राम नाईक की लखनऊ यात्रा
डॉ दिलीप अग्निहोत्री
भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद पहली बार पूर्व राज्यपाल लखनऊ आये। दो दिन के उनके प्रवास में अतीत के कई प्रसंग ताजा हुए। उन्होंने राज्यपाल के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कुष्ठ पीड़ितों के कल्याण हेतु सुझाव दिए थे। इनपर अमल हुआ। योगी आदित्यनाथ ने कुष्ठ पीड़ित परिवारों को आवास आवंटन हेतु आयोजित समारोह के लिए राम नाईक को विशेष रूप से आमंत्रित किया था। विधायक,सांसद और केंद्रीय मंत्री के रूप में राम नाईक स्वयं भी कुष्ठ रोगियों की सुविधा हेतु कार्य करते थे। यही कारण था कि उन्होंने लखनऊ के इस कार्यक्रम में आने का आमंत्रण स्वीकार किया।
राज्यपाल के रूप में उन्होंने डॉ आंबेडकर के सही नाम लिखने का प्रस्ताव दिया था। कुलाधिपति के रूप में एक विश्वविद्यालय के सही नाम लिखने का निर्देश भी दिया था। ऐसे में वह लखनऊ के आम्बेडकर महासभा द्वारा उनका सम्मान किया गया। राज्यपाल के रूप में राम नाईक का पत्रकारों के साथ बहुत आत्मीय संबन्ध था। शायद यही कारण था कि उन्होंने लखनऊ यात्रा में पत्रकारों से मिलने का निर्णय किया।
वह अटल बिहारी बाजपेयी की कैबिनेट में थे। यह भी उनके लिए सन्योग था कि वह अटल जी की जयंती की पूर्व संध्या पर लखनऊ में थे। उन्होंने इस अवसर पर अटल जी का स्मरण किया। उनके अनेक संस्मरण सुनाए।
मुख्यमंत्री ने कहा भी कि पूर्व राज्यपाल राम नाईक जी ने कुष्ठ रोगियों के कल्याण के लिए कार्य करने हेतु प्रेरित किया। इस कार्यक्रम में पांच सौ कुष्ठ रोग से प्रभावित विशिष्ट दिव्यांगजन को आवास की चाभी वितरित की गई। योजना के तहत कुल दो हजार आठ सौ छांछठ कुष्ठ रोग से प्रभावित विशिष्ट दिव्यांगजन को लाभान्वित किया गया है। राम नाईक ने इस प्रयास को अटल बिहारी बाजपेयी की जयंती पर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि बताया। उन्होंने कहा- कुष्ठ रोग प्रभावितों को सरकारी योजनाओं से जोड़ने का प्रयास उन्होंने पहली बार महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद शुरू किया था। क्योंकि उन्हें कुष्ठ रोग प्रभावित दो बूथों पर पांच मिले थे। उनके सुझाव पर पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने कुष्ठ रोग प्रभावितों के लिए ढाई हजार की पेंशन शुरू की थी। योगी आदित्यनाथ आवास मुहैया करवा रहे हैं। इस योजना को शहर में भी लागू किया जाना चाहिए। उनके बच्चों की पढ़ाई के लिए बिहार की परवरिश योजना की तर्ज पर योजना शुरू की जा सकती है। महाराष्ट्र की तरह नगर निगम भी अतिरिक्त पेंशन दे सकती हैं।
राम नाईक को आंबेडकर महासभा में बुद्ध की प्रतिमा एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि विकास की मुख्य धारा से छूट गए लोगों को तरक्की के रास्ते पर लाना होगा। राम नाईक ने भाजपा प्रदेश मुख्यालय में पत्रकारों से अपने विचार साझा किए। राज्यपाल के रूप में अपने कार्यो और यहां के लोगो के सहयोग पर सन्तोष व्यक्त किया। नाईक के कार्यकाल में राजभवन के दरवाजे आमजन के लिए भी खुलने लगे थे। उन्होंने राज्यपाल को महामहिम कहने पर रोक लगाई थी। इसी मानसिकता के अनुरूप बदलाव दिखाई दिए। चरैवेति-चरैवेति उनकी पुस्तक ही नही जीवनशैली और कार्यशीली थी। यह अब तक ग्यारह भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है। उनके सुझाव से ही उत्तर प्रदेश ने पहली बार अपना स्थापना दिवस मनाया। वैसे यह सुझाव उन्होंने पिछली सपा सरकार के दौरान दिया था, लेकिन उसने इस सलाह को महत्व नहीं दिया। वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस पर अमल किया। इसे प्रदेश के आर्थिक और सांस्कृतिक विकास से जोड़ दिया गया। इसके पहले नाईक राजभवन में महाराष्ट्र दिवस आयोजित कर चुके थे।लोकमान्य तिलक ने लखनऊ में ही स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार का ऐतिहासिक नारा दिया था। यह नारा सर्वप्रथम उन्होंने कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में दिया था। इस नारे को सभी लोग जानते हैं, लेकिन राम नाईक का ध्यान इसके शताब्दी वर्ष पर गया। इसे भव्यता के साथ मनाने का सुझाव भी राम नाईक ने दिया था। योगी आदित्यनाथ ने इस पर अमल किया। खासतौर पर युवावर्ग को ऐसे आयोजनों से प्रेरणा मिलती है। भारत में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का मुख्य समारोह राजभवन में हुआ। ऐसा आयोजन करने वाला यह देश का पहला राजभवन बना।
नाईक ने विधानपरिषद के लिए मनोनीत होने वालों सदस्यों के संदर्भ में संविधान में उल्लिखित योग्यता को महत्व दिया था। यह भी एक नजीर के रूप में सदैव स्थापित रहेगा। इसी प्रकार लोकायुक्त की नियुक्ति में भी उन्होंने सजगतापूर्वक प्रक्रिया का पालन किया था। इसमें यह तय हुआ कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश के विचार को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।उच्च शिक्षा में सुधार की दिशा में भी राम नाईक ने अनेक प्रयास किये। सभी विश्वविद्यालयों में सत्र नियमित किये गए। परीक्षा की गुणवत्ता कायम की गई। प्रत्येक विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह आयोजित होने लगे। कुलपतियों के वार्षिक सम्मेलनों की शुरुआत भी राम नाईक ने की जिसके सकारात्क परिणाम रहे हैं। इसमें उल्लेखनीय यह है कि वह लोगों के साथ अत्यंत आत्मीयतापूर्वक मुलाकात करते हैं। यह उनके सहज स्वभाव में शामिल है। मुम्बई में सक्रिय राजनीति के समय से ही यह उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया था। तब लोग जानते थे कि राम नाईक यदि मुम्बई में हैं, तो सुबह उनसे मुलाकात हो जाएगी। वह न केवल लोगों की समस्याएं सुनते थे, बल्कि अपनी पूरी क्षमता से उसके समाधान का प्रयास भी करते थे। राज्यपाल बनने के बाद उन्होंने राजभवन में भी अपने इस स्वभाव में बदलाव नहीं किया था। अब भाजपा सदस्य के रूप में भी वह समाजसेवा में सक्रिय है। मुंबई में एक ही विधानसभा क्षेत्र से तीन बार व लोकसभा क्षेत्र से पांच बार चुनाव जीतने का उनका रिकार्ड कायम है,लेकिन अब वह चुनावी राजनीति से अलग है।