Home / Slider / “योगी आदित्यनाथ का उभरता उत्तर प्रदेश”: डाॅ. उदय प्रताप सिंह

“योगी आदित्यनाथ का उभरता उत्तर प्रदेश”: डाॅ. उदय प्रताप सिंह

योगी आदित्यनाथ का उभरता उत्तर प्रदेश

डाॅ. उदय प्रताप सिंह
योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के अनोखे मुख्यमंत्री हैं। वह ‘योगी’ नाम से जाने जाते हैं। उत्तर प्रदेश जितना ही सुंदर है यहाँ समस्याओं का उतना ही घना जाल फैला है। कांग्रेस, सपा, बसपा और कुछ मामलों में भाजपा की पिछली सरकार भी इन समस्याओं की अनदेखी करती रही है। सपा-बसपा जैसे क्षेत्रीय दलों ने प्रदेश का सबसे अधिक अहित किया है। सामाजिक सौमनस्य को तोड़ा है। जातिवाद, तुष्टीकरण और भ्रष्टाचार में डूबे ये दल अपने कई बार के कार्यकाल में प्रदेश का अपेक्षित विकास नहीं कर सके। विकास का ग्राफ निरंतर गिरता ही गया। जोड़-तोड़, आरक्षण, पिछड़ावर्ग, अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यक जैसे घिसे-पिटे मुद्दों पर इन सरकारों ने प्रदेश के विकास को ही ठप्प कर दिया था। कोई अल्पसंख्यकों को भारी मात्रा में टिकट देकर स्वयं पीठ थपथपाता था तो कोई पिछड़ों के उत्थान पर ‘महाकाव्य’ लिखता रहा है।

विगत पन्द्रह-बीस वर्षों से निष्क्रियता की राजनीति विकास पर भारी थी। इन्हीं वर्षों में दक्षिण भारत के कई राज्य अपेक्षाकृत आगे निकल गये। उत्तर प्रदेश से उद्योग-धन्धों का पलायन होने लगा। धन उगाही, जातिवाद का नंगा-नाच और लालफीताशाही ने प्रदेश को पीछे कर दिया। जाति-व्यवस्था भारत की सामाजिक सच्चाई हो सकती है; पर जातिवाद क्षेत्रीय दलों की देन है। इस समस्या से ग्रस्त प्रदेश की चीनी मिलें भी इस पर परवान चढ़ने लगीं। तीनों पार्टियो के कार्यकाल में न न्याय दिखा और न कानून-व्यवस्था। एक ही वर्ग का हर जगह वर्चस्व था।ं रोजगार के लिए संघर्षरत युवकों को इसके लिये न्यायालय का दरवाजा तक खटखटाना पड़ा।

युवा वर्ग का यह आक्रोश इन दलों को बुरी तरह पराजित कर सत्ता की बागडोर ऐसे हाथों में सौंपा जिसे ‘योगी आदित्यनाथ’ कहते हैं। राजनीति में वह नये नही हैं। इसके पूर्व चार-पाँच बार सांसद रह चुके हैं। अब तक उनकी यही पहचान है कि जो कहते हैं वह करते हैं, पर डगर बहुत कठिन है। इस कठिन डगर को मुख्यमंत्री ने चुनौती के रूप में स्वीकार किया है। अनेक समस्याओं से संघर्ष करते हुए उन्होने इस डगर को सरल बना दिया है। इस संघर्ष में युवाओं का समर्थन उन्हें मजबूत बनाता रहा है। युवाओं की शिकायत का परिणाम अब पारदर्शी रूप में दिखने लगा है।

