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सुशांत की मौत का मामला: सबकुछ अब आईने की तरह साफ हो रहा है

  

यह देश का दुर्भाग्य है कि एक व्यक्ति की मौत को मीडिया और सरकार जरूरत से ज्यादा महत्व दे रही है। सुशांत सिंह राजपूत की मौत निश्चय ही हृदय विदारक थी और इससे किसी को भी दुख हो सकता है। लेकिन पहले बात यह सामने आई कि सुशांत के साथ फिल्म उद्योग नाइंसाफी कर रहा था और उसे बाहरी कहकर उसे दी गई फिल्में भी वापस ली जा रही थीं। इसलिए अवसाद में आकर उसने आत्महत्या कर ली। फिर फिल्म जगह में हो रहे भाई भतीजावाद की चीरफाड़ होने लगी और भाई भतीजावाद करने वाले रक्षात्मक मुद्रा में चले गए। सुशांत की मौत ने इस उद्योग की खामियों को सामने लाकर उसमें सुधार करने का एक मौका भी दिया था। लेकिन उस बहस के बीच ही सुशांत के पिता ने पटना में एक मुकदमा दायर कर दिया कि उसके साथ रह रही रिया चक्रवर्ती उसे आत्महत्या की ओर धकेलने के लिए जिम्मेदार है। फिर तो मेनस्ट्रीम मीडिया ने पूरे मामले को ही स्कैंडलाइज करना शुरू कर दिया। फर्जी लोगों की फर्जी बातें ये चैनल दिन रात लोगों को बताने लगे।

सुशांत के परिवार ने भी उसे सनसनीखेज बनाने में सहायता की। परिवार ने दावा किया कि सुशांत किसी मानसिक रोग का शिकार था ही नहीं। उसने रिया पर यह आरोप भी लगा दिए कि यदि उसे कुछ मानसिक परेशानी थी, तो उसने परिवार के लोगों को उसकी जानकारी क्यों नहीं दी और खुद अकेले ही उसका उपचार क्यों करवा रही थी। उससे भी बड़ी बात यह कर दी कि कहीं वह सुशांत को गलत दवाई या दवाइयों का ओवरडोज तो नहीं दे रही थी, जिसके कारण उसकी मौत हो गई।

उसके बाद तो परिवार ने कहना शुरू कर दिया कि वह आत्महत्या नहीं, बल्कि हत्या का ही मामला है। परिवार से इतर दिशा साल्यान की मौत से भी सुशांत सिंह की मौत को जोड़ा जाने लगा। दिशा ने भी कथित रूप से आत्महत्या की थी। उसकी मौत को भी हत्या करार दिया जाने लगा और उसके साथ तो उद्घव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे का नाम भी जोड़ा जाने लगा। सुशांत के साथ भी आदित्य का नाम जुड़ने लगा। जब मामला सीबीआई के हाथों में आया, तो गैरकानून ड्रग का मामला सामने आ गया। फिर रिया पर आरोप लगे कि वह सुशांत सिंह को ड्रग दे रही थी। इस पूरे मामले में आदित्य ठाकरे से हटकर पूरी तरह रिया केन्द्र में आ गई।

अब तक बहुत सारी बातें सामने आ चुकी हैं। सीबीआई जांच कर रही थी। ईडी भी जांच कर रहा है, जो यह देख रहा है कि सुशांत के खाते से कितना रूपया रिया के खाते में गया। अब तो नारकोटिक्स विभाग भी इस जांच में शामिल हो गया है, जो देख रहा है कि कहीं कोई ड्रग का रैकट तो नहीं है। जो ड्रग के रैकेट में शामिल हैं या उसका सेवन करते हुए पाए जाएंगे, वे नारकोटिक्स ब्यूरो के जाल में फंसेंगे ही और ईडी की जांच से पता चलेगा कि सुशांत के खाते से कितने पैसे रिया के खाते में गए या गए भी या नहीं और यदि वे गए तो अवैध थे या वैघ ट्रांजैक्शन थे। लेकिन इतना तो तय है कि सीबीआई के हाथ में कुछ आना है नहीं, क्योकि अब तो जो बातें सामने आई हैं, उनसे यह आईने की तरह साफ है कि सुशांत ने आत्महत्या ही की थी और यह आत्महत्या एंक्जाईटी डिजॉर्डर के कारण कारण होने वाले पैनिक अटैक का नतीजा था।

