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मौलश्री:  ‘रामायण में वर्णित पेड़ पौधों के सामाजिक सरोकार’: भाग – छः 

प्रबोध राज चन्दोल 

संस्थापक, पेड़ पंचायत

 ‘रामायण में वर्णित पेड़ पौधों के सामाजिक सरोकार’

भाग – छः 

सुग्रीव से मिलने के लिए आगे बढ़ते हुए दोनों भाई पम्पा नामक पुष्करिणी के पश्चिमी तट पर स्थित शबरी के आश्रम पहुंचे। यह आश्रम बहुसंख्यक वृक्षों से घिरा हुआ था। मतंगवन में शबरी के आश्रम से निकलकर श्रीराम ने लक्ष्मण सहित ऋष्यमूक पर्वत जहां धर्मात्मा सुग्रीव निवास करते थे, की ओर प्रस्थान किया। मार्ग में फूलों से लदे नानाप्रकार के वृक्षों को निहारते हुए वे दोनों भाई पम्पा सरोवर के तट पर पहुंच गए।

उस सरोवर के तट पर-तिलक, अशोक, नागकेसर, वकुल तथा लसोड़े के वृक्ष शोभा बढ़ा रहे थे। उसका जल कमलों से आच्छादित था तथा वहाँ कुमुद, नीलकमल, अरविन्द, उत्पल, पद्म तथा अन्य सुगंधित जाति के पुष्प खिले हुए थे। पम्पा के निकट तिलक, बिजोरा, वट, लोध, खिले हुए करवीर, पुष्पित नागकेसर, मालती, कुंद, झाड़ी, भंडीर (बरगद), वंजुल, अशोक, छितवन, कतक, माधवी लता तथा अन्य नानाप्रकार के वृक्ष सुशोभित थे।

वकुल या बकुल को मौलश्री का पेड़ भी कहा जाता है। इसके फूल अत्यंत सुगंधित होते हैं जो सूखने के बाद भी सुगंध देते रहते हैं। यह दांत और पेट की समस्याओं के लिए बहुत लाभकारी है। बकुल के फूलों के अर्क से हृदयरोग को भी ठीक किया जा सकता है। इसके फूल, फल, बीज, छाल, पत्ते सभी कुछ उपयोगी हैं। लसोड़े का पेड़ बरगद के पेड़ की तरह बड़ा होता है। इसके फल बहुत चिकने होते हैं यह दुर्लभ फल है। इसके सेवन से शरीर मजबूत बनता है। इसके फल, पत्ते, छाल व बीज सभी कुछ उपयोगी हैं।

बीज वाले फलों को बिजौरा कहते हैं पर आमतौर से बिजोरा नीम्बू की एक प्रजाति है। यह नींबू से थोड़ा बड़ा होता है तथा स्वाद में तीखा और खट्टा होता है। यह पाचनशक्ति को बढ़ाता है। यह दमा, कफ, पित्त आदि का शमन करता है।

मालती, एक पुष्प देने वाली लता है जिसकी अनेक किस्में हैं। अकेले भारत में इसकी लगभग बीस प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

कुंद एक फूल प्रदान करने वाला पौधा है। झाड़ी मध्यम आकार के पेड़ होते हैं जिनके अनेक तने जमीन से निकलते हैं। गुलाब, जंगली बेर, करौंदा आदि इसके उदाहरण हैं। 

भांड़ीर वे छोटे पौधे होते हैं जिनकी डालियाँ जमीन के बहुत पास से निकलकर चारों ओर फैलती हैं। वटवृक्ष को भी भांडीर कहते हैं।

भारत में वंजूला एक पौधे का नाम है। विद्वान वंजुला का दूसरा नाम वेतस भी बताते हैं। वेतस औषधि पौधों के शाक समूह वर्ग का हिस्सा है तथा इसके कुछ हिस्सों को सब्जी बनाने के काम में लिया जाता है। अशोक तथा बेंत को भी वंजुला कहते हैं। इस प्रकार वंजुला नाम से कई पेड़ों के नामों का आभास होता है। 

छितवन का दूसरा नाम सप्तपर्ण है। रात में इसके फूलों से तीव्र और विशेष प्रकार की गंध आती है। पारम्परिक रूप से कई प्रकार के रोगों में यह औषधि के काम में आता है जैसे-दुर्बलता, नपुंसकता, पीलिया, खुले घाव, मलेरिया आदि।

कटक का दूसरा नाम निर्मली है आयुर्वेद में इसका प्रयोग कई रोगों के उपचार में किया जाता है। इसके बीज और जड़ उपयोगी हैं। यह मूत्रवर्धक है। गठिया में लाभकारी है, इसके बीज का तेल घावों को भरने, संक्रमण को रोकने में मदद करता है आदि आदि।

माधवी लता या मधुमालती एक फूल प्रदान करने वाली बेल है इसके पत्ते और छाल तीखे कड़वे कीटनाशक तथा खांसी, जलन, सूजन में बहुत लाभकारी होते हैं।

