Home / Slider / “प्रयागराज: अतीत बोलता है”:13: डॉ राम नरेश त्रिपाठी: गुरु गोविंद सिंह

“प्रयागराज: अतीत बोलता है”:13: डॉ राम नरेश त्रिपाठी: गुरु गोविंद सिंह

डा. रामनरेश त्रिपाठी

 वरिष्ठ पत्रकार, ज्योतिषाचार्य

निदेशक भारतीय विद्या भवन, प्रयागराज एवं भरवारी

प्रयाग माहात्म्य: 13

प्रयाग की देन थे सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह

सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर ने प्रयाग के पवित्र संगम में आकर अपना माथा टेका था। यही उनकी पत्नी के गर्भ में सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह का प्रादुर्भाव हुआ था। आज भी महामना मालवीय नगर स्थित पक्की संगत गुरु गोविंद सिंह के जन्म की कहानी कह रही है और देश-विदेश से हजारों लाखों सीख इस संगत में आकर माथा टेकते हैं। पिता और पुत्र दोनों की आस्था की धरती रही है तीर्थराज प्रयाग की धरती।

गुरु तेग बहादुर का प्रयाग आगमन

350 वर्ष पूर्व विक्रमी संवत 1723 ईसवी सन 1666 में प्रयाग में गुरु तेग बहादुर का आगमन हुआ था। वेआतताइयों के विरुद्ध जनमत तैयार करने तथा एक धार्मिक यात्रा के संकल्प के साथ श्रीचरण रोपण, पटियाला पिहोवा, कैथल, रोहतक, मथुरा, आगरा कानपुर, कडा धाम से होते हुए मकर संक्रांति के दिन प्रयाग पहुंचे थे। गुरु तेगबहादुर के साथ उनकी मां नानकी, पत्नी माता गुजरी, भाई कृपाल, जन सेवक भाई मती दास, सति दास, दयाला, गुरु वक्स, बाबा गुरु दित्ता आए थे। और साथ में थे उनके सैकड़ों अनुयाई। वे यही सब मालवीय नगर स्थित पक्की संगत में ठहरे हुए थे।महामना मालवीय नगर का पुराना नाम अहियापुर है।उन्होंने यहां रह कर गुरु ग्रंथ साहब पीठ की स्थापना की और अपने प्रवास की अवधि में गुरु ग्रंथ साहब का पाठ आरंभ कराया। प्रयाग प्रवास के दौरान ही माता गुजरी के गर्भ में गुरु गोविंद सिंह का प्रादुर्भाव हुआ और जन्म के पश्चात मात्र 9 वर्ष की आयु में वे सिखों के दसवें गुरु बन गए। वे गर्भ में प्रयाग में आए और जन्म पटना में हुआ ।गुरु गोविंद सिंह पटना से अपनी बाल्यावस्था में चल कर पुनः इस प्रयाग की धरती पर आए थे। अर्थात अपने गर्भ की भूमि में माथा टेकने आए। वे पंजाब जाते हुए बक्सर, छपरा, आरा, डमरा, वाराणसी, मिर्जापुर होते हुए प्रयाग आए और 5 दिन तक यहां प्रवास किया था। प्रयाग की धरती गुरु गोविंद सिंह के गर्भ में आने और दोबारा आकर माथा टेकने की धरती रही है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सिखों के नौवें और दसवें गुरु का प्रयाग की धरती से अटूट संबंध ही नहीं बल्कि वे प्रयाग की देन है। गुरु गोविंद सिंह पटना से चलकर 1 अप्रैल 16 स 21 नवंबर 1675 ईस्वी को प्रयाग पहुंचे थे।

बहादुर कौम है सिख

सिख एक बहादुर कौम है जिसका जीता जागता उदाहरण आपको गुरु तेग बहादुर और गुरु गोविंद सिंह में देखने को मिलता है । गुरु तेगबहादुर ने हिंदुओं को मुसलमानों द्वारा जबरन इस्लाम स्वीकार करने का जबरदस्त विरोध किया विशेष करके उन्होंने कश्मीरी पंडितों की रक्षा की। उन्होंने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए हंसते हंसते अपनी गर्दन कटा दी इससे बड़ा बलिदान भला क्या हो सकता है ?11 नवंबर 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक पर काजी ने फतवा पढ़ा चांदनी चौक पर काजी ने फतवा पढ़ा और जल्लाद ने उनकी गर्दन कलम कर दी।


गुरु ग्रंथ साहब में उनके 115 पद सम्मिलित है जो गुरु तेग बहादुर द्वारा रचित है जो इस अमर ग्रंथ का एक अंग है। गुरु तेग बहादुर के बचपन का नाम त्याग मल था और बचपन में ही 14 वर्ष की उम्र में वे अपने पिता के साथ मुसलमानों से अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष के लिए निकल पड़े थे। पिता ने उनकी बहादुरी और बुद्धिमत्ता को देखते हुए ही उनका नाम त्याग मल से तेग बहादुर रख दिया।
ऐसे बहादुर पिता की संतान थे गुरु गोविंद सिंह। गुरु गोविंद सिंह ने बैसाखी के दिन 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी, इसीलिए प्रतिवर्ष वैशाखी का महत्वपूर्ण पर्व सिखों द्वारा उनकी स्मृति में धूमधाम से मनाया जाता है। प्रयाग की धरती ने अनेक सपूतों को जन्म दिया है संभवतः गुरु गोविंद सिंह को देने का श्रेय इसी प्रयाग की धरती को दिया जाना चाहिए यहां गर्भ में आने के बाद 5 जनवरी 1966 को उन्होंने पटना में जन्म लिया और 7 अक्टूबर १७८० तक वह बराबर सनातन धर्म और हिंदुओं की रक्षा के लिए संघर्ष करते रहे।

वे बहादुरी में अपने पिता से कहीं अधिक आगे थे और सच्चे अर्थों में संतान वही होती है जो अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा सके। गुरु गोविंद सिंह की चार संंताने थीं, जिनमें साहिबजादा अजीत सिंह, साहिबजादा फतेह सिंह, साहिब जादा जोरावर सिंह, साहिब जादा जुझार सिंह-पत्नी माता साहिब कौर। गुरु गोविंद सिंह ने सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहब को पूरा किया था। वे एक अच्छे विद्वान, कवि, साहित्यकार और सनातन धर्म के रक्षक थे। विचित्र नाटक उनकी आत्मकथा है तो थादशम ग्रंथ के रूप में उनकी कृतियों का संकलन है। वे मुगलों के साथ 14 युद्ध लड़े थे और धर्म के लिए सारा परिवार बलिदानकर दिया। उन्हें अनेक नामों से जाना जाता था।

उदाहरण के लिए कलगीधर, दशमांश, बाजा वाले आदि। वह एक लेखक चिंतक एवं संस्कृत सहित कई भाषाओं के विद्वान थे। उनके दरबार में 52 कवियों एवं चिंतकों की उपस्थित हमेशा रहती थी ।वे एकसंत के रूप में प्रतिष्ठा पित होकर देश की महान सेवा की।

डा० रामनरेश त्रिपाठी, प्रयागराज

94 152 35 128

Check Also

Know Your Judge: “कम शब्दों में मुकदमे के बिन्दु न्यायालय के सामने रखें”

प्रयागराज । पूर्व निर्धारित कार्यक्रमानुसार आज दिनांक 20.03.2025 (बृहस्पतिवार) को सायंकाल 04:00 बजे हाईकोर्ट बार ...