सुशांत की इस बीमारी का पता उसकी तीनों बहनों को भी था, इसलिए उसके पिता के के सिह का यद दावा गलत है कि परिवार को उसके बारे में जानकारी थी ही नहीं। सोशल मीडिया पर हुए चैट से तो यहां तक पता चलता है कि सुशांत की एक बहन ने तो अपने भाई को उस बीमारी की दवा तक बता दी थी और उन्हें सेवन करने के लिए कहा था। वह दवाई दिल्ली के किसी डॉक्टर से पूछ कर बताई थी। दूसरी बहन ने मैनेजर श्रुति मोदी से चल रहे इलाज और दी जा रही दवाओं के बारे में भी जानकारी ली थी। तीसरी बहन तो बीमारी की खबर सुनकर अमेरिका से भारत ही आ गई थी। यानी तीनों बहनों को पता था कि सुशांत पैनिक अटैक का शिकार है, तो फिर पिता के के सिंह को कैसे पता नहीं था? क्या के के सिंह की अपनी बेटियो से भी बात नहीं होती थी या बेटियों ने अपनी भाई की बीमारी के बारे में अपने पिता को बताना जरूरी नहीं समझा। ये सवाल रिया पर लगाए गए आरोप के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि सुशांत एन्क्जाईटी डिजॉर्डर का शिकार था और उसके कारण उस पर पैनिक अटैक आया करते थे।

यह बीमारी डिप्रेसन या अवसाद से भी ज्यादा खतरनाक है। इसमें सुसाइड करने की भी प्रवृति पैदा होती रहती है, क्योंकि बीमार व्यक्ति न केवल अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो जाता है, बल्कि पैनिक अटैक से होने वाले दर्द यह अन्य परेशानियों से मुक्ति पाना चाहता है। इस बीमारी का इलाज भी शायद एलापैथ में नहीं है। मरीज ठीक होने की उम्मीद में एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर का चक्कर लगाता रहता है, लेकिन निराश होकर वह यह सोचने लगता है कि अब वह कभी ठीक नहीं होगा। यदि कोई उसे कह देता है कि इसका इलाज नहीं हो पाता, तो वह और भी डर जाता है। जितना डरता है, उतना ही ज्यादा उसे पैनिक अटैक आता है और पैनिक अटैक की स्थिति उसके लिए बहुत ही कष्टदायी होती है। उसे चौबीस घंटे काउंसलिंग की जरूरत पड़ती है और वह काउंसलिंग कोई समझदार या घैर्यवान व्यक्ति ही दे सकता है। सच तो यह है कि इस तरह की बीमारी में जो उसके साथ रहता है, उसका धैर्य भी जवाब देने लगता है। यह रिया के साथ हुआ होगा। इसलिए उसने अपने आपको उससे अलग करना ही ठीक समझा होगा।

यही सुशांत की मीतू नाम की बहन को भी हुआ होगा, उसे भी सुशांत की हालत देखी नहीं गई होगी और उसे छोड़ जाना ही उसने उचित समझा होगा। अकेले पड़ जाने और पैनिक अटैक के दुख से छुटकारा पाने के लिए ही सुशांत ने आत्महत्या की होगी। हां, वह एन्क्जाइटी डिजॉर्डर का शिकार क्यों हुआ, यह अलग सवाल है, जिसका जवाब उसका इलाज करने वाले डॉक्टरो के पास होगा, लेकिन उसने आत्महत्या क्यो की, यह आइने की तरह साफ हो रहा है। उपेन्द्र प्रसाद

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