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शिवाजी और औरंगजेब के बारे में इतिहास क्या कहता है?

“औरंगज़ेब विवाद का इतिहास से क्या लेना?”

प्रो. हेरंब चतुर्वेदी

पिछले दिनों मुगल बादशाह औरंगजेब को लेकर देश के भीतर काफी राजनैतिक सरगर्मी रही। औरंगजेब के बारे में विभिन्न तरह की बातें कही जा रही थीं। मध्यकालीन इतिहास के विशेषज्ञ  प्रो. हेरंब चतुर्वेदी लंबे समय तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्रोफेसर के रूप में जुड़े रहे हैं। इस विवादास्पद विषय पर आधिकारिक जानकारी के लिए उनसे बातचीत की गई। प्रस्तुत है उनके साथ हुए वार्तालाप के प्रमुख अंश :

औरंगजेब को लेकर पिछले लंबे समय से विवाद चल रहा है। विशेषकर शिवाजी और औरंगजेब के कथानक पर बनी एक फिल्म को लेकर। आपके अनुसार शिवाजी और औरंगजेब के बारे में इतिहास क्या कहता है?

औरंगजेब-शिवाजी पर आई फिल्म के बाद जो विवाद चल रहा है, उसका इतिहास से कोई लेना देना नहीं है। संदर्भ से काटकर कोई बात कही जाती है, तो उसका अनर्थ हो जाता है। मराठों से औरंगजेब की लड़ाई हिंदू-मुसलमान की नहीं, बल्कि एक राजा की दूसरे राजा से लड़ाई थी। औरंगजेब ने वर्ष 1658 से वर्ष 1707 तक शासन किया और मुगल साम्राज्य को सबसे बड़े विस्तार तक पहुंचाया। शिवाजी मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे, जिन्होंने मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और वर्ष 1674 में राजा के रूप में ताज पहना। दोनों के बीच लंबे समय तक शत्रुता रही, जिसमें शिवाजी ने कई बार मुगल शक्ति को चुनौती दी, जैसे-1664 और 1670 में सूरत बंदरगाह की लूट।

शिवाजी की रहस्यमई मौत को लेकर भी कई तरह की बातें कही जा रही हैं।

शिवाजी की मृत्यु 3 अप्रैल, 1680 को रायगढ़ किले में हुई। संभावित कारणों में रक्तस्रावी डिसेंटरी, एंथ्रेक्स या बुखार शामिल हैं। ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि शिवाजी की मृत्यु की खबर दिल्ली पहुंचने पर औरंगजेब ने उनकी मृत्यु पर खुशी जताई थी, लेकिन साथ ही उनकी नेतृत्व क्षमता को स्वीकार करते हुए औरंगजेब ने कहा था, ‘शिवाजी एक महान कप्तान थे और एक नए राज्य को स्थापित करने की उदारता रखने वाले एकमात्र व्यक्ति थे। मेरी सेनाओं ने उनके खिलाफ 19 वर्षों तक संघर्ष किया, फिर भी उनका राज्य हमेशा बढ़ता रहा।”

संभाजी को औरंगजेब ने काफी प्रताड़ित किया था?

संभाजी को 1 फरवरी, 1689 को संगमेश्वर में मुगल सेनापति मुकर्रब खान के नेतृत्व में मुगल सेना ने कब्जा लिया था। संभाजी और अन्य कैदियों को अकलूज ले जाया गया, जहां औरंगजेब मौजूद था। औरंगजेब ने हामदुद्दीन खान को आदेश दिया कि कैदियों को जंजीरों और हथकड़ियों में लाया जाए। उन्हें बहादुरगढ़ में कैद किया गया, जहां रुहिल्ला खान को मराठा खजाने की जानकारी निकालने के लिए भेजा गया। संभाजी ने जानकारी देने से इनकार किया तो संभाजी और कावी कलाश की जीभ काट दी गई, आंखें गर्म लोहे से जला गई। अंततः, 11 मार्च 1689 को तुलापुर में कोरेगांव पर भिमा नदी के किनारे उन्हें क्रूर तरीके से मार दिया गया। 

औरंगजेब के बारे में कहते हैं कि वह अपने ही भाइयों का सगा नहीं हुआ तो अवाम का क्या होगा?

मुगल साम्राज्य की उत्तराधिकार परंपरा में बड़े पुत्र को सत्ता देने का चलन नहीं था, जिसके कारण भाइयों के बीच शक्ति संघर्ष और हत्या की घटनाएं आम थीं। शासन के दौरान भाइयों की हत्या मुख्य रूप से शाहजहां और औरंगजेब के साथ जुड़ी हुई है, जबकि अकबर के पुत्र जहांगीर ने अपने भाइयों की हत्या नहीं की।

शाहजहां ने सिंहासन पर कब्जा किया तो इस दौरान उन्होंने अपने भाई शहरयार मिर्जा को मारने का आदेश दिया, जो एक संभावित प्रतिद्वंद्वी था। शाहजहां ने भतीजों दावर और गर्शस्प (खुसरो मिर्जा के पुत्र) और अपने चचेरे भाइयों तहमुरस और होशंग (दानियाल मिर्जा के पुत्र) को भी उसी दिन मार डाला, ताकि किसी भी चुनौती को खत्म किया जा सके। औरंगजेब ने उत्तराधिकार युद्ध में दारा शिकोह, शाहशुजा, और मुराद बख्श के खिलाफ लड़ाई लड़ी जबकि अकबर के पुत्र जहांगीर ने अपने भाइयों की हत्या नहीं की। उनके सारे भाई परवेज, खुसरो और दानियाल या तो पहले से मर चुके थे या उनकी हत्या कर दी गई थी।

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