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सुप्रीम कोर्ट ने किन्तु परन्तु की गुंजाइश नहीं छोड़ी

संविधान पीठ ने माना कि देवता एक कानूनी व्यक्ति हैं। राम की ऐतिहासिकता और अयोध्या में उनके जन्म को लेकर कोई विवाद नहीं है।

विधि विशेषज्ञ जे.पी. सिंह की कलम से

अयोध्या भूमि विवाद में उच्चतम न्यायालय ने बाबरी मस्जिद के विवाद से लेकर बाबरी विध्वंस तक मुसलमानों के साथ हुए अन्याय पर कड़ी टिप्पणियाँ की हैं, मगर विवादित भूमि पर मुस्लिम पक्ष को मालिकाना का हक नहीं दिया। क्योंकि जहाँ मुस्लिम पक्ष यह सिद्ध नहीं कर सका कि नजूल के रूप में राजस्व अभिलेखों में दर्ज़ विवादित भूमि उसकी मिल्कियत है, वहीं हिन्दू पक्ष भी अपना मालिकाना नहीं प्रमाणित कर पाया।

ऐसी स्थिति में क्या उच्चतम न्यायालय नजूल भूमि उत्तर प्रदेश सरकार की दे देता और जाहिर है सरकार क्या करती? उच्चतम न्यायालय ने इसीलिए किसी तरह के किंतु-परंतू की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए आदेश दिया कि अयोध्या की विवादित जमीन रामलला विराजमान को दी जाये तथा अयोध्या में ही किसी प्रमुख स्थान पर मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का आदेश दिया । इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ने मंदिर-मस्जिद दोनों का भविष्य तय कर दिया और अयोध्या का सदियों पुराना भूमि विवाद लंबी सुनवाई और कानूनी जिरह के बाद इस फैसले से निपटा दिया है।

संविधान पीठ ने कहा कि बाबरी मस्जिद को 1934 में नुकसान पहुंचना, 1949 में इसको अपवित्र करना, जिसकी वजह से इस स्थल से मुसलामानों को बेदखल कर दिया गया और अंततः 6 दिसंबर 1992 को इसको ढहाया जाना क़ानून के नियम का गंभीर उल्लंघन है।संविधान पीठ ने कहा कि नमाज पढ़ने और इसकी हकदारी से मुस्लिमों का बहिष्करण 22/23 दिसंबर 1949 की रात को हुआ जब हिन्दू देवताओं की मूर्ती वहां रखकर मस्जिद को अपवित्र किया गया। मुसलामानों को वहां से भगाने का काम किसी वैध अथॉरिटी ने नहीं किया बल्कि यह एक भली प्रकार सोची समझी कार्रवाई थी जिसका उद्देश्य मुसलामानों को उनके पूजा स्थल से वंचित करना था।

संविधान पीठ ने कहा कि जब सीआरपीसी, 1898 की धारा 145 के तहत कार्रवाई शुरू की गई और अंदरूनी आंगन को जब्त करने के बाद रिसीवर नियुक्ति किया गया और तब वहां हिन्दू मूर्तियों की पूजा की अनुमति दी गई। इस मामले के लंबित रहने के दौरान, मुस्लिमों के इस पवित्र स्थल को जानबूझकर ढहा दिया गया। मुस्लिमों को गलती से उनके उस मस्जिद से वंचित कर दिया गया जिसे 450 साल से भी पहले बनाया गया था। 6 दिसंबर 1992 को इस मस्जिद को ढहा दिया गया। उच्चतम न्यायालय के इस स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने के आदेश के बावजूद इस मस्जिद को गिरा दिया गया।मस्जिद को गिराकर इस्लामिक संरचना को नष्ट करना क़ानून के राज का घिनौना उल्लंघन था।

इसलिए इस विवादित भूमि को यदि उच्चतम न्यायालय नजूल के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार को सौंप देता तो इसके इस्तेमाल को लेकर यदि राजनितिक और भावनात्मक निर्णय राज्य सरकार द्वारा लिए जाते तो विवादों का पिटारा खुल जाता।सम्भवतः इसलिए उच्चतम न्यायालय ने जहाँ निर्मोही अखाड़े सुन्नी वक्फ बोर्ड और राम जन्मभूमि न्यास को जमीन का मालिकाना हक नहीं दिया है। रामलला (को विवादित जमीन सौंपते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि जहां बहुत से हिंदू मानते हैं कि भगवान राम का जन्म हुआ था, उस जमीन पर मंदिर के निर्माण के लिए तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनाया जाना चाहिए लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इसके साथ ही साथ मस्जिद के निर्माण के लिए अयोध्या में किसी प्रमुख स्थान पर 5एकड़ जमीन के आवंटन का भी निर्देश दिया है।

संविधान पीठ के 726 वें पैरे के अनुसार 1861,1893-फ़ैजाबाद ( अयोध्या )के वर्ष 1861 और 1893,94- और 1936-37 के के राजस्व बन्दोबस्त के अभिलेख उपलब्ध हैं। खसरा खतौनी खेवट और इन तीनों बन्दोबस्त के अभिलेख उपलब्ध हैं । नजूल भूमि का सर्वे रिपोर्ट 1931 भी उपलब्ध है। इन तीनों बन्दोबस्त और नजूल सर्वे रिपोर्ट में विवादित भूमि को कहीं जन्म स्थान तो कहीं रामजन्म भूमि के रूप में दर्ज़ किया गया है।