योगमार्ग में योगी की साधना का लक्ष्य जीव का ब्रह्म से साक्षात्कार होता है। वह लोक से विरक्त परलोक की साधना करता है, सबद की तलाश में माया से मुक्त होकर अलख निरंजन बन जाता है। ब्रह्मचर्य-साधना की युगत में रहता है। योगी होने के नाते मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की ये प्राथमिकताएँ अवश्य होंगी; पर अब वे बदले रूप में दिखेंगी। अब उनके ध्यान में परब्रह्म से अधिक उसकी सृष्टि दिखेगी, गरीब-गुरबा और किसान दिखेंगे, अन्याय से पीड़ित लोग दिखेंगे, युवकों का एक बड़ा वर्ग दिखेगा जो व्यवस्था के परिवर्तन का मंसूबा रखता है। अब उन्हें बेबस लोग दिखेंगे जो अपने अधिकारों से वंचित हैं, वे महिलायें दिखेंगी जिन्हें अपनी देह की रक्षा में अपहरण के भय से पढ़ाई व नौकरी दोनों छूट जाती है। वे मूक गाएँ दिखेंगी जो जिह्वा के स्वाद की बलिबेदी पर कत्ल कर दी जाती हैं, कमजोर वर्ग के वे लोग दिखेंगे जो बाहुबलियों के आगे विवशता में सब कुछ गवाँ बैठते हैं।

ये चीजें मात्र इस इसलिए नहीं दिखेगी कि योगी जी मुख्यमंत्री की बागडोर सँभाले हैं, बल्कि इसलिए भी दिखेंगी कि उनके पूर्ववर्ती महंतों ने समाजसेवा को आजादी के पहले से ही अपना ध्येय बना रखा था। योगी जी को समाज सेवा की राजनीति विरासत में मिली है। आज उनकी राजनीतिक शैली स्वयं एक बिरासत बनती जा रही है। राम और रोटी, धर्म और राजनीति, व्यक्ति और समाज, योग और भौतिक कर्म में वह बखूबी संगति बैठा लेते हैं। ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ व अवेद्यनाथ की समाज सेवा का संस्कार योगी जी की कार्यशैली में से दिखता है। तभी तो सनातनी, किसान, गरीब, अध्यापक, व्यापारी, मुस्लिम और नारी तक में उनके प्रति भरोसा जगा है, उल्लास और उत्साह बढा है, निर्भयता और आत्मविश्वास का विकास हुआ है। उसका एक बड़ा कारण है बाहुबलियों व अपराधियों पर आवश्यक नियंत्रण, कार्य में तत्परता और समान रूप से सरकारी सुविधाओं का लाभ मिलना। कोरोना व बाढ की विभीषिका में इसका सबसे अच्छा उदाहरण मिलता है।

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के पहले विज्ञापनों में उत्तर प्रदेश अत्यंत विकसित राज्य के रूप में दिखाया जाता था। पर उनके मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही अनगिनत समस्याएँ टिड्डी दल की तरह आसमान में छा गई हैं। वे विज्ञापन दिन के सपने जैसे थे जो जगते ही काफूर हो जाते हैं। उत्तर प्रदेश की सबसे विकराल समस्या जातिवादी मानसिकता है। जाति के मुद्दे पर शिक्षित-अशिक्षित की बहस का स्तर एक जैसा होता है। पूर्व सरकार में नौकरशाही का मन भी बँट चुका था। नौकरशाह और कर्मचारियों में इसका जबरदस्त असर था। किसी भी शासक के लिए यह एक विषम स्थिति हो सकती है। मुख्यमंत्री योगी ने इसे ‘सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास’, के अस्त्र से पराजित किया।

