झंडा दिवस का सन्देश
डॉ दिलीप अग्निहोत्री
सेना झंडा दिवस का एक राष्ट्रीय सन्देश होता है। इससे कितनी धनराशि एकत्र होती है, यह अलग विषय है। मूल भावना अपने सैनिकों के साथ भावनात्मक लगाव का है। जो सीमाओं की रक्षा के लिए अपना जीवन दांव पर लगाते है, उनके प्रति केवल सरकार की ही जिम्मेदारी नहीं होती, बल्कि देश के प्रत्येक नागरिक को इसकी अनुभूति होंनी चाहिए।
पहले विद्यालयों में भी झंडा दिवस पर उत्साह दिखाई देता था। लेकिन पिछले कई वर्षों से इसमें कमी आई है। इस भावना को पुनः व्यापक बनाने की आवश्यकता है। बच्चों और युवा वर्ग के बीच इसको विशेष रूप में लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता है। शायद यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने झंडा दिवस पर अपने आवास पर एनसीसी के विद्यार्थी कैडेस को भी आमंत्रित किया। इस प्रकार वह देश के विद्यर्थियो को राष्ट्रीय सन्देश देना चाहते थे।
उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल ने भी इस संदर्भ में विद्यर्थियो का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि बच्चों को सैनिकों के संस्मरण सुनने चाहिए। संविधान के अनुसार राज्यपाल को राष्ट्रपति का प्रदेश में प्रतिनिधि माना जाता है। राष्ट्रपति स्वयं सेना के तीनों अंगों के कमांडर भी होते है। इस दृष्टि से भी राज्यपाल की औपचारिक गरिमा होती है। सशस्त्र सेना झण्डा दिवस पर राजभवन में होंने वाले कार्यक्रम का भी अपना महत्व होता है।
इस अवसर पर लखनऊ सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास की ओर से राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल को झण्डा पिन किया गया। राज्यपाल ने इस अवसर पर निदेशालय की स्मारिका तथा उत्तर प्रदेश सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास निधि की वेबसाइट का लोकार्पण किया और निधि में अंशदान भी दिया।
राज्यपाल ने कहा कि युद्ध में अपंग हुये सैनिकों को मंच प्रदान कर उनके अनुभव साझा करना चाहिए। क्योकि उनके अनुभव राष्ट्रभाव की प्रेरणा देने वाले होते है। सैनिकों और उनके आश्रितों की सहायता करना हम सबका कर्तव्य है। अंशदान से हम देश की सशस्त्र सेनाओं के सैनिकों एवं उनके परिवार के साथ भावनात्मक संबंध स्थापित कर सकते हैं। उनके प्रति कृतज्ञता और आत्मीयता भी प्रकट कर सकते हैं।