सीएए पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से किया इनकार
हाई कोर्ट में सुनवाई पर रोक
असम और त्रिपुरा के मामलों की अलग से सुनवायी
वरिष्ठ पत्रकार जे पी सिंह की कलम से
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में दाखिल 143 याचिकाओं पर सुनवायी हुई।सीएए पर फिलहाल रोक लगाने से उच्चतम न्यायालय ने इनकार कर दिया है।उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि सिर्फ पांच जजों की संविधान पीठ ही अंतरिम राहत दे सकती है। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को नई याचिकाओं पर चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है।नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर हाईकोर्ट की सुनवाई पर रोक लगा दी है तथा असम और त्रिपुरा के मामलों को अलग कर दिया है।
उच्चतम न्यायालय में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि केंद्र का पक्ष सुने बगैर सीएए और एनपीआर प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाएंगे। सरकार सभी याचिकाओं पर 4 हफ्ते में जवाब दाखिल करे। हर किसी के दिमाग में यह मुद्दा सबसे ऊपर है। सीएए के विरोध वाली याचिकाओं पर जवाब मिलने के बाद ही कोई अंतरिम आदेश जारी होगा। अब सीएए की संवैधानिकता पर 5 जजों की संविधान पीठ सुनवाई करेगी।
सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पीठ के सामने पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि हमें सीएए से जुड़ी 60 याचिकाएं ही मिली हैं। पिछली सुनवाई के बाद 83 नई याचिकाएं दायर हो गईं। अब नई याचिकाएं स्वीकार न की जाएं। ऐसे ही अर्जी आती रहीं तो जवाब देने के लिए हमें ज्यादा वक्त चाहिए। अटॉर्नी जनरल ने इसके लिए कोर्ट से 6 हफ्ते का समय मांगा। इस पर कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी करते हुए 4 हफ्ते में सभी याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। अटॉर्नी जनरल ने मांग की कि सभी हाईकोर्ट से कहा जाए कि वे सीएए से जुड़े मामलों पर सुनवाई न करें। पीठ ने इस पर समहति जताई।
सुनवाई शुरू होने से पहले अटॉर्नी जनरल ने कहा कि कोर्ट का माहौल शांत रहना जरूरी। उन्होंने चीफ जस्टिस से कहा कि इस कोर्ट में कौन आ सकता है और कौन नहीं, इस पर नियम होने चाहिए। अमेरिकी और पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट में भी कोर्ट रूम के अंदर आने वालों के लिए कुछ नियम हैं।
याचिकर्ताओं के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उत्तर प्रदेश ने सीएए के तहत नागरिकता देनी शुरू कर दी है। ऐसे में जिन्हें नागरिकता दी जाएगी, उनसे इसे वापस नहीं लिया जा सकेगा। इसलिए सीएए पर पर रोक लगाई जाए। चीफ जस्टिस ने कहा कि हम केंद्र से शरणार्थियों को कुछ अस्थायी परमिट देने के लिए कह सकते हैं।
कपिल सिब्बल ने नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर की प्रक्रिया को टालने की मांग की। उन्होंने कहा कि अप्रैल से एनपीआर की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इसलिए पीठ को उससे पहले कुछ करना चाहिए। एनपीआर को 3 महीने के लिए टाला जाए, तब तक कोर्ट नागरिकता कानून पर फैसला ले सकता है।
वकील विकास सिंह ने असम में सीएए लागू होने से रोकने की मांग की।अटॉर्नी जनरल ने कहा कि केंद्र को असम से जुड़ी याचिकाएं नहीं दी गईं। जो याचिकाएं हमें नहीं दी गईं, उनमें जवाब देने के लिए समय दिया जाए। असम की याचिकाओं को 2 हफ्ते बाद अलग रखा जाए। इसके अलावा 83 अन्य याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए 6 हफ्ते का वक्त मिले।
चीफ जस्टिस ने कहा कि सिर्फ एक पक्ष को सुनकर फैसला नहीं लिया जाएगा। हमें केंद्र को सुनना होगा। असम, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश में सीएए के जरिए नागरिकता देने के मामले 2 हफ्ते बाद अलग से सुने जाएंगे। जो याचिकाएं केंद्र को नहीं मिली हैं, उन पर जवाब देने के लिए सरकार को 4 हफ्ते दिए जाते हैं। सभी याचिकाएं सूचीबद्ध कर पीठ को दी जाएं। कुछ मामलों को हम चेंबर में सुन सकते हैं।
