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पद्मश्री वाकणकर युग पुरुष थे : बाबा योगेन्द्र

राष्ट्रीय कवि सम्मेलन के साथ तीन दिवसीय राष्ट्रीय समारोह प्रयागराज में संस्कार भारती ने आयोजित किया।

पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर जन्म शताब्दी समारोह सम्पन्न

युग पुरुष थे पद्मश्री वाकणकर- बाबा योगेन्द्र

प्रयागराज

भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान और स्वाभिमान का भाव पूरे देश में बढ़ा है और इसका श्रेय अंतरराष्ट्रीय ख्याति के पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर जैसे महान भारतीय मनीषियों को जाता है। तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर भारतीय मनीषियों ने इतिहास में गढ़े गए तमाम किस्से कहानियों को ध्वस्त करते हुए सच को उजागर करने का काम किया है। वास्तव में वाकणकर युग पुरुष थे।

यह बात संस्कार भारती के संस्थापक संरक्षक पद्मश्री कलाऋषि बाबा योगेन्द्र ने आज यहां कही। बाबा योगेन्द्र आज इलाहाबाद संग्रहालय में संस्कार भारती और इलाहाबाद संग्रहालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर जन्म शताब्दी समारोह का उदघाटन कर रहे थे। प्रेरणा स्रोत वाकणकर विषय पर बोलते हुए बाबा योगेन्द्र ने केरल और तमिलनाडु का उदाहरण देते हुए बताया कि भारतीय संस्कृति के लिए लोग किस तरह काम कर रहे हैं।

समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने वाकणकर जी के साथ अपने संस्मरण साझा करते हुए कहा कि वाकणकर जी अंतरराष्ट्रीय ख्याति के पुरातत्ववेत्ता ही नहीं, महान कला आचार्य, मुद्रा शास्त्री, साहित्यकार, अभिलेखविद, भाषाविद, इतिहासज्ञ, समाजसेवी, संस्कृतिसाधक थे।

समारोह के मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रवेश कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि वाकणकर जी द्वारा खोजे गए भीमबेटका से भारतीय संस्कृति का एक नया आयाम खुला है। वाकणकर जी के शोध से हड़प्पा संस्कृति से प्राचीन सरस्वती सभ्यता प्रकाश में आई है।

समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एचएन दुबे ने वाकणकर जी को भारतीय संस्कृति का पुरोधा बताते हुए कहा कि वाकणकर जी के शोध का ही परिणाम है कि सरस्वती नदी का प्रवाह क्षेत्र दुनिया के सामने आ सका, जिसे बाद में वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष से लिए गए चित्रों से प्रमाणित भी किया। उन्होंने कहा कि वाकणकर जी वैदिक ग्रंथों के ज्ञाता ही नहीं, पुरातत्व के सच्चे शोधकर्ता भी थे।

समारोह के प्रारंभ में इलाहाबाद संग्रहालय के निदेशक डा. सुनील गुप्ता और संस्कार भारती की अध्यक्ष कल्पना सहाय ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार डॉ. प्रदीप भटनागर ने किया। समापन में सभी के प्रति आभार ख्यात गीतकार शैलेन्द्र मधुर ने व्यक्त किया। गायक विष्णु राजा ने संस्था का ध्येय गीत गाया। अंत में रंजना त्रिपाठी और आभा मधुर ने वंदे मातरम गाया।

तीन दिन चलने वाले पद्मश्री वाकणकर जन्म शताब्दी समारोह के आज पहले दिन के समारोह में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हर्ष कुमार, लोक सेवा आयोग उत्तर प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष प्रो. केबी पांडेय, संग्रहालय के राजेश मिश्र, पूर्व कुलपति प्रो. स्वतंत्र शर्मा, संस्कार भारती के क्षेत्र प्रमुख गिरीश मिश्र, सनातन दुबे, डॉ. अभिनव गुप्ता, प्रेमलता मिश्र, योगेन्द्र मिश्रा, पंकज गौड़, इ. केके श्रीवास्तव आदि अनेक प्रमुख लोग उपस्थित रहे।

समारोह के अंतिम दिन तो कवियों ने श्रोताओं को ओज से भर दिया। कवियों ने अपनी रचनाओं से प्रेम, सदभावना और शांति का संदेश देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।

