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“प्रेमचंद हमें अपनी आवाज बुलंद करने का आत्मबल देते हैं”: डॉ. राजेश कुमार गर्ग

प्रयागराज।

कथा सम्राट प्रेमचंद ने अपने समय के लोगों की चिंताओं को अपने लेखन का हिस्सा बनाया। उनकी चिंताओं में किसानों, मजदूरों, स्त्रियों और विकास के क्रम में पीछे छूट जा रहे हैं लोगों की दुरूहताएं शामिल थीं। वे अपने समय को बखूबी समझ रहे थे, बल्कि उसे बखूबी रच भी रहे थे। यही वजह थी कि उनका लेखन लोगों के करीब का लेखन था।

यह बात इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजेश कुमार गर्ग ने कहीं। डॉ. गर्ग विश्वविद्यालय के ही सेंटर ऑफ़ मीडिया स्टडीज और सेंटर फॉर थियेटर एंड फिल्म के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित मुंशी प्रेमचंद जयंती कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

 डॉ. गर्ग ने कहा कि प्रेमचंद हमें अपनी आवाज बुलंद करने का आत्मबल देते हैं और समाज के सच को सच की तरह प्रस्तुत करने का सलीका सीखते हैं। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की कहानियों या उपन्यासों के किरदारों का गंभीरता से अध्ययन किया जाए तो यह सहजता से समझ में आ जाएगा कि किस तरह वे अपने पात्रों को बड़ा होते देखना चाहते थे। प्रेमचंद ऐसे बिरले साहित्यकार थे, जो अपने लेखन में केवल समस्या को ही नहीं बताते थे, बल्कि उसका समाधान भी सुझाते थे। यही बात उन्हें सबसे अलग और महान बनाती है।

कार्यक्रम में उपस्थित मुंशी प्रेमचंद की प्रपौत्री सुश्री संयुक्ता राय ने कहा कि जब मैंने प्रेमचंद को पढ़ना शुरू किया तुम मुझे लगा कि वे औपनिवेशिक भारत के अकेले ऐसे लेखक थे, जो पूरी मानवता के विकास की बात कर रहे थे। वे एक सामाजिक मसीहा थे। इसलिए नहीं कि वे गरीबी और शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे, बल्कि इसलिए कि वे अपने समय के समाज का सच बिना किसी भय और झिझक के सबके सामने रख रहे थे। उन्होंने प्रेमचंद के पुत्र और अपने बाबा श्रीपति राय के कला प्रेम व उनके सरस्वती प्रेस के संबंध में भी कई रोचक संस्मरण सुनाए।

प्रारंभ में बीज वक्तव्य देते हुए सेंटर ऑफ़ मीडिया स्टडीज के कोर्स कोआर्डिनेटर डॉक्टर धनंजय चोपड़ा ने कहा कि प्रेमचंद जहां एक और हिंदी साहित्य के पुरोधा हैं, वहीं वही उनका दखल अपने समय की पत्रकारिता और सिनेमा में भी रहा है। जाहिर है कि वे एक साथ इन तीनों विधाओं को बहुत कुछ देने की क्षमता रखते हैं। यही वजह है कि जन-आकांक्षाओं और जन-स्वप्नों का संविधान लिखने वाले लेखक के रूप में प्रेमचंद को हर मीडिया विद्यार्थी को पढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह अनायास नहीं है कि आज कई विधि विश्वविद्यालयों में प्रेमचंद की पंच परमेश्वर जैसी कई कहानियां पढ़ाई जा रही हैं।

अंत में दोनों सेंटर की कोआर्डिनेटर डॉ विधु खरे दास ने कहां की आज की पीढ़ी को प्रेमचंद जैसे लेखकों से परिचित कराना एक बड़ी जिम्मेदारी को निभाने जैसा है। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह क्रम जारी रहेगा।

कार्यक्रम का संचालन डॉ रितु माथुर ने और आभार ज्ञापन एस के यादव ने किया। इस अवसर पर विद्यासागर मिश्र, सचिन मेहरोत्रा, जितेंद्र सिंह यादव, प्रमोद कुमार शर्मा सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित थे।

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