गौरतलब है कि सीएए के तहत 31 दिसंबर 2014 से भारत में आए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदायों के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है। लोकसभा और राज्यसभा में पास होने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन बिल को मंजूरी दी थी। इसके बाद यह कानून बन गया। इसके विरोध में पूर्वोत्तर समेत देशभर में प्रदर्शन हुई। इस दौरान हुई हिंसा में यूपी समेत कई राज्यों में लोगों की जान भी गई।
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग(आईयूएमएल) ने याचिका में कहा गया है कि सीएए समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। यह अवैध प्रवासियों के एक धड़े को नागरिकता देने के लिए है और धर्म के आधार पर इसमें पक्षपात किया गया है। यह संविधान के मूलभूत ढांचे के खिलाफ है। यह कानून साफतौर पर मुस्लिमों के साथ भेदभाव है, क्योंकि इसका फायदा केवल हिंदुओं, सिखों, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को मिलेगा। सीएए पर अंतरिम रोक लगाई जाए। इसके साथ ही फॉरेन अमेंडमेंट ऑर्डर 2015 और पासपोर्ट इंट्री अमेंडमेंट रूल्स 2015 के भी क्रियाशील होने पर रोक लगाई जाए।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश की याचिका में कहाग या है कियह कानून संविधान की ओर से दिए गए मौलिक अधिकारों पर एक “निर्लज्ज हमला’ है। यह समान लोगों के साथ असमान की तरह व्यवहार करता है। कानून को लेकर सवाल यह है कि क्या भारत में नागरिकता देने या इनकार करने का आधार धर्म हो सकता है? यह स्पष्ट तौर पर सिटिजनशिप एक्ट 1955 में असंवैधानिक संशोधन है। संदेहास्पद कानून दो तरह के वर्गीकरण करता है। पहला धर्म के आधार पर और दूसरा भौगोलिक परिस्थिति के आधार पर। दोनों ही वर्गीकरणों का उस मकसद से कोई उचित संबंध नहीं है, जिसके लिए इस कानून को लाया गया है यानी भारत आए ऐसे समुदायों को छत, सुरक्षा और नागरिकता देना, जिन्हें पड़ोसी देशों में धर्म के आधार पर जुल्म का शिकार होना पड़ा।
राजद, तृणमूल, एआईएमआईएम: राजद नेता मनोज झा, तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा, एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने सीएए की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए हैं । जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया असम स्टूडेंट यूनियन, पीस पार्टी, सीपीआई, एनजीओ रिहाई मंच और सिटिजंस अगेंस्ट हेट, वकील एमएल शर्मा और कुछ कानून के छात्रों ने भी सीएए के खिलाफ याचिकाएं दाखिल कीं हैं।
केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन कानून को धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताकर उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है । केरल सरकार ने कहा है कि हम कानून के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे, क्योंकि यह देश की धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने वाला है। केरल के अलावा पंजाब विधानसभा ने भी सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव पास किया है। वहीं मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जैसे गैर भाजपा शासित राज्य पहले ही इसे अपने यहां लागू नहीं करने की बात कह चुके हैं।
उच्चतम न्यायालय ने 9 जनवरी को कानून को संवैधानिक करार देने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई की थी। बेंच ने तुरंत सुनवाई से इनकार करते हुए कहा था कि देश अभी मुश्किल दौर से गुजर रहा है। जब हिंसा थमेगी, तब सुनवाई की जाएगी। पहली बार है, जब कोई देश के कानून को संवैधानिक करार देने की मांग कर रहा है, जबकि हमारा काम वैधता जांचना है।