महाकाव्य में पम्पा सरोवर पर श्रीराम-लक्ष्मणजी के पहुंचने के बाद का विवरण किष्किंधाकांड के अंर्तगत प्रारंभ होता है। पम्पा सरोवर के आसपास का वातावरण बड़ा मनोरम था। सरोवर में पद्म और उत्पल के फूल खिले हुए थे। उसमें लाल तथा नीले कमल खिले हुए थे। निकटवर्ती वन में नानाप्रकार के वृक्ष फूलों से लदे हुए थे। वहाँ कनेर के पेड़ पीले फूलों से भरे हुए थे, अशोक के पेड़ फूलों के लाल-लाल गुच्छे से अग्नि के अंगारों जैसे लग रहे थे। तिलक व आम के पेड़ों पर मंजरी शोभा पा रही थी, पत्रहीन पलाश के पेड़ खिले हुए थे। मालती, मल्लिका, पद्म और करवीर सभी फूलों से सुशोभित मधुर गंध फैला रहे थे। केतकी, सिन्दुवार और वासंती लतायें भी सुन्दर फूलों से भरी हुई थी। वहाँ चिरबिल्व, महुआ, बेंत, मौलसरी, चम्पा, तिलक और नागकेसर भी खिले दिखाई देते थे। वहां के पर्वतों पर पद्मक, खिले हुए नील, अशोक, लोध्र भी सुशोभित हो रहे थे। अंकोल, कुरंट, चूर्णक (सेमल) पारिभद्रक, आम, पाटलि, कोविदार, मुचुकुन्द और अर्जुन भी पर्वत शिखर पर फूलों से लदे थे। केतक, उद्दालक (लसोड़ा), शिरीष, शीशम, धव, सेमल, पलास, लाल कुरबक, तिनिश, नक्तमाल, चन्दन, स्यन्दन, हिंताल, तिलक तथा नागकेसर के पेड़ भी फूलों से भरे हुए थे। वहाँ सर्वत्र हरी-हरी घास फैली हुई थी।

केतकी का फूल अत्यन्त सुगंधित होता है, इससे सुगंधित तेल, सौन्दर्य प्रसाधन साबुन आदि बनाये जाते हैं।

सिन्दुवार एक औषधीय गुणों वाला पौधा है इसे निर्गुंडी के नाम से जानते हैं। इसकी पत्तियों के काढ़े का प्रयोग जुकाम, आम वात, सर दर्द, जोड़ों की सूजन आदि में किया जाता है। इसके पत्तों में रक्त शोधन का भी गुण है। यह जोड़ों के दर्द में भी बहुत लाभकारी है। एक अन्य पेड़ बडा पीलू को भी सिन्दूवार कहते हैं। पीलू की लकड़ी से दातुन करने से दाँत मजबूत बनते हैं।

वासंती को सफेद चमेली के नाम से भी जाना जाता हैं, इसके फूलों से तीव्र सुगंध आती है।

पद्मक के बीज, फल, और गोंद का प्रयोग औषधि के रुप में किया जाता है। त्वचा रोग, पित्त को संतुलित करने, इसकी छाल का लेप हड्डियों को जोड़ने आदि में काम आता है। इसका फल खाने योग्य होता है परन्तु अधिक सेवन से बचना चाहिए।

अंकुल के पेड़ का आकार बड़ा और यह कांटेदार होता है। इसकी लकड़ी मजबूत होती है जिससे फर्नीचर बनाया जाता है। इसके फल, पत्ते, लकड़ी, टहनी, छाल सभी उपयोगी है। इसके फल और जड़ का उपयोग गठिया रोग में किया जाता है। इसकी पत्तियों का अस्थमा में तथा जड़ की छाल को कुत्ते, सांप, खरगोश, चूहा आदि के काटने पर लगाया जाता है।

कुरन्ट का दूसरा नाम वज्रदन्ती भी है। इसमें पीले रंग के सुन्दर फूल आते हैं। इसके फूल, पत्ते, तना, जड़ आदि औषधि बनाने के काम आते हैं।

चुर्णक या शाल्मली के पेड़ को सेमल भी कहते हैं। यह विशाल पेड़ लगभग पूरे देश में पाया जाता है। लाल अथवा पीले फूलों वाला यह पेड़ फरवरी से अप्रैल तक फूलों के खिलने सेअत्यन्त आकर्षक दिखाई देता है। सेमल की जड़ के पेस्ट को चेहरे पर मुहांसों, दाग-धब्बों को ठीक करने के लिए प्रयोग किया जाता है। सेमल के फूल का हरा भाग कमजोरी को दूर करने में बहुत सहायक होता है तथा यह रक्तशोधन करने में सहायक है।

परिभद्रक को हिन्दी में पंगार के नाम से जानते है। इसके नये पत्ते, फूल और फलियों की सब्जी बनाई जाती है। इसके पत्तों और छाल से बनाया गया पेस्ट घावों को भरने में मदद करता है। कुछ विद्वान परिभद्रक को-नीम और मदार दोनों पेड़ों का पर्यायवाची भी मानते हैं। 

कोविदार को कुछ लोग कचनार कहते हैं परन्तु यह प्रतीत होता है कि यह दोनों पेड़ अलग-अलग हैं।

कचनार एक औषधीय वृक्ष है इसके फूल खाँसी और रक्त विकार में काम आते हैं और इसका प्रयोग थायराइड में ग्रंथि के उपचार में होता है।

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