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Online शॉपिंग व कॉल सेंटर के जरिए हड़प रहे लाखों

जालसाजों के निशाने पर प्लास्टिक मनी
सैकड़ों किलोमीटर दूर से बना रहे निशाना
साइबर क्राइम सेल के लिए ऐसे मामले बने चुनौती
ए अहमद सौदागर
लखनऊ।

दिमागी कसरत कहें या फिर कम मेहनत में चंद दिनों में लखपति या करोड़पति बनने की लालसा। कुछ इसी तरह के हाईटेक जालसाज़ हथकंडे अपनाते हुए लोगों की गाढ़ी कमाई पर डाका डाल रहे हैं।
घर बैठे अॉन लाइन शॉपिंग, कॉल सेंटर खोलकर व नेटवर्किंग और नेट बैंकिग तक का चलन जहां तेजी से बढ़ रहा है, वहीं यह सेवा साइबर अपराधियों का अहम हथियार बनती जा रही है।
दरअसल साइबर अपराधी बेहद चालाकी से अपने गहरे बूने जाल में लोगों को फंसाकर उनके एटीएम कार्ड, क्रेडिट कार्ड के जरिए लाखों-करोड़ों की ठगी कर रहे हैं।
प्लास्टिक मनी यानी एटीएम अथवा क्रेडिट कार्ड साइबर अपराधियों के लिए इस आधुनिक लूटपाट का सबसे मुफीद जरिया है।
इसके लिए वे तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं और ऐसी वारदातों को एक बड़े सिंडिकेट के जरिए अंजाम देते हैं।
राजधानी लखनऊ के अलावा यूपी के अलग-अलग जिलों भी ऐसे अपराधों की तादाद तेजी से बढ़ रही है।
दो फरवरी 2021 साइबर क्राइम सेल ने जनपद मऊ के घोसी निवासी अभिषेक पाल, आजमगढ़ जिले के मुबारकपुर निवासी अशोक पाल व दिल्ली के नजफगढ़ निवासी राजकुमार वर्मा को पकड़ा तो पता चला कि यह एक संगठित गिरोह है और राजधानी लखनऊ के देवा रोड पर कॉल सेंटर खोलकर लोगों को इंटरनेट कॉलिंग के जरिए क्रेडिट कार्ड की लिमिट बढ़ाने, टूर पैकेज व गिफ्ट देने के नाम पर लाखों की ठगी कर रहे थे और इस गिरोह का मास्टरमाइंड आमिर नाम का शख्स दिल्ली में बैठकर गिरोह संचालित कर रहा था।
इससे पहले और हाल में हुई जालसाजों की गिरफ्तारी के बाद सामने आता है कि इनका जाल राजधानी लखनऊ के अलावा यूपी के अलग-अलग जिलों तथा मुंबई, दिल्ली, चेन्नई सहित अन्य बड़े महानगरों में बैठकर साइबर अपराधी अॉपरेट कर रहे हैं।
ऐसे मामलों में देखा जाए तो बैंककर्मियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है, लेकिन जब भी किसी के साथ इस तरह की घटनाएं हुई तो बैंककर्मी पल्ला झाड़कर चुप्पी साध लेते हैं।
सवाल है कि हर बैंक के हर खाताधारकों की कुंडली बैंकों से जुड़ी होती है लेकिन इसके बावजूद भी बैंक खुद की गलती मानने को तैयार नहीं होतेॽ
एक पुलिस अधिकारी की मानें तो उनका कहना है कि ऐसे मामलों में सिम की लोकेशन, पता, खाता व शापिंग किए जाने तथा कॉलिंग के जरिए का स्थान अलग-अलग होता।
की मामलों में अपराधियों द्वारा इस्तेमाल सर्वर विदेश का मिलता है। यही वजह है कि इन मामलों में काफी समय लगता है।
कमिश्नरेट पुलिस आतंक का पर्याय बने टप्पेबाजों एवं जालसाजों की रीढ़ तोड़ने में फिलहाल जुट गई है।
,,,,,, कमिश्नर ने टप्पेबाजों एवं जालसाजों का दफ़न पन्ना पलटा
सिलसिलेवार गिरफ्तारियां जारी

हत्या, लूट, डकैती और जालसाजी जैसी घटनाएं नई नहीं बल्कि बहुत पुरानी है। इसकी रोकथाम के लिए पुलिस कमिश्नरेट लागू होने के पुलिस कप्तानों ने कई बार कई तरह की योजनाएं तैयार की, लेकिन अधिकारियों का तबादला होते ही शायद योजनाएं भी उनके साथ चलीं गईं। नतीजतन जालसाजों की फौज में गिरावट के बजाए फिलहाल इजाफा होता गया।
कार्यभार संभालने के पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर दफ़न हुई योजनाओं के पन्नों को पलट कर देखा तो दंग रह गए।
लिहाजा पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर ने आतंक का पर्याय बने टप्पेबाजों एवं जालसाजों की गिरफ्तारी और उनके खिलाफ अभियान छेड़ दिया है।

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