थक जाने पर जो माथा सहलाए उसे कहते हैं बिटिया,
हरि प्रसाद शुक्ल
दुर्ग, छत्तीसगढ़
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ बेटी की सुरक्षा
बेटी की पहचान
बेटी ईश्वर की अनुकंपा है ,
बेटी सृष्टि का मूल आधार है,
बेटी संस्कृति की संवाहक है,
बेटी सभ्यता की पालनहार है,
बेटी एक अनमोल धरोहर है,
बेटी सर्वोत्तम वरदान है ।
अनमोल हीरा जो कहलाए उसे कहते हैं बिटिया,
घर आने पर जो दौड़कर पास आये उसे कहते हैं बिटिया,
कल दिला देगें कहने पर जो मान जाए उसे कहते हैं बिटिया,
सब कुछ सहते हुए भी जो अपने दुख को छिपाये उसे कहते हैं बिटिया,
दूर जाने पर बहुत याद आए , रुलाये उसे कहते हैं बिटिया,
थक जाने पर जो माथा सहलाए उसे कहते हैं बिटिया,
मीलों दूर रह कर भी पास होने का जो एहसास दिलाए उसे कहते हैं बिटिया ।
पति की हो जाने पर भी माता पिता को जो भूल न पाये
उसे कहते हैं बिटिया ।
राखी बांधने के लिए बहन चाहिए….
वात्सल्य प्रेम के लिए बुआ चाहिए…
जिद पूरी करने के लिए मौसी चाहिए….
खीर खिलाने के लिए मामी चाहिए…
साथ निभाने के लिए पत्नी चाहिए…
माँ जैसा ही दुलार मनुहार के लिए चाची, भाभी चाहिए…
कहानी सुनाने के लिए दादी, नानी चाहिए….
प्रकृति की मोहनी ,
शांत रुप होती हैं बेटियाँ।
अपनों के लिए हर खुशी का त्याग कर देती हैं बेटियाँ…
सम्मान, समानता, स्वतंत्रता बेटियों को –
जन्मजात नैसर्गिक
अधिकार चाहिए….
ईश्वर की सर्वोत्तम रचना और मानवीय –
रिश्तों के लिए बेटियाँ
तो जिन्दा रहना चाहिए …..!!!