शिक्षा समाज की रीढ़ है। उत्तर प्रदेश में शिक्षा की दुरवस्था किसी से छिपी नही है। प्राइमरी विद्यालयों की दशा अत्यंत शोचनीय थी। अध्यापक हैं, पर छात्र नहीं। छात्र उपस्थित तो अध्यापक नदारत। छात्र गली कूचों में खुले काॅन्वेन्ट टाइप स्कूलों में जाने लगे थे। बी. टी. सी. में उन्हीं का प्रवेश होता था जो पहुँच और रसूख वाले होते थे। शहरों में तो कम पर उससे कई गुना अधिक देहातों में कुकुरमुत्तों की तरह फैली शिक्षण संस्थाएँ नकल पर जीवित थीं। वहाँ ‘शिक्षा’ और ‘परीक्षा’ शब्द अपना अर्थ खो बैठा था। पी. जी. काॅलेज खोलने की बहार थी; पर कौन पढ़ायेगा इसकी चिंता न पूर्ववर्ती सरकार को थी न प्रबंधक को। महाविद्यालयों में पाँच प्रतिशत ही योग्य शिक्षक थे- शेष उधार पर या ठेके पर कार्यरत थे। एक ही शिक्षक कई महाविद्यालयों में कागज पर नियुक्त था। उच्च शिक्षा में प्राचार्यों के पद दशकों से खाली पड़े थे। 50 प्रतिशत महाविद्यालय शिक्षक विहीन थे। फिर भी नये डिग्री काॅलेज प्रतिदिन खुल रहे थे। विश्वविद्यालय में भी यही स्थिति थी। वहाँ तो विभिन्न दलों में बँटे प्राध्यापक वेतन के रूप में मोटी रकम लेते हैं, पर प्रवक्ता उन पार्टियों के होते थे जहाँ उनकी जातीय एवं दलीय निष्ठा थी। इतनी अराजकता में कैसे चलेंगे शिक्षा के मंदिर? उच्च शिक्षा में मात्र पाँच-साढ़े पाँच सौ स्थायी शिक्षक शेष थे। स्थायी प्राचार्य तो खोजने पर भी नहीं मिलते थे। एक तिहाई अध्यापक जून में सेवा-निवृत्त हो जाते थे। योगी जी के समक्ष ये कठिन प्रश्न थे। उन्होंने अनवरत प्रयास कर शिक्षा को गतिमान किया। अधिकांश प्राध्यापक व प्राचार्य नियुक्ति पा चुके हंै। विश्वविद्यालयों में नियुक्तियाँ हो रही हैं। प्राथमिक विद्यालयों में भी अभियान तेजी से चल रहा है।

विद्यालयों-महाविद्यालयों कीे मान्यता मिलते ही विधायक निधि की बंदरबाट शुरू हो जाती थी। पाँच वर्ष में ठेकेदारनुमा प्रबंधतंत्र शिक्षा माफिया के रूप में अपना काॅकस बना लेते थे। धुआँधार नकल! जिसकी लाठी उसकी भैंस। पूर्वी उत्तर प्रदेश की दशा तो सबसे अधिक चिंतनीय थी। गाजीपुर जनपद उसमें पहले नम्बर पर था। बोर्ड की परीक्षाएँ प्रारंभ होते ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छात्रों के झुण्ड के झुण्ड सुदूर अँचलों में स्थित विद्यालयों के परीक्षा केन्द्रों पर दिख जाते थे। इनमें कुछ ऐसे प्रबंधतंत्र हैं जो शाम को सपा तो सबेरे भाजपा में दिख जाते थे। यह धंधा वर्षों से चल रहा था। करोड़ों की कमाई हो चुकी थी। स्कूल प्रबंधकों नहीं ठेकेदारों के हवाले हो चुके थे। भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था का ग्राफ तो इतना गिर गया था कि पूर्व सरकार के मंत्री बलात्कार और भ्रष्टाचार के अपराध में जेल की हवा खा रहे हैं। पूरे प्रदेश की सड़कें टूटी थीं। तहसील मुख्यालय की सड़कें एक दशकों तक वैसी की वैसी पड़ी रहती थीं। अब नजारा बदल चुका है। गलचैर करने वाले अध्यापक बच्चों के बीच हैं। उनकी निगरानी होने लगी है। नकल माफिया डरे हुए हैं। भुतहे विद्यालयों में चहल पहल बढ़ गई है। शिक्षा का रथ तेजी से आगे बढ़ रहा है। पर, अभी बहुत कुछ करना शेष है।

पूर्व सरकारों में कानून व्यवस्था का अता-पता नहीं था। किसी महिला का अपहरण हो सकता था, पैसे वाले को लूटा जा सकता था। हत्या हो सकती थी। जमीन पर जबरन कब्जा का अभियान चलता था। शासन की कोई हनक नहीं थी। भ्रष्टाचार से मिली आय का आपस में बंदरबाँट चलता था। उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश तो बनाना दूर भ्रष्टाचार से उसकी चूलें हिल गई थीं। सीमेन्ट फैक्ट्रियाँ बेचीं जा रही थीं। चीनी मिलें बिक चुकी थीं। प्रदेश उद्योग विहीन हो गया था। नये उद्योग-धन्धे की शुरुआत तक नहीं हुई। क्या विज्ञापन से उत्तर प्रदेश बन सकेगा? किसानों का गन्ना भुगतान वर्षों से बकाया पड़ा था। उनकी बेचारिगी कौन समझेगा।