उच्चतम न्यायालय ने इसीलिए किसी तरह के किंतु-परंतू की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए आदेश दिया कि अयोध्या की विवादित जमीन रामलला विराजमान को दी जा रही है। इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ने मंदिर-मस्जिद दोनों का भविष्य तय कर दिया और अयोध्या का सदियों पुरानाभूमि विवाद लंबी सुनवाई और कानूनी जिरह के बाद इस फैसले से निपटा दिया है।

अब इस फैसले की आलोचना इस बात के लिए की जाय की जब किसी का भी मालिकाना हक नहीं है तो रामलला को ही विवादित जमीन क्यों दी गयी तो इसका जवाब यही है की यदि नजूल की जमीन को राज्य सरकार को दे दिया जाता तो जमीन राम जन्म भूमि न्यास को वो दे देती तो क्या अयोध्या मेंकिसी प्रमुख स्थान पर मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन मिलती ?इसके बाद विवाद अलग से उत्पन्न होता। जब विवादित स्थल पर बाहर राम चबूतरे पर पूजा और ढांचे के भीतर न्म्ह्ज पढ़ी जाती थी और 1949 के बाद ढांचे के भीतर रामलला की मूर्तियाँ रख दी गयी और पूजा होने लगी तो इस विवाद के अंत के लिए इससे ज्यादा संतुलित फैसला सम्भव नहीं था।

संविधान पीठ के पास एक और विकल्प था। जब वह मान रहा है कि इस भूमि पर दोनों का क़ब्ज़ा था तो वह ज़मीन को दो बराबर हिस्सों में बाँट सकता था। एक दिशा में मंदिर बनता, दूसरी दिशा में मसजिद। ऐसा फ़ैसला आने पर भले ही किसी पक्ष को पूरी हार और पूरी जीत की वह अनुभूति नहीं होती जो आज हो रही है। लेकिन इससे विवाद स्थायी रूप से बना रहता जो आगे भी साम्प्रदायिक तनाव का कारण बनता।

अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के बीच जमीन विवाद पर संविधान पीठ ने अपने फैसले में पूरी विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक माना है। संविधान पीठ ने कहा कि विवादित जमीन पर रामलला का दावा मान्य है। इस जमीन पर मंदिर निर्माण की रूपरेखा तैयार करने के लिए केंद्र सरकार को तीन महीने में ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया गया है।केंद्र सरकार ही ट्रस्ट के सदस्यों का नाम निर्धारित करेगी।

संविधान पीठ ने मुस्लिम पक्ष और हिंदू पक्ष की तमाम दलीलों का जिक्र करते हुए एएसआई की रिपोर्ट्स को अहम माना है।संविधान पीठ ने भले जमीन का अधिकार रामलला विराजमान को दिया है, लेकिन इस मामले में पक्षकार हिंदू पक्ष के दावों को भी खारिज किया है। सबसे बड़ा झटका निर्मोही अखाड़े और राम जन्म भूमि न्यास को लगा है। संविधान पीठ ने अपने फैसले में ये भी स्पष्ट कर दिया कि भले ही एएसआई को मिला ढांचा गैर मुस्लिम था लेकिन मस्जिद बनाने के लिए किसी मंदिर को तोड़ने के कोई सबूत नहीं मिले हैं।

संविधान पीठ ने जन्मभूमि के प्रबंधन का अधिकार मांगने की निर्मोही अखाड़ा की याचिका खारिज कर दी। हालांकि संविधान पीठ ने केंद्र से कहा है कि मंदिर निर्माण के लिए बनने वाले ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को किसी तरह का प्रतिनिधित्व दिया जाए।इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में जमीन के तीन हिस्सों में से एक हिस्सा निर्मोही अखाड़े को भी दिया था। इस फैसले को ही उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी।

संविधान पीठ ने जन्मभूमि न्यास और निर्मोही अखाड़े को मालिकाना हक नहीं दिया। मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक जमीन केंद्र और योगी सरकार अयोध्या में देगी।फैसले में कहा गया है कि कि विवादित जमीन के बाहरी और आंतरिक हिस्से पर रामलला का हक है। इसके लिए एक ट्रस्ट का गठन किया जाए।. इस ट्रस्ट का गठन सरकार करेगी।फैसले में ने सरकार को ट्रस्ट में सदस्यों को चुने जाने का अधिकार दिया गया है।. तीन महीने में ट्रस्ट बनने के बाद विवादित जमीन और अधिग्रहित भूमि के बाकी हिस्से को सौंप दिया जाएगा। इसके बाद ट्रस्ट राम मंदिर निर्माण की रूपरेखा तैयार करेगा।

संविधान पीठ ने यह भी कहा कि 1992 में बाबरी मस्जिद को ढहाना और 1949 में मूर्तिया रखना गैरकानूनी था। संविधान पीठ ने अपने 1,045 पन्नों के फैसले में कहा है कि हिंदुओं का विश्वास कि भगवान राम का जन्म विध्वंस किए गए ढांचे में हुआ था, यह गैर-विवादित है।

संविधान पीठ द्वारा रामलला विराजमान को मालिकाना हक दिया गया। संविधान पीठ ने माना कि देवता एक कानूनी व्यक्ति हैं। राम की ऐतिहासिकता और अयोध्या में उनके जन्म को लेकर कोई विवाद नहीं है, लेकिन मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे ही जन्मस्थान होने की हिंदू पक्षकारों की दलील सरासर आधारहीन है।संविधान पीठ ने कहा कि ऐसा किया जाना जरूरी था, क्योंकि जो गलतियां की गईं, उन्हें सुधारना सुनिश्चित करना भी कोर्ट का उत्तरदायित्व है।संविधान पीठ ने यह भी कहा कि ‘सहिष्णुता तथा परस्पर सह-अस्तित्व हमारे देश तथा उसकी जनता की धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धता को पुष्ट करते हैं।

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