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“कदम्ब एक औषधीय वृक्ष है, बहेड़ा-पीपल- देवदारु-ताल-तिलक और तमाल भी वृक्ष हैं”

“रामायण में वर्णित पेड़ पौधों के सामाजिक सरोकार”

भाग – तीन

प्रबोध राज चन्दोल 

संस्थापक, पेड़ पंचायत

जगत में पेड़-पौधों और वनस्पतियों की विविधता सदा से रही है I उसका अनुपम वर्णन रामायण में देखने को मिलता है। इस महाकाव्य में अनेक जगहों पर नाना प्रकार के वृक्षों का व दिव्य वृक्षों का वर्णन है, परन्तु इनके नाम नहीं दिये गए हैं। केवल उन्हीं वृक्षों या पेड़-पौधों के नाम हैं जिनका उपयोग या प्रयोग किसी न किसी रूप में उस समय के लोग आम तौर पर किया करते थे। अयोध्या काण्ड के 71वें सर्ग में एक जगह शरीर से कांटा निकालने में सहायता करने वाली औषधी का उल्लेख है, परन्तु उसका कहीं कोई नाम नहीं बताया गया है। इस प्रकार हमें यह समझना होगा कि जिन वृक्षों तथा पेड़-पौधों के नाम रामायण में बताये गए हैं, उनके अतिरिक्त भी अनेक प्रकार की विविध वनस्पतियाँ उस समय के जंगलों में विद्यमान थीं।

अयोध्या काण्ड के 76 वें सर्ग में राजा दशरथ के अंतिम संस्कार के लिए चिता तैयार करने में चंदन, गूगल, अगर, सरल, पद्मक और देवदारु के पेड़ों की लकड़ियाँ लाकर चिता बनाने का वर्णन है। ये सभी वातावरण में सुगंध फैलाने वाले वृक्ष हैं।

राजा दशरथ के देहावसान के पश्चात भरत अपने ननिहाल से अयोध्या नगरी के लिए प्रस्थान करते हैं। रामायण के 71वें सर्ग में इस यात्रा का विस्तृत विवरण दिया गया है जिसमें अनेक जगह व नदियों को पार करते हुए भरत अयोध्या नगरी पहुंचे। इस यात्रा में उज्जीहाना नगरी का उल्लेख आया है जहां के उद्यान में कदम्ब के अनेक वृक्ष थे। कदम्ब एक औषधीय वृक्ष है जिसके फल, फूल, छाल अनेक औषधीय गुणों से भरपूर हैं। इसकी लकड़ी से मकान, कागज और फर्नीचर आदि बनाये जाते हैं और इसकी जड़ों से पीला रंग भी बनाया जाता है। गोमती नदी को पार करके भरत कलिंग नगर के पास सालवन में जा पहुंचते हैं। जहाँ चारों ओर साल के पेड़ फैले थे। साल के पेड़ से हमें इमारती लकड़ी प्राप्त होती है जो बहुत मजबूत और टिकाऊ होती है। साल के पेड़ की पत्तियों और छाल का प्रयोग आयुर्वेद में औषधि के रूप में प्राचीन काल से होता आया है। उस समय बांस के पेड़ से चटाई और सूप बनाए जाते थे, ऐसा उल्लेख 80वें सर्ग में आता है।

अपने बड़े भाई के होते हुए भरत को अयोध्या का राज्य स्वीकार नहीं था। अतः पिता राजा दशरथ का अंतिम संस्कार करने के बाद भरत सेना सहित श्रीराम की खोज में निकल पड़े। चित्रकूट पर्वत पर पहुंचने से पहले उनका अंतिम पड़ाव भरद्वाज मुनि का आश्रम था जहां स्थान-स्थान पर बेल, कैथ, कटहल, आंवला, बिजोरा या बीजपुरऔर आम के पेड़ फलों से लदे हुए थे। सनातनी संस्कृति में बेल के पेड़ की पूजा की जाती है।

बेल के पेड़ में माता लक्ष्मी का निवास माना जाता है, इसके फल और पत्तों को भगवान शिव को चढ़ाया जाता है। इसके फल औषधीय गुणों से भरपूर हैं जिनका प्रयोग गर्मी के मौसम में शरबत बनाने के काम में भी लिया जाता है।