इसी प्रकार बनारस, गोरखपुर, खलीलाबाद, मऊ, धामपुर में वस्त्र उद्योग, कानपुर-आगरा में चमड़ा उद्योग, मिर्जापुर में बर्तन उद्योग, प्रायः बंद हो चले थे। पर्यटन में कमीशनखोरी, असुविधा और बाहुबली हाॅवी थे। मेरठ में खेलकूद के सामान डम्प पड़े थे। उधार, ऋण और अनुदान से चल रही सरकारों के प्रति लोगों का विश्वास टूट चुका था। सीधे-सरल दिखने वाले मुख्यमंत्री धोबीपाट उसी पर आजमाने लगे जिसने उन्हें राजनीति का ककहरा सिखाया था। सब मिलाकर एक अराजक स्थिति थी। ऐसी परिस्थिति में उत्तर प्रदेश को सँभालना आग पर चलना था। सरकार की अग्निपरीक्षा थी। मात्र एक ‘एक्सप्रेस वे’ कीे डींगे हाँकने से क्या-क्या होता? जहाँ नीति, नीयत और नैतिकता में ही खोट हो।

योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री हैं जो ओजस्वी-तेजस्वी और तपस्वी हैं। जो कहते हैं उसे कार्यरूप में बदलते हैं। उनके संतुलित वक्तव्य, दूरदर्शी नीतियाँ, बेवाक, निर्णय प्रभाव पैदा करने वाली कार्यप्रणाली और आकर्षक नेतृत्व से प्रदेश में एक भरोसा जगा है कि विकास होगा, सौहार्द बढ़ेगा और तमाम अनुत्तरित प्रश्न अपना माकूल जवाब पा सकेंगे। जन समर्थन इस पर मुहर लगा रहा है।

श्रीरामजन्मभूमि पर मंदिर बनना, बूचड़खानों को बंद करना, कानून-व्यवस्था, गोकशी पर प्रतिबंध, स्कूल-काॅलेजों में मनमानी फीस से राहत और तीन तलाक का खात्मा मुस्लिम महिलाओं की पीड़ा को कम करेगा। किसानों को न्याय मिलने लगा है महिलाएँ निर्भय होकर जीवन जी रही हैं। योगी जी ‘योगः कर्मसु कौशलम्’ के उपासक हैं। उनकी नीयत, नीति और नैतिकता पारदर्शी है। उनके निर्णयों में उनका आईने की तरह व्यक्तित्व झाॅकता है। उनकी कार्यप्रणाली में हनक है। प्रदेश में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। कानून व्यवस्था से जनता खुश है, बाहुबलियों की मलामत से सीधे-सादे लोग भयमुक्त हो गये हैं, प्रदेश में निवेश की गति बढ़ गई है, माहौल शांत है, दंगा बीते दिनों की बात हो गई है, व्यापारी नौजवान किसान राहत की साँस ले रहे हैं। गरीबों को आवास और गैस कनेक्सन भारी संख्या में मिल चुके हैं। पूर्वांचल ‘एक्सप्रेसवे,’ ‘गंगा एक्सप्रेसवे’, बुंदेलखण्ड एक्सप्रसवे जैसी विश्वस्तरीय सड़को के निर्माण से किसानों के उत्पाद अच्छे मूल्य पर बिक रहे हैं। चार-पाँच वर्षों का समय इतनी लुंज-पुंज व्यवस्था को ठीक करने में बहुत कम है; पर योगी आदित्यनाथ अपनी पूरी क्षमता के साथ शुद्ध नीयत, नीति और कर्मठता से प्रदेश को नई पहचान देने में संलग्न हैं।

लेखक डाॅ. उदय प्रताप सिंह हिंदुस्तानी अकादमी प्रयागराज के अध्यक्ष हैं।

बी. एफ. 67एस. 13,
हरनारायण विहार सारनाथ,
वाराणसी-221007
मो0-9415787367

Check Also

NSS AU: “होलिका दहन पर हरे वृक्षों को न काटें”

इलाहाबाद विश्वविद्यालय परिसर, राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई संख्या 5 एवं 10 के सात दिवसीय विशेष ...