राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा सरकार को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पर विपक्ष को विश्वास में लेने का आग्रह किए जाने के बाद केंद्रीय मंत्री श्रीपद नाइक ने मंगलवार (17 मार्च) को उन्हें आश्वस्त किया कि ऐसा ही किया गया है। नाइक ने कहा, “हमने कोशिश की है कि हर कोई समझे। हमने उनसे (विपक्ष) से कहा कि अगर आपको कोई संदेह है तो आमने-सामने बैठें और स्पष्ट करें। हमारे पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है।”
उन्होंने कहा कि सदन के पटल पर भी चर्चा की गई है। यह टिप्पणी आरएसएस के केंद्र सरकार से विपक्षी पार्टियों के साथ संशोधित अधिनियम पर संदेहों को दूर करने के लिए केंद्र सरकार से संवाद शुरू करने के आग्रह के बाद आई है। आरएसएस के सरकार्यवाह (महासचिव) सुरेश ‘भैय्याजी’ जोशी ने कहा, “विपक्षी दलों के सभी संदेहों को दूर करना केंद्र सरकार का कर्तव्य है। सत्तारूढ़ दल के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को इस संबंध में बातचीत शुरू करनी चाहिए।”
संशोधित नागरिकता कानून में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में कथित रूप से उत्पीड़न का शिकार हुए हिन्दू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी अल्पसंख्यक समुदाय के उन सदस्यों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है जो 31 दिसंबर, 2014 तक यहां आ गए थे।
केन्द्र का सुप्रीम कोर्ट में दावा: सीएए किसी भी मौलिक अधिकार का हनन नहीं करता
वहीं दूसरी ओर, केन्द्र ने मंगलवार (17 मार्च) को उच्चतम न्यायालय में दावा किया कि नागरिकता संशोधन कानून, 2019 संविधान में प्रदत्त किसी भी मौलिक अधिकार का हनन नहीं करता है। केन्द्र ने इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपने 129 पेज के जवाब में नागरिकता संशोधन कानून को वैध बताया और कहा कि इसके द्वारा किसी भी प्रकार की संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन होने का सवाल ही नहीं है।
हलफनामे में केन्द्र ने कहा है कि यह कानून कार्यपालिका को किसी भी प्रकार के मनमाने और अनियंत्रित अधिकार प्रदान नहीं करता है क्योंकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न का शिकार हुये अल्पसंख्यकों को इस कानून के अंतर्गत विर्निदिष्ट तरीके से ही नागरिकता प्रदान की जाएगी। केन्द्र की ओर से गृह मंत्रालय में निदेशक बी सी जोशी ने यह हलफनामा दाखिल किया है। शीर्ष अदालत ने पिछले साल 18 दिसंबर को नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता का परीक्षण करने का निश्चय किया था लेकिन उसे इसके क्रियान्वयन पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था।