कैथ का फल भी देखने में बेल के जैसा ही होता है लेकिन इसका स्वाद अलग होता है। इस पेड़ के भी अनेक औषधीय गुण हैं-आँख, कान, गला और दमें की अनेक बीमारियों में इसका प्रयोग होता है। अब यह पेड़ बहुत कम ही देखने को मिलता है।

कटहल को तो हम सभी जानते हैं इसकी सब्जी भी बनती है। आंवले के औषधीय गुणों को देखते हुए इसे अमृत फल भी कहा जाता है। बिजोरा नीम्बू की प्रजाति का एक फल है जोकि नीम्बू से बहुत बड़ा होता है। यह पौष्टिक होने के साथ साथ पाचन क्रिया को भी पुष्ट करता है। इसके अन्य औषधीय उपयोग भी हैं। आम एक स्वादिष्ट फल है और फलों में आम को फलों का राजा कहा जाता है। आम की 1000 से भी अधिक प्रजातियाँ पायी जाती हैं भारत देश में ही इसकी लगभग 51 प्रकार की प्रमुख प्रजातियाँ हैं।

भरद्वाज मुनि के प्रताप से वहाँ जो अन्य वृक्ष विद्यमान थे उनमें बहेड़ा-पीपल- देवदारु-ताल-तिलक और तमाल नामक वृक्ष थे। स्त्रीलिंग पेड़ों में शिंशिपा, आमलकी और जम्बू के अतिरिक्त मालती, मल्लिका और जाति आदि वन की लताएँ आश्रम में फैली हुई थीं। वहाँ के जलाशय में कमल और उत्पल शोभायमान थे। बहेड़ा रोगाणुरोधी वाला होता है खांसी, सर्दी के लक्षणों में राहत दिलाने के अतिरिक्त यह पाचन सुधार के लिए अत्यंत उपयोगी है तथा आयुर्वेद में यह त्रिफला औषधि का एक घटक है।

पीपल पवित्र वृक्षों की श्रेणी में आता है, ये चौबीस घण्टे प्राणवायु देने वाला वृक्ष है और इसके अनेक औषधीय प्रयोग भी हैं। देवदारू के वृक्ष की लकड़ी से बीम, खम्बे, दरवाजे, खिड़कियाँ आदि बनते है। इसके अतिरिक्त यह अनेक रोगों के प्रबन्धन में लाभकारी है जैसे बुखार, सूजन, अपच, अनिद्र, मधुमेह, अस्थमा और मनोदशा विकार। ताल के फल, बीज, तना, जड़ तथा रस आदि के प्रयोग अलग-अलग हैं। प्राचीन समय में इसके पत्तों का उपयोग लेखन सतह के रूप में किया जाता था। इसके तने से फर्नीचर बनता है तथा इसके पत्ते, फल और छाल में औषधीय गुण होते हैं।तिलक, पुन्नाग जाति का एक पेड़ है जिसमें बसंत के समय श्वेत रंग के फूल लगते हैं। यह पेड़ शोभा के लिए लगाया जाता है तथा इसकी लकड़ी और छाल दवा के काम में आती है। कतिपय, विद्वान, तिलक और लोध को एक ही वृक्ष बताते हैं।

तमाल का पेड़ दो प्रकार का होता है-एक साधारण और दूसरा श्याम तमाल। इसके फल और पत्तों में औषधीय गुण हैं जिनको सब्जियों में डाला जाता है। आमलकी पेड़ को आँवला भी कहा जाता है। इसका फल पेट के रोगों में-पीलिया, मधुमेह, श्वांस रोग, मूत्र, गठिया, बवासीर, त्वचा रोग, तथा लीवर आदि में काम आता है। शि्ंशिपा या शीशम के वृक्ष के औषधीय उपयोग भी हैं, इसकी टहनियों को दाँत साफ करने के लिए दांतुन के रूप में प्रयोग किया जाता है। मोटापा, बुखार, ठीक ना होने वाले घाव, आदि के उपचारों में इसका प्रयोग होता है।

जम्बू या जामुन भी फल प्रदान करने वाला एक औषधीय वृक्ष है। सर्दी, जुकाम, चमड़ी के रोग, बुखार और मधुमेह में इसका प्रयोग होता है।

मालती, मल्लिकातथा जाति आदि वन लताएँ है जिन्हें सुगंध व शोभा के लिए प्रयोग किया जाता है।

कमल और उत्पल एक ही परिवार के पौधे हैं जोकि सरोवरों में उत्पन्न होते हैं और पुष्प देते हैं।

क्रमशः

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