हिन्दुस्तानी एकेडमी के सभागार में आयोजित कवि सम्मेलन का प्रारंभ वरिष्ठ कवि योगेन्द्र मिश्र ने अपनी रचनाओं से किया। उन्होंने प्रेम और सदभाव की बात करते हुए सुनाया-

अमरदीप की तरह जलो तुम, मत बुझना तूफानों में। बढ़ते रहना रुक मत जाना जग वालों के तानों से।।

नई दिल्ली से आईं डॉ. अंजना सिंह सेंगर ने राष्ट्र प्रेम की अलख जगाते हुए सुनाया-

वतन से प्यार करने का मेरा जज्बा निराला है, मैं अपने दिल की धड़कन में तिरंगा ले के चलती हूं।।

अपनी मां को समर्पित एक ग़ज़ल सुनाकर अंजना सिंह ने श्रोताओं की खूब तालियां बटोरी।

अयोध्या से आए जमुना प्रसाद उपाध्याय ने तीखे व्यंग्य में बुनी ग़ज़लें सुनाई। उन्होंने कहा-

हजारों योजनाओं के यहां बादल उमड़ते हैं, सबब क्या है कि इन फसलों का पीला पन नहीं जाता।।

संस्कार भारती के लिए एक शेर पढ़ते हुए उन्होंने कहा कि

कोई है जो दीपकों को तूफानों से बचा रहा है।

विख्यात कवि शैलैन्द्र मधुर ने उत्कट देश प्रेम के गीत सुनाते हुए कहा कि –

प्रेम का शहर हो या गांव बचाए रखना, अपनी इंसानियत का भाव बनाए रखना, देश खुशहाल रहे काम यही करना है, फैसला जो भी हो सदभाव बनाए रखना।। 

वाकणकर जी पर उन्होंने गीत सुनाकर खूब तालियां पाईं।

एटा से पधारे डॉ ध्रुवेन्द्र भदौरिया ने राष्ट्रीय चेतना से भरी कविताएं सुनाकर श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। अंत में भदौरिया ने गीत –

जीवन है प्रेम गीत गुनगुना कर गाइए, दर्द भरा कोई उपहार मत दीजिए। चादर कबीर की है, ओढ़िए जतन से, तार- तार करके उतार मत दीजिए।।

सुनाकर श्रोताओं की भरपूर वाहवाही और तालियां बटोरीं।

कवि सम्मेलन के मुख्य अतिथि पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी ने जीवन से जुड़ी कविताएं सुनाकर श्रोताओं की खूब तालियां बटोरी। केशरी नाथ त्रिपाठी ने सुनाया-

है सरगम का संगीत यहां, है नफ़रत भी औ प्रीत यहां, मातम का ढोल यहां बजता, यह प्रेम पिपासु बंसुरिया है, इसकी परिभाषा क्या करना।।

अध्यक्षीय काव्यपाठ करते हुए वरिष्ठ गीतकार व पत्रकार सुधांशु उपाध्याय ने-

यहां झूठ की हरदम परदेदारी चलती है, चोरों की चौकस चौकीदारी चलती हैं।।

सुनाकर वर्तमान की विद्रुपता को उजागर किया। जीवन की विसंगतियों को अपनी कविताओं से उजागर करते हुए सुधांशु उपाध्याय ने अंत में प्रेम गीत सुनाकर श्रोताओं की भरपूर वाहवाही लूटी। कवि सम्मेलन का खूबसूरत संचालन शैलेन्द्र मधुर ने किया।

कवि सम्मेलन के प्रारंभ में संस्कार भारती के संस्थापक संरक्षक पद्मश्री बाबा योगेन्द्र, मुख्य अतिथि पूर्व राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी, अध्यक्ष कल्पना सहाय ने दीप जलाकर कवि सम्मेलन का उदघाटन किया। कल्पना सहाय ने सभी कवियों और अतिथियों का स्वागत किया। रंजना त्रिपाठी, नीरा त्रिपाठी और अंजू गुप्ता ने संस्था का ध्येय गीत गाया।

कवि सम्मेलन में विधायक हर्ष बाजपेयी, शैलतनया श्रीवास्तव, हरिमोहन मालवीय, स्वतंत्र शर्मा, डॉ अभिनव गुप्ता, रवि कुशवाहा, अरिंदम घोष, अखिलेश श्रीवास्तव, प्रेमलता मिश्र, रेखा मिश्र, पंकज गौड़, आदि शहर के अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।

संस्कार भारती, प्रयागराज द्वारा आयोजित पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर जन्म शताब्दी समारोह के दूसरे दिन भी दूर दूर से आए वरिष्ठ कलाकारों ने अपने अपने सुमधुर गीतों, भजनों और ग़ज़लों से सुरों की खूबसूरत शाम को सजा दिया था।

कार्यक्रम में दर्शकों की तालियों ने कलाकारों को अंत तक उत्साहित किए रखा और बताया कि संध्या एक यादगार शाम बन गई।

कार्यक्रम का शुभारंभ गणेश श्रीवास्तव के ओम नमः शिवाय भजन से हुआ। लागा चुनरी में दाग़ निर्गुण गीत सुनाकर गणेश श्रीवास्तव ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। रत्नेश दुबे ने राम नाम अति मीठा है, भजन गाकर पहले श्रोताओं को राममय किया और अगले भजन चिठिया ले जा उधो, जाके कहियो कन्हैया से गाकर गंभीर कर दिया। सारे श्रोताओं पर ब्रज की गोपियों का कृष्ण प्रेम और बिछोह का विरह तारी हो गया।

लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराने वाले आशुतोष श्रीवास्तव ने हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला की संगीतमयी प्रस्तुति से श्रोताओं को भक्ति रस से उठाकर अध्यात्म की दुनिया में पहुंचा दिया। आशुतोष ने मधुशाला के दूसरे बंद को सुनाकर श्रोताओं की खूब वाहवाही लूटी।

ख्यातिलब्ध वरिष्ठ लोक गायिका मंजू नारायण ने बुंदेलखंडी लोकगीत दोपरिया में मेरो गोरो बदन कुम्हालाए, गाकर भारत के असली रंग और माटी की मोहक सुगंध से जोड़ा। लोकगीत की ताल और लय ने तमाम श्रोताओं को नृत्य के लिए विवश कर दिया। मंजू नारायण के अगले लोकगीत सैंया लै दे करधनिया, मैं तोसे बिरझी, ने लोकजीवन में नारी के मन की कोमल भावनाओं और हास्य का मिला जुला अदभुत भाव भर दिया। श्रोताओं ने जोरदार तालियों से मंजू नारायण को अपना स्नेह दिया।

लोकगीत का अगला रंग रागिनी चन्द्रा ने मिर्जापुरी कजरी से बिखेरा। उनकी गाई हमरे मिर्जापुर में बड़ा बेमिसाल बा ना, कजरी ने सावन के रस का माहौल बना दिया। अगले लोकगीत में उन्होंने भक्ति का रस बरसाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।

लोकगायिका रंजना त्रिपाठी ने नकटा गाकर एक और लोकरंग से लोगों का दिल जीता। उन्होंने दादरा गाकर लोक में प्रेम के छेड़छाड़ वाले रूप से श्रोताओं को गुदगुदाया। लोकप्रिय गायक विष्णु राजा ने सूफी कलाम से कार्यक्रम को ऊंचाई पर पहुंचा दिया।

हे री सखी मंगल गाओ री, ने श्रोताओं को भक्ति प्रेम रस से आनंदित किया। विष्णु राजा ने देश गीत गाकर गायन को समाप्त किया।

कार्यक्रम के अंत में विख्यात लोक कलाकार पूर्णिमा और उनकी साथी कलाकारों ने ढेड़िया नृत्य प्रस्तुत करके लोगों को लोक जीवन से ही नहीं, अपनी मिट्टी की सोंधी महक से जोड़ा। ढेड़िया नृत्य का गीत रश्मि ने गाया। अंतिम कार्यक्रम के रूप में प्रस्तुत ढेड़िया नृत्य देखकर दर्शकों श्रोताओं ने खड़े होकर तालियां बजाईं। कार्यक्रम के सुंदर संचालन से वरिष्ठ कवियत्री आभा मधुर ने गायक- गायिकाओं को मंच पर प्रस्तुत किया।

प्रारंभ में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संगीत विभाग के प्रोफेसर जयंत खोत, संस्कार भारती के संस्थापक संरक्षक बाबा योगेन्द्र, अध्यक्ष कल्पना सहाय ने दीप जलाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। बाबा योगेन्द्र और कल्पना सहाय ने प्रोफेसर जयंत खोत और सभी कलाकारों को पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम का संयोजन योगेन्द्र मिश्रा, विष्णु राजा और रत्नेश दुबे ने किया।

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