रयान प्रथम ने आठ प्रयोग किए। अन्य देशों ने भी इस पर अपने प्रयोग किए। इसने उन सभी देशों को परिणाम डेटा प्रदान किया। तब से हमने मंगलयान और चंद्रयान द्वितीय भेजे हैं। भारत दो हजार तेरह में अपने पहले प्रयास में सफलतापूर्वक मंगल ग्रह पर परिक्रमा लगाने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। चंद्रयान द्वितीय दो हजार उन्नीस में लॉन्च किया गया था। तब से उत्कृष्ट डेटा भेज रहा है। शीघ्र ही हम सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य एल वन लॉन्च किया जाएगा। भविष्य में इसरो अन्य ग्रहों का भी पता लगाने की योजना बना रहा है। प्रो एन०बी० सिंह,प्रो आर एम मेहरा, प्रो उषा मालवीय,डॉ ए के श्रीवास्तव डॉ नुज़हत ज़ीलानी,डॉ० चंचल जौहरी ने भी विचार व्यक्त किया। यह आयोजन प्रो पूनम टण्डन,अंचल श्रीवास्तव,प्रो राजेश शुक्ला के संयोजकत्व में आयोजित